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भारतभारी (Bharatbhari) तीनों युगों की साक्षी नगरी के रूप में विख्यात है. माना जाता है कि त्रेता युग में राम के भाई भरत ने यहां तपस्या की थी. उन्होंने ने ही यहां पर पवित्र सरोवर और शिव मंदिर का निर्माण कराया था.
रामायण की कहानियों में है इसका वर्णन
भारतभारी तीनों युगों की साक्षी नगरी के रूप में विख्यात है. माना जाता है कि त्रेता युग में राम के भाई भरत ने यहां तपस्या की थी. उन्होंने ने ही यहां पर पवित्र सरोवर और शिव मंदिर का निर्माण कराया था. भरत को त्याग की प्रतिमूर्ति और भारतभारी को त्याग की भूमि की संज्ञा दी गई है. दोनों स्थलों की पवित्र मिट्टी रामलला के भव्य मंदिरके निर्माण में प्रयुक्त होगी. कहानियों में कहा जाता है कि राम और रावण के बीच जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी संजीवनी बूटी भारतभारी से ही हो कर ले जा रहे थे. ऐसे में भरत ने श्रीराम का शत्रु समझकर उन्हें तीर मार दिया था. इससे हनुमान जी वहीं पर पर्वत लेकर गिर पड़े थे. ऐसे में वहां पर आज विशाल गड्ढा हो गया जो आज भी पवित्र सरोवर के रूप में मौजूद है.
ब्रह्महत्या का आरोप लगा थाएक मान्यता यह भी है कि राम- रावण युद्ध में रावण की जब मृत्यु हो गई तब भगवान राम पर ब्रह्महत्या का आरोप लगा था. ऐसे मे वापस लौटने पर अयोध्या वासियों ने उनके हाथ से अन्य ग्रहण करने से इंकार कर दिया था. इसका निराकरण न होने से कोई भी पुरोहित यज्ञ कराने को तैयार नहीं हो रहा था. तब गुरु वशिष्ठ ने कन्नौज से दो नाबालिग बालकों को अयोध्या लेकर आए उनका जन्म कराकर यज्ञ कार्य पूर्ण कराया. और तब उनका ब्रह्महत्या का दोष दूर हुआ था. दोनों ब्रह्मणों के घर वापस लौटने पर उनके परिजनों ने उन्हें त्याग दिया और वे पुन गुरु वशिष्ठ से मिले. तब मुनि वशिष्ठ जी से आज्ञा लेकर राम ने एक बाण चलाया और कहा कि जहां यह बाण गिरेगा उसी जगह को आप लोग अपना निवास स्थान बना लीजिए. उनके द्वारा छोड़ा गया तीर भारतभारी में आकर गिरा जिसकी वजह से विशाल जलाशय का निर्माण हुआ जो आज भी मौजूद है.
आर्कियोलॉजिस्ट सर्वे के अनुसार
यूनाइटेड प्रोविंसेस ऑफ अवध एंड आगरा (United provinces of Awadh) के वॉल्यूम 32 वर्ष 1907 में इस स्थल का उल्लेख मिलता है, जिसमें बताया गया है कि वर्ष 1875 में भारत भारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में 50,000 से अधिक दर्शनार्थियों ने भाग लिया था. पुरातत्व विभाग ने वर्ष 1996-97 के अनुसार यह स्थान कुषाण कालीन सिद्ध हो चुका है. प्राचीन किले और कुए के नीचे दीवारों के बीच आज भी लगभग eight फीट नर कंकाल मिलते हैं जो इतने पुराने हैं कि इन्हें छूने भर से राख में बिखर जाते हैं.
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