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मनोचिकित्‍सालय के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. दिनेश राठौर बताते हैं कि मनोरोगियों (psychological sufferers) में कोरोना फैलने का खतरा सबसे ज्‍यादा है. इनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती. इन्‍हें कोरोना महामारी (corona pandemic) के बारे में भी कुछ नहीं पता होता.

नई दिल्‍ली. देश में बेकाबू होते जा रहे कोरोना वायरस (Coronavirus) ने देश के बड़े मनोचिकित्‍सालयों में से एक आगरा इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्‍थ एंड हॉस्पिटल (Institute of psychological well being and hospital agra) में भी दस्‍तक दे दी है. हाल ही में मनोचिकित्‍सालय में इलाज के लिए बिहार से आया एक मनोरोगी कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. जिसे आइसोलेशन (Isolation) में रखने के बाद इलाज दिया गया. इतना ही नहीं अस्‍पताल की ओपीडी में भी रोजाना मनोरोगी आ रहे हैं. हालांकि लॉकडाउन (Lock down) और अनलॉक के दौरान अस्‍पताल में आने वाले मनोरोगियों की संख्‍या में कुछ कमी आई है.

मनोचिकित्‍सालय के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. दिनेश राठौर बताते हैं कि मनोरोगियों में कोरोना फैलने का खतरा सबसे ज्‍यादा है. इनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती. इन्‍हें कोरोना महामारी के बारे में भी कुछ नहीं पता होता. ये कहीं भी घूमते हैं या चीजें छू लेते हैं. सोचने समझने की क्षमता प्रभावित होने के कारण ये आसानी से कोरोना की चपेट में आ सकते हैं. इसी को ध्‍यान में रखते हुए मनोचिकित्‍सालय में विशेष व्‍यवस्‍थाएं की गई हैं. हालांकि इनके हाथ धुलवाने और मास्‍क पहनाने में कर्मचारियों के पसीने छूट जाते हैं.

20 बैड का आइसोलेशन वार्ड बनाया

डॉ. राठौर बताते हैं कि 838 बेड वाले इस अस्‍पताल में अभी 250 मरीज भर्ती हैं. वहीं बाहर से आने वाले मनोरोगियों के लिए ओपीडी की सुविधा है. जिसमें दवा लेने के बाद वे वापस घर चले जाते हैं लेकिन जिन मरीजों को भर्ती करना होता है, उनके लिए 20 बैड का आइसोलेशन वार्ड या क्‍वेरेंटीन सेंटर बनाया गया है. जिसमें मरीज को कम से कम 14 दिन के लिए क्‍वेरेंटीन किया जाता है. इस दौरान उसकी कोरोना जांच की जाती है. जरूरी इलाज भी दिया जाता है. वहीं इसके बाद बाकी मरीजों के साथ ही रखते हैं. ऐसा करने से कोरोना वायरस का खतरा बाकी मरीजों को नहीं हो रहा.

मनोरोगी, mental health

मनोरोगियों को मास्‍क पहनाना मुश्किल हो रहा है. (प्रतीकात्‍मक फोटो)

मनोचिकित्‍सालय में ही ठहरे हुए हैं 50 कर्मचारी

आगरा में तेजी से बढ़े मामलों के बाद डीएम के आदेश पर अस्‍पताल के कर्मचारियों को वहीं ठहरने की सुविधा दी गई है. राठौर कहते हैं कि अस्‍पताल के 50 कर्मचारी एक महीने तक अस्‍पताल में ही ठहर रहे हैं इसके बाद घर जाते हैं और यहां 14 दिन तक क्‍वेरेंटीन रहते हैं. ऐसी व्‍यवस्‍था की गई है कि कर्मचारियों की संख्‍या कम न पड़े और व्‍यवस्‍था बनी रहे.

मरीजों को मास्‍क पहनाना, हाथ धुलवाना है सबसे मुश्किल काम

राठौर बताते हैं कि मनोरोगियों को किसी चीज का होश नहीं रहता. ऐसे में उन्‍हें ये समझा पाना की कोरोना बीमारी चल रही है, बडा कठिन है. रोजाना और बार-बार बताने पर भी वे मास्‍क नहीं पहनते. कुछ हाथ में रखते हैं, कुछ सिर्फ मुं‍ह पर पहनते हैं, फिर उसे खराब करके वहीं बराबर कर देते हैं. मरीजों को हाथ धुलवाने और मास्‍क पहनाने के लिए 20 मनोरोगियों पर एक अटेंडेंट की व्‍यवस्‍था की गई है लेकिन यह काफी मुश्‍किल काम है.



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