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पत्रकारिता
अनिल बलूनी ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गांव में ही पूरी की. उसके बाद वे दिल्ली आ गए जहां उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम से स्नातक की डिग्री ली. शुरुआत में इनकी रुचि पत्रकारिता में रही, और इन्होने YMCA से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरा कर पत्रकारिता में अपना कदम रखा.
अनिल बलूनी की रगों में किसी बड़े नेता का खून तो नहीं था जैसा कि आज के बहुत से युवा नेता वंशवाद के सहारे सियासत की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, लेकिन सियासत उनके मिज़ाज में थी. यही वजह है कि पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान वह छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए और दिल्ली में संघ परिवार से उनका सम्बध बढ़ता गया.राजनीतिक सफ़र
दिल्ली के संघ दफ्तर में उस समय के जाने-माने नेता सुंदर सिंह भंडारी के वे संपर्क में आए. अनिल बलूनी सुंदर सिंह भंडारी के काफी करीब आ गए. यही वजह है कि जब सुंदर सिंह भंडारी को बिहार का राज्यपाल बनाया गया तो वह अनिल बलूनी को अपना ओएसडी बनाकर पटना ले गए.
सुंदर सिंह भंडारी के साथ-साथ ही अनिल बलूनी बिहार के बाद गांधीनगर जा पहुंचे. बिहार के बाद सुंदर सिंह भंडारी को गुजरात का राज्यपाल बनाया गया था. इसके दो साल बाद बतौर गुजरात में सीएम नरेंद्र मोदी का दौर शुरू हुआ था. बलूनी कभी सुंदर लाल भंडारी के काम से तो कभी संघ के काम से, साबरमती शहर की सड़कों पर खूब घूमे.
अनिल बलूनी को अपने गृह राज्य उत्तराखंड से खासा लगाव था. 2002 में बलूनी देहरादून लौट गए. 2002 में अनिल बलूनी चुनाव मैदान में जा कूदे. उस वक्त उनकी उम्र केवल 26 साल थी और उन्होंने उत्तराखंड की कोटद्वार सीट से चुनाव लड़ने के लिए पर्चा दाखिल कर दिया. चुनावी राजनीति में पहले कदम पर ही किस्मत ने अनिल बलूनी का साथ छोड़ दिया और उनका नामांकन अवैध घोषित कर दिया गया.
एक आदेश के कारण उन्हें चुनावी अखाड़े से बाहर होना पड़ा. बलूनी को धक्का तो बहुत लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. इस मामला को वे सुप्रीम कोर्ट तक ले गए जहां फैसला उनके पक्ष में आया और चुनाव रद्द कर दिया गया. 2005 में उपचुनाव हुए, हालांकि उस चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली.
2009 में बीजेपी ने अनिल बलूनी की प्रतिभा को समझते हुए उन्हें वन और पर्यावरण कार्य बल का प्रभारी बना दिया. पर्यावरण और जन्य जीव को लेकर अनिल बलूनी ने राज्य में बहुत सारे काम किए. यहां बलूनी ने कमाल का काम किया और मीडिया में उनकी तारीफ़ होने लगी.
2012 में उत्तराखंड बीजेपी में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गयी, वे बीजेपी के प्रवक्ता बनाए गए.
मीडिया प्रभारी
2013- 2014 में पूरे देश में बदलाव की लहर चल रही थी, पूरे देश में मोदी लहर थी. पार्टी ने फैसला लिया था कि नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. उस वक़्त अनिल बलूनी को बीजेपी ने बड़ी जिम्मेदारी दी. पार्टी ने बलूनी को बनारस भेजा और मीडिया मैनेजमेंट की जिम्मेदारी सौंपी. बलूनी ने वहां भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई.
2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी. अमित शाह को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी ने बलूनी को दिल्ली बुला लिया. पार्टी ने अनिल बलूनी पहले प्रवक्ता और फिर राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी का दायित्वा सौंप दिया. केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने पर बतौर राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी बलूनी की भूमिका और ज़िम्मेदारी खासी बढ़ गई जिसे बलूनी बखूबी निभा रहे हैं.
पार्टी के काम में उनकी मेहनत और लगन का ही नतीजा रहा कि बीजेपी ने 2018 में अनिल बलूनी को संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा भेजा. अनिल बलूनी उत्तराखण्ड के सबसे कम उम्र के सांसद बने, जिन्हें सीधे राज्यसभा भेजा गया हो.
उत्तराखण्ड से लगाव
अनिल बलूनी भले ही दिल्ली से पार्टी के काम काज की जिम्मदारी निभाते रहे हो लेकिन गृहराज्य उत्तराखंड से उनका खासा लगाव रहा है. राज्य से लोगों के पलायन को रोकने के लिए उन्होंने ‘अपना वोट अपने गांव’ अभियान चलाया. इस अभियान का राज्य के बाहर रह रहे उत्तराखंड के लोगों में खासा प्रभाव हुआ. अनिल बलूनी राज्य के विकास को लेकर केंद्र में हमेशा सक्रिय रहते हैं.
अपनी छोटी से उम्र में अनिल बलूनी ने ज़िंदगी के कई उतार चढ़ाव देखे हैं. जब उनकी ज़िंदगी में सब-कुछ ठीक ठाक चल रहा था, तब नियति को कुछ और ही मंजूर था. बदकिस्मती से बलूनी को कैंसर की बीमारी से दो-चार होना पड़ा. लेकिन किसी भी चीज़ से हार न मानने वाले बलूनी ने इस बीमारी को भी हराने की ठानी. बीमारी से उनकी लम्बी जदोजहद चली, लेकिन बलूनी ने कैंसर को भी मात दे ही दी.
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