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मनीश शाह का कहना है कि पहले वह हल्द्वानी में नौकरी करते थे. वहां कमरे के किराए, खाने में ही पूरी सैलरी समाप्त हो जाती थी.
कड़कनाथ समेत यह किस्में पाली जा रहींं
आजीविका परियोजना के पशु चिकित्सक सुशील शाल का कहना है कि धौलादेवी ब्लाक के चार गांवों में चैंब्रो, क्रायलर, ब्रायलर और कड़कनाथ मुर्गी पहाड़ में ही पाली जा रही है. मुर्गीपालन करने वाले लोगों को डॉक्टरों की टीम लगातार सलाह दे रही है.
वह कहते हैं कि इन युवाओं को देखकर प्रवासी भी मुर्गीपालन को अपना रोज़गार बना सकते है. युवाओँ में मुर्गीपालन को लेकर काफी जोश है. इससे ये प्रतिमाह 20 हज़ार रुपये के आस-पास कमा रहे हैं. मुर्गीपालक दिनेश रावत का कहना है कि उन्होंने पिछले एक साल में एक लाख से अधिक मुर्गीपालन से ही कमा लिया है. इसके साथ ही घर पर ही सब्ज़ी उत्पादन भी कर रहे हैं.
किराए-खाने में जाती थी सैलेरी
मुर्गीपालक मनीश शाह का कहना है कि पहले वह हल्द्वानी में नौकरी करते थे. वहां कमरे के किराए, खाने में ही पूरी सैलरी समाप्त हो जाती थी. कुछ भी बचत नहीं हो पा रही थी. उन्होंने गांव में लौटकर मुर्गीपालन का काम शुरु किया. शुरुआत में अनुभव कम होने के कारण बचत कम हो रही थी लेकिन अब ठीक पैसे बच जाते हैं. मुर्गियों की स्थानीय स्तर पर भी काफी मांग है.
कोरोना संक्रमण ने हजारों लोगों को बेरोज़गार कर दिया है. अल्मोड़ा जिले में ही 50,000 से अधिक युवा अपने घरों को लौट आए हैं. अब सरकार के सामने इन युवाओं को गांवों में ही रोज़गार देने की चुनौती है. अगर पहाड़ में मुर्गी पालन एक अच्छा रोजगार बन सकता है तो युवा अपने घरों में ही रोज़गार कर सकते हैं. पहाड़ के मुर्गों की मांग पहाड़ और मैदान में अधिक है.
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