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गोरखपुर (Gorakhpur) में गीता वाटिका आज राधा कृष्ण भक्ति का अलौकिक राष्ट्रीय केन्द्र है, इसकी स्थापना हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी.
गोरखपुर में गीता वाटिका आज राधा कृष्ण भक्ति का अलौकिक राष्ट्रीय केन्द्र है, इसकी स्थापना हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी. आज जहां पर गीता वाटिका है वो जमीन कभी कोलकाता के सेठ घनश्याम दास की हुआ करती थी. 1933 में इसे गीता वाटिका के लिए खरीदा गया. 1934 से हनुमान प्रसाद पोद्दार वहां पर रहने के लिए आ गये. उसके बाद से यहां पर जो भक्ति की धार बही वो आज तक अनवरत रूप से प्रवाहित हो रही है.
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दुजानी बताते हैं कि गीता वाटिका में पहले संकीर्तन एक दो दिन फिर एक सप्ताह और फिर एक महीने के होने लगे. 1968 में राधाष्टमी के लिए अखंड हरिनाम संकीर्तन की शुरूआत हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की, जो आज तक जारी है. 22 मई 1971 को भाई जी का महाप्रयाण हुआ फिर भी ये संकीर्तन बंद नहीं हुआ. पिछले 52 सालों से लगातार यहां पर रहे राम हरे कृष्ण का संकीर्तन जारी है. साथ ही जो ज्योति प्रवज्लित की गयी थी वो ज्योति भी निरंतर जल रही है. अखंड संकीतर्न करने के लिए तीन-तीन घंटे की शिफ्ट बनाई गयी है. एक बार की शिफ्ट में तीन लोग बैठते हैं. और ये लोग लगातार यहां पर बिना रुके बिना थके संकीतर्न करते रहते हैं.
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