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दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार कहते हैं कि राजनीति में अपराधीकरण तब बढ़ता है जब राज्य का तंत्र कमजोर या फेल हो जाता है. कुछ अपराधी किस्म के लोग अपनी जाति में यह प्रचार करने में कामयाब हो जाते हैं कि अगर इस जाति का सीएम है तो दूसरी जाति की नहीं सुनी जा रही है. यह कहते-कहते वो उस जाति का कथित तौर पर संरक्षण करने लगता है. वो राज्य के सिस्टम के बीच अपना एक साम्राज्य खड़ा कर लेता है.
कहां-कहां गया विकास दुबे
ये भी पढ़ें: Kanpur Encounter: पुलिस को चकमा देने को विकास ने चुना बीहड़ वाला रास्ता, पढ़ें पूरी कहानी प्रो. कुमार कहते हैं ऐसे बदमाश कुछ लोगों के लिए रॉबिन हुड भी बन जाते है. उसके आइकॉन दिखने लगते हैं. जबकि दूसरी जाति के लोगों के लिए खौफ बन जाते हैं. राजनीति संख्या बल का खेल है इसलिए पार्टियां ऐसे प्रभावशाली लोगों को टिकट दे देती हैं और इस तरह वे सियासत में भी आगे बढ़ते चले जाते हैं. इसीलिए जब सब लोगों को सीओ मिश्रा के परिवार के साथ खड़े होना चाहिए तो कुछ लोग दुबे की हिमायत भी करते नजर आ रहे हैं.
यूपी की सियासत और अपराध का गठजोड़
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में चुनकर आए यहां के 80 लोकसभा सांसदों में से 44 पर आपराधिक मामले दर्ज थे. जबकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में चुनकर आए 403 विधायकों में से 147 विधायकों पर क्रिमिनल केस (prison MLA) दर्ज हैं.
ऐसे विधायकों में भाजपा के 114, सपा के 14, बसपा के 5 और कांग्रेस का 1 नेता शामिल है. ये सब अपनी-अपनी जातियों के स्थानीय और क्षेत्रीय आईकॉन हैं. इनमें से अधिकांश अपने हित साधने के लिए जातीय लबादा ओढ़कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए.
यूपी की सियासत में कई ऐसे नेताओं ने राज किया है, जो कभी अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह थे. विकास दुबे भी अपनी बदमाशी के बहाने राजनीति में आगे बढ़ना चाहता था. अब कई लोग जाति की आड़ लेकर विकास दुबे का भी समर्थन कर रहे हैं.
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पार्टियां टिकट किसे देती हैं?
2017 के यूपी चुनाव में 403 विधानसभा सीटों के लिए 4,823 प्रत्याशी मैदान में थे. उसमें से 17 फीसदी यानी 859 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज थे. इनमें से भी 704 पर तो ऐसे गंभीर अपराध के आरोप थे जिनमें 5 साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती हो या गैर-जमानती हो.
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