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सन 1530 में कुसुम देव राव (Kusum Dev Rao) ने सकरा डीह नामक स्थान पर गहमर गांव बसाया था. द्वितीय विश्व युद्ध में गहमर के 226 सैनिक अंग्रेजी सेना में शामिल हुए थे, जिसमें से 21 वीरगति को प्राप्त हुये थे.
गहमर की मिट्टी, हवा और पानी भी देशभक्ति और देश सेवा के जज्बे को पूरी तरह अपने में समेटे हुये है. यही वजह है कि गांव के हर शख्स के लिए फौजी बनकर देश सेवा पहला लक्ष्य होता है. गांव की गलियां हो, बाग, खेत-खलिहान या गंगा के घाट हर जगह युवा फौज में भर्त्ती के लिए जीतोड़ मेहनत करते नजर आते हैं. गहमर के हर युवा के दिल में फौज में भर्त्ती होकर देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने का हौंसला उन्हे बेमिसाल बनाता है. गाजीपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर गंगा किनारे बसा गहमर एशिया का सबसे बड़ा गांव माना जाता है, जिसकी कुल आबादी एक लाख बीस हजार है. तकरीबन 25 हजार मतदाताओं वाला गहमर eight वर्ग मील में फैला हुआ है. गहमर 22 पट्टियों या टोले में बंटा है. ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि सन 1530 में कुसुम देव राव ने सकरा डीह नामक स्थान पर गहमर गांव बसाया था. गहमर में ही प्रसिद्ध कामख्या देवी मंदिर भी है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत बिहार के लोगों के लिए आस्था का बड़ा केन्द्र है. लेकिन गहमर की सबसे बड़ी पहचान है यहां के हर घर में एक फौजी से.
विश्व युद्ध में 21 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुये थे
गांव वाले मां कामाख्या को अपनी कुल देवी मानते हैं और देश सेवा को अपना सबसे बड़ा फर्ज. गहमर गांव के औसतन हर घर से एक पुरुष सेना में कार्यरत है. गांव के हर घर में फौजियों की तस्वीरें, वर्दियां और सेना के मेडल फौजियों के इस गांव की कहानी खुद ही बयान कर देती हैं. वर्तमान में गहमर के 12 हजार से अधिक लोग भारतीय सेना के विभिन्न अंगों में सैनिक से लेकर कर्नल तक के पदों पर कार्यरत हैं. जबकि 15 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक गांव में रहते हैं. बताया जाता है कि सैन्य सेवा को लेकर गहमर की ये परम्परा प्रथम विश्व युद्ध से शुरु हुई. द्वितीय विश्व युद्ध में गहमर के 226 सैनिक अंग्रेजी सेना में शामिल रहे, जिसमें से 21 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुये थे.कामख्या हर मोर्चे पर गहमर के अपने बेटों की रक्षा स्वयं करती हैं
देशभक्ति और सैन्य सेवा का ये जुनून अब गहमर वासियों के लिए परम्परा बन चुका है. गहमर की पीढ़ियां दर पीढ़िया अपनी इस विरासत को लगातार संभाले हुये हैं. गहमर के सैनिकों ने सन 1962,1965 और 1971 के युद्धों में भी भारतीय सेना के लिए अपने हौंसले और जज्बे के दम पर मोर्चा संभाला था. देश सेवा इस गांव के हर बांशिदे के लिए सबसे बड़ी गर्व की बात है. फौजियों के इस गांव की एक सच्चाई ये भी है कि आजादी के बाद से आज तक गहमर के सैनिक विभिन्न युद्धो में अपनी वीरता और शौर्यता का परचम तो फहराते रहे, लेकिन आज तक कोई भी शत्रु सेना उनका बाल भी बांका नही कर पायी. गहमर के लोगों की मान्यता है कि उनकी कुल देवी मां कामख्या हर मोर्चे पर गहमर के अपने बेटों की रक्षा स्वयं करती हैं. यूपी के गाजीपुर जिले के गहमर गांव को पूरे देश में फौजियों के गांव के रुप में पहचाना जाता है. गहमर का हर युवा होश संभालते ही देश सेवा के लिए सेना में भर्त्ती होने के लिए अभ्यास शुरु कर देता है. फौजियों के इस गांव में युवाओं का मकसद सैनिक बनकर देश सेवा ही होता है. पूरा गांव अपने इस जज्बे पर गर्व भी महसूस करता है.
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