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अच्छे फ़ायदे की संभावना
आम उत्तराखंड का एक मुख्य फल है. उद्यान विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 35,911 हेक्टेयर क्षेत्रफल आम के बाग हैं जिनसे 1,49,727 मीट्रिक टन फसल प्राप्त होती है. पहाड़ी क्षेत्रों में आम की फ़सल मेंदानी क्षेत्रों की अपेक्षा एक माह बाद (जुलाई /अगस्त) में पक कर तैयार होती है. इस तरह यहां का आम उत्पादक आम की फसल से अच्छा आर्थिक लाभ ले सकता है.
पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बीजू पौधे 1400 मीटर (समुद्र तल से ऊंचाई) तक देखे जा सकते हैं. किन्तु आम की अच्छी उपज समुद्र तल से 1000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों से ही मिलती है. अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में उपज कम हो जाती है.उधान विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं ज़िला योजना, राज्य सेक्टर, भारत सरकार के हार्टिकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन, कृषि विकास योजना, ग्राम्या, जलागम के साथ ही विभिन्न गैर सरकारी संगठन कई वर्षों से आम फल पट्टी विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं. लेकिन प्रतिवर्ष विभिन्न परियोजनाओं में करोड़ों रुपये खर्च कर लाखों पौधे लगाने के बाद भी पहाड़ी क्षेत्रों में आम की नई फल पट्टियां विकसित होती नहीं दिखाई देती है.
इसलिए नहीं बढ़ रही आम की पैदावार
इसकी वजह यह है कि आम के कलमी पौधे रोपण के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य के मेंदानी क्षेत्रों या उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद, सहारनपुर आदि स्थानों के पंजीकृत पौधालयों से भेजे जाते हैं.
योजनाओं में आपूर्ति किए गए इन आम के पौधों में Feeder roots काफी कम होती हैं और मुख्य जड़ कटी हुई होती है. यदि आप आम के इन पौधों की पिन्डी (जड़ों पर लिपटी मिट्टी) को हटाएंगे तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. ऐसा पौध उत्पादकों का अधिक आर्थिक लाभ लेने की वजह से मानकों के पालन न करने की वजह से होता है.
मैदानी क्षेत्र से आपूर्ति किए जाने वाले पौधों कि ज्यादातर पिन्डियां सड़क द्वारा यातायात में मानकों का पालन न करने (ट्रकों के पौधे एक ही ट्रक में ढुलान करना भले ही कागज़ों में ढुलान पर दो ट्रक दिखाए जाते हों) और सडक से किसान के खेत तक पहुंचाने में टूट जाती हैं. इससे पौधों को काफी नुकसान होता है.
खेत में इन पौधों को लगाने पर पहले साल में ही 40 से 60% तथा और फिर अगले एक या दो सालों में 80% तक पौधे मर जाते हैं. इससे कृषकों को काफी आर्थिक नुकसान पहुंचता है तथा उसका सरकारी योजनाओं से विश्वास भी हटता जा रहा है.
पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे लगाएं आम के बाग
In-situ (यथा स्थान) ग्राफ्टिंग कर पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित किए जा सकते हैं. आम के बाग लगाने के लिए समुद्र तल से 1000 मीटर तक ऊंचाई वाले स्थानों या जिन स्थानों पर पहले से ही आम के बाग अच्छी उपज दे रहे हैं को चुनें. जिन स्थानों पर पाला ज्यादा पड़ता हो उन स्थानों को न चुनें.
कलम बांधने के लिए उद्यान विभाग और पंजीकृत पौधालयों के प्रशिक्षित मालियों का सहयोग लिया जा सकता है.
In-situ ग्राफ्टिंग द्वारा विकसित आम के बाग के कई लाभ हैं.
- पौधों में तीव्र गति से अधिक बढ़त होती है.
- बाहर से कलमी पौधे लाकर लगाने में अधिक मृत्यु दर के विपरी in-situ ग्राफ्टिंग में सभी पौधे जीवित व स्वस्थ रहते हैं.
- बाग से जल्दी और कम खर्च में उपज प्राप्त होती है.
- क्योंकि कलमों का चुनाव हम स्वयंम स्वस्थ मातृ वृक्षों से करते हैं इसलिए फैलने वाले रोगों (माल फॉर्मेशन आदि) से बचा जा सकता है.
- बाग में सिंचाई की कम आवश्याकता होती है क्योंकि बीजू पौघे मूल वृन्त की जड़ें काफी गहरी चली जाती हैं.
- बाग में लगे सभी पौधों की वृद्धि एक समान रहती है जबकि नर्सरी से रोपित किए गए कलमी पौधों की नहीं. इसकी वजह यह है कि नर्सरी से रोपित कलमी पौधों में मृत्यु दर काफी रहती है और हर साल मरे हुए पौधों के स्थान पर नई जीवित पौध लगाई जाती है. यह क्रम कई वर्षों तक चलता रहता है. इसलिए इन बागों की वृद्धि दर समान नहीं रहती.
- कम लागत में बगीचा विकसित होता है.
- आम के पौधों को शुरु के वर्षो में पाले से काफ़ी नुकसान पहुंचाता है. शुरु के तीन सालों तक तक पौधों को 15 नवम्बर के बाद मार्च तक सूखी घास से चारों तरफ से ढक कर रखें. दक्षिण दिशा की तरफ थोड़ा खुला छोड दें. पौधों के थावलों में नमी बनी रहे जिससे पाले का असर पौधों पर न हो पाए. सूखे में पाला पौधों को ज्यादा नुकसान करता है.
यूपी की तरह चल रही हैं योजनाएं
इस प्रकार In-situ ग्राफ्टिंग विधि द्वारा उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित किए जा सकते हैं. हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर आदि क्षेत्रों में आम के बाग in situ (यथा स्थान ग्राफ्टिंग) विधि से ही विकसित हुए हैं.
राज्य बनने पर आशा जगी थी कि योजनाओं में यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सुधार होगा किन्तु ऐसा नहीं हुआ. आज भी योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उत्तर प्रदेश के समय चलती थीं. उच्च स्तरीय बैठकों में योजनाओं की समीक्षा के नाम पर केवल कितना बजट आवंटित था और कितना अब तक खर्च हुआ इसी पर चर्चा होती है. यदि धरातल पर योजनाएं नहीं उतर रही हैं तो ज़रूरत इस बात की है कि विचार इस पर किया जाए कि उसमें सुधार कैसे करना है.
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