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28 फरवरी 2014 को पीलीभीत जंगल को वन्य जीव प्रभाग घोषित किया गया और 9 जून 2014 को पीलीभीत टाइगर रिजर्व के नाम से नवाजा गया. इसके बाद भारत अधिनियम वन विभाग और एनटीसीए की गाइडलाइंस के हिसाब से जंगल में हर प्रकार का कटान के ठेके, यहां तक कि ग्रामीणों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. इसका असर ये हुआ कि 2014 के बाद टाइगर की संख्या 30 से बढ़कर 55 हो गई. सूत्रों की मानें तो 29 जुलाई विश्व बाघ दिवस पर पीलीभीत में विचरण करने वाले बाघों की संख्या 65 से प्लस हो गई हैं.
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि पिछले बीते सालों में लगभग 17 टाइगर और 7 तेंदुए की मौत हो चुकी है. इस दौरान 8 टाइगर को रेस्क्यू किया गया, जो अब लखनऊ और कानपुर चिड़ियाघर की शोभा बढ़ा रहे हैं.
कितना बड़ा है जंगल
73 हज़ार हेक्टेयर में फैला साल का विशाल सुंदर जंगल वन्य जीवन से भरपूर है. इस जंगल के अंदर से कई नदियां और नहर भी होकर गुजरती हैं. विश्व भर में अनुमानित 3,900 बाघ जंगल में रहते हैं. इनमें से सर्वाधिक अपने देश में हैं. वर्ष 2018-19 की गणना के आधार पर भारत में करीब तीन हजार (2967) बाघ हैं. 526 बाघों के साथ मध्यप्रदेश देश का सर्वाधिक बाघों वाला प्रदेश है. वहीं दूसरे नंबर पर रहे कर्नाटक में 524 और तीसरे नंबर पर रहे उत्तराखंड में 542 बाघ हैं.
उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां लखीमपुर खीरी टाइगर रिजर्व में 100 से ज्यादा, जबकि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 65 से अधिक बाघ हैं. भारतीय जंगलों में अनुकूल पर्यावरण मिलने पर बाघों की संख्या बढ़ रही है. लेकिन इसके साथ ही जंगल में मानवों के बढ़ते दखल ने बाघों को बेचैन कर दिया है.
(फाइल फोटो)
राष्ट्रीय पशु के साथ धार्मिक आस्था भी बाघ के साथ
पीलीभीत टाइगर से सटे ग्राम क्षेत्र भली-भांति जंगल के वन जीवों से अक्सर रूबरू होते रहते हैं. ग्रामीणों को अच्छी तरह ज्ञान है कि बिल्ली प्रजाति में सबसे बड़ा टाइगर पीलीभीत टाइगर रिजर्व में भारी संख्या में है. उनके लिए राष्ट्रीय पशु के साथ ही मां दुर्गा की सवारी है. जंगल से सटे रामनगर क्षेत्र में दुर्गा पूजन के दौरान टाइगर की पूजा भी की जाती है.
ग्रामीणों के बीच लगातार जागरूकता कार्यक्रम
टाइगर और तेंदुआ जितना खूंखार होता है, उससे ज्यादा शर्मिला माना जाता है. अगर टाइगर का पेट भरा है और जवान टाइगर है तो वह इंसानों की चहल कदमी देखकर छुप जाता है. लेकिन टाइगर मांसाहारी है और झुके हुए आदमी पर यह हमला करने से बिल्कुल नहीं कतराता है. इस तरह की जानकारी वन विभाग द्वारा अक्सर गांव में बैठक करके ग्रामीणों को जागरूक किया जाता है.
ये शख्स 10 साल से पीलीभीत में टाइगर को कर रहा कैमरे में कैद
पिछले दस साल से पीलीभीत के जंगलों में फोटोग्राफी कर रहे वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बिलाल मियां ने कई टाइगर को अपने कैमरे में कैद किया और वन्य जीवन को समाज के सामने रखा. कई वन्य जीव संघर्ष और टाइगर रेस्क्यू को भी अपने कैमरे में कैद किया. बिलाल ने वन्य जीवन को अपने कैमरे के जरिए बहुत करीब से देखा. उनके द्वारा खींचे गए फोटो आज पीलीभीत टाइगर रिजर्व की शान बने हुए हैं. बिलाल का कहना है कि अगर भारत या प्रदेश सरकार द्वारा संसाधन और स्टाफ बढ़ाया जाए तो वन्य जीवन और दुर्लभ प्रजाति के लिए पीलीभीत जंगल से सुंदर जगह कोई नहीं है. पानी खाना और छुपने की जगह वन्य जीव के लिए पीलीभीत टाइगर रिजर्व एक अच्छी स्थान है.
पीलीभीत में बाघ तेजी से बढ़ रहे हैे (फाइल फोटो)
रॉयल बंगाल टाइगर के बारे में ये जानकारी अहम
पूरे भारत में बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है. यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है. यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है. यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है. इसके शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है. इस पर काले रंग की पट्टी पायी जाती है. वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है. बाघ 13 फीट लम्बा और 300 किलो वजनी हो सकता है. बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है. यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है. बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तद्भव रूप है.
बाघ के 12 साल की उम्र में पीछे के दांत गिर जाते हैं
बाघ अपनी मां के साथ ढाई साल तक रहता है, इसका मिलन का समय जून से लेकर अगस्त तक रहता है. जब के उसके जन्म की दिसंबर से जनवरी तक का रहता है. एक बाघ की उम्र जंगल में लगभग 10 से 12 और चिड़ियाघर में औसतन 15 साल तक की रहती है. इस प्रजाति में पैदा होने वाले 60 प्रतिशत बच्चे दूसरों बाघ द्वारा ढाई साल के अंदर ही मार दिए जाते हैं. अपने जीवन काल में अगर बाघिन के शावक की मृत्यु न हो तो वे अपने जीवनकाल में 6 से 11 शावक को जन्म दे सकती है. मृत्यु से 1 साल पहले बाघ के बाल गिरना शुरू हो जाते हैं और 12 साल की उम्र में उसकी मुंह के पिछले दांत भी गिर जाते हैं.
संख्या बढ़ने के साथ ही टाइगर और इंसानों के बीच आमना-सामना होने की संभावना भी बढ़ गई है.
2014 से 2020 तक पकड़े गए टाइगर
2 मार्च 2014 में एक टाइगर को पूरनपुर रोड स्थित गढ़वा खेड़ा पुल से रेस्क्यू कर कानपुर चिड़ियाघर भेजा गया.
23 नवंबर 2016 को एक टाइगर को महोफ रेंज स्थित मालपुर से पकड़कर लखनऊ चिड़ियाघर भेजा गया.
11 फरवरी 2017 को एक टाइगर को माला रेंज स्थिति सुखदासपुर नवादिया से पकड़कर कतर्नियाघाट छोड़ा गया.
5 फरवरी 2018 को एक टाइगर को माला रेंज के निकट ग्राम विधिपुरा से पकड़कर दुधवा की बोराया रेंज में छोड़ा गया.
5 मार्च 2018 को एक बाघिन को बराही रेंज पकड़कर लखनऊ चिड़ियाघर भेजा गया.
11 मई 2019 को पीलीभीत रेंज स्थित ग्राम खजुरिया पचपेड़ा से एक बाघिन को पकड़कर लखनऊ जू भेजा गया.
Three अप्रैल 2020 को एक टाइगर को पीलीभीत माधोटांडा रोड स्थित माला रेंज से रेस्क्यू कर कानपुर चिड़ियाघर भेजा गया.
9 जून 2020 को एक बाघिन को माला रेंज के अंदर से रेस्क्यू कर कानपुर चिड़ियाघर भेज दिया गया.
2012 से 2020 तक टाइगर की मौत
2012-13 में 3 टाइगर की मौत
2014 में 1 टाइगर की मौत
2015 में 1 टाइगर की मौत
2016 में 1 टाइगर की मौत
2017 में 2 शावकों की मौत
2018 में 3 टाइगर की मौत
2019 में 3 टाइगर की मौत
2020 में 4 टाइगर की मौत.
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