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कोरोना संकट (Corona disaster) के बीच बिहार में चुनाव की सरगर्मियां तेज होने के साथ ही पुराने प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे के करीब आने लगे हैं. ये सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि निशाने पर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हैं.

पटना. एक पुरानी कहावत है दुश्मन का दुश्मन कभी दोस्त बन जाता है. ठीक उसी तरह बिहार की सियासत में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही हो रहा है. जब एक दूसरे के धुर विरोधी कहे जाने वाले चिराग पासवान (Chirag Paswan) और तेजस्वी यादव (Tejaswi yadav) इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कारण करीब आने लगे हैं. यही नहीं तेजस्वी जब भी सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर कोई हमला करते हैं, तो पीछे-पीछे चिराग भी उसे दोहरा देते हैं. पिछले कुछ दिनों में चिराग पासवान ने नीतीश सरकारपर जिस तरह से एक पर एक हमले किए, उसे गाहे-बगाहे तेजस्वी ने भी स्वीकार किया. जब चिराग ने कोरोना त्रासदी के बीच चुनाव टालने की बात कही तो फिर आरजेडी ने भी खुलकर चिराग की प्रशंसा कर दी. क्या महज ये संयोग भर है या फिर भीतर-ही-भीतर कोई खिचड़ी पक रही है. हालांकि, चिराग खेमा खुलकर इस सच्चाई को कबूलने को अभी तैयार नहीं, लेकिन आरजेडी डंके की चोट पर चिराग के रुख की प्रशंसा करते हुए कहती है कि राजनीति में ना तो कोई स्थायी दोस्त होता है और ना कोई दुश्मन.

माहौल बना रही RJD
आरजेडी (RJD) के लिए दोहरी खुशी है कि उसके धुर विरोधी (सीएम नीतीश कुमार) पर चिराग ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं. तेजस्वी खेमे को यह बहुत रास आ रहा है, क्योंकि आरजेडी को पता है कि चिराग और तेजस्वी का एक मंच पर आना आसान नहीं, लेकिन नीतीश कुमार पर दवाब बनाने के लिए चिराग को करीब रखना बहुत जरूरी है. शायद यही कारण है कि आरजेडी माहौल बनाने में लगी है.

कांग्रेस भी है बेहद खुशउधर कांग्रेस यह सफ़ाई देने में जुटी है कि वो किसी भी तरह से चिराग के न तो करीब है और न ही वो चिराग को महागठबंधन में शामिल कराने और तेजस्वी को साथ मिलाने में कोई पुल का काम कर रही है. हां पार्टी इतना जरूर मानती है कि चिराग इन दिनों नीतीश कुमार को आईना जरूर दिखा रहे हैं. जाहिर है चिराग के इस रुख से कांग्रेस भी खूब आनन्दित है.

‘एकता मिशन’ पर ये नेता
वैसे अंदरखाने में खबर ये है कि कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह (जो कभी लालू के बेहद करीबी भी रहे हैं) इन दोनों युवराजों को एक साथ लाने में पूरी ताकत लगाए हुए हैं. चिराग के करीबी भी मानते हैं कि तेजस्वी के साथ 2020 के चुनाव में जाने में उन्हें कोई खास परेशानी नहीं है, बस एक कदम आगे-पीछे होने पर सहमति बन जाए.

JDU के इत्मिनान का मतलब
जाहिर है दोनों ही खेमे के निशाने पर यकीकन नीतीश कुमार ही हैं. वो और बात है कि जेडीयू इस स्ट्रेटजी और गेमप्लान को कोई खास तवज्जो नहीं देना चाहती. उसका तो यही मानना है कि बिहार में नीतीश कुमार का न तो कोई विकल्प है और न ही कोई वेकेंसी, क्योंकि 15 सालों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के किए गए काम को लेकर बिहार की जनता ने यह पक्का मन बना लिया है कि उन्हें 2020 में किसके साथ रहना है.

दोनों के बीच पक रही खिचड़ी?
बहरहाल अंदरखाने में जो तेजस्वी-चिराग की नजदीकियों को लेकर चर्चा है, उसमें कितनी सच्चाई है यह तो वक्त बताएगा. ये दोनों युवराज भविष्य में एक मंच पर आ ही जाएंगे ये भी कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तो जरूर है कि नीतीश कुमार पर दवाब बनाने के लिए इन दोनों के बीच जरूर कोई म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग है या फिर कोई खिचड़ी पक रही है.



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