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गोरखुपर (Gorakhpur) से जुड़े नाथ संप्रदाय ने राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई थी. गोरक्षपीठ (Gorakhshpeeth) के ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ ने 1934 से 1949 तक लंबी लड़ाई लड़ी.
दिग्विजयनाथ ने 1934 से शुरू किया संघर्ष
गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ ने 1934 से 1949 तक लंबी लड़ाई लड़ी. 1949 में विवादित जगह में जब रामलला का प्राकट्य हुआ तो मालूम पड़ा कि बाबा अभिराम दास के साथ महंत दिग्विजय नाथ ने रामलला की मूर्ति को वहां तक पहुंचाया था. हालाकि संत समाज कहता है कि रामलला की मूर्ति वहां खुद ही प्रकट हुई थी, जिसके बाद वहां पूजा-अर्चना शुरू हो गया. महंत दिग्विजय नाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद महंत अवैद्यनाथ ने राम मंदिर आंदोलन की कमान संभाली और फिर राम जन्मभूमि मुक्त यज्ञ समिति बनाई गई. इसकी पहली यात्रा महंत अवैध नाथ की अगवाई में बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक निकाली गई.
महंत अवैद्यनाथ ने किया 1984 में राम जन्मभूमि न्यास का गठनमहंत अवैद्यनाथ के अगुवाई में ही 1984 में राम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ. महंत अवैद्यनाथ न्यास के पहले अध्यक्ष चुने गए. महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद आंदोलन की कमान अयोध्या के दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्र परमहंस दास के पास चली गई. लेकिन नाथ संप्रदाय के महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद इसकी कमान संभाली वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने.
योगी आदित्यनाथ अब अयोध्या का कायाकल्प कर रहे
योगी आदित्यनाथ ने लड़ाई लड़ते हुए इसे अंजाम तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अब मुख्यमंत्री रहते हुए अयोध्या के कायाकल्प का भी बीड़ा उठाया है. ऐसे में राम मंदिर आंदोलन में नाथ संप्रदाय की भूमिका को महत्वपूर्ण नजरिए से देखा गया है. अयोध्या के संत महंत व वरिष्ठ पत्रकार कमल कांत सुंदरम बताते हैं कि राम मंदिर आंदोलन में नाथ संप्रदाय महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
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