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प्लाजमा थेरेपी (Plasma Therapy) के जरिए स्वस्थ होने वाले दोनों लोगों ने अस्पताल स्टाफ विशेष तौर पर डॉक्टर, नर्स और वार्ड बॉय को शुक्रिया कहा. उन्होंने कहा कि अस्पताल में किए गए देखभाल और इलाज के बदौलत ही वो ठीक होकर घर लौट रहे हैं
कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों ने कहा शुक्रिया
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में स्वस्थ होकर निकलने वाले प्रकाश मेहरा और राजेंद्र नाम के दोनों मरीजों में एक उत्तराखंड पुलिस के सब-इंस्पेक्टर हैं. सुशीला तिवारी अस्पताल में कोरोना के नोडल अफसर डॉ. परमजीत सिंह के मुताबिक दोनों मरीजों में गंभीर निमोनिया के लक्षण थे. इसके अलावा उनका ब्लड प्रेशर लगातार ऊपर-नीचे हो रहा था. साथ ही फेफड़ों में भी गंभीर संक्रमण था. जिससे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. इसीलिए प्लाज्मा थेरेपी का सहारा लेने का निर्णय लिया गया.
डिस्चार्ज होकर जा रहे दोनों मरीजों से डॉ. परमजीत ने उनका अनुभव पूछा तो दोनों अस्पताल स्टाफ विशेष तौर पर डॉक्टर, नर्स और वार्ड बॉय का शुक्रिया करते नहीं थके. उन्होंने कहा कि अस्पताल में किए गए देखभाल और इलाज के बदौलत ही वो ठीक होकर घर लौट रहे हैं. जाते-जाते यह दोनों डॉ. परमजीत से जरूरत पड़ने पर प्लाज्मा डोनेट का वादा कर गए.अस्पताल के सीएमएस डॉ. अरुण जोशी के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी के कई सारे मानक तय हैं. जो बेहद चुनौतीपूर्ण हैं. लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों की कड़ी मेहनत ने यह कर दिखाया. डोनर को इसके लिए तैयार करना एक चुनौती थी लेकिन डोनर इसके लिए मान गए. जिस ब्लड ग्रुप के प्लज्मा की जरूरत थी वो प्लाज्मा मिल गया. एक तरीके से कहें तो अस्पताल के डॉक्टरों का पहला प्रयोग सफल रहा.
(कॉन्सेप्ट इमेज)
क्या होती है प्लाज्मा थेरेपी
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. सी.पी भैसोड़ा प्लाज्मा थेरेपी को सरल शब्दों में समझाते हैं. डॉ. भैसोड़ा कहते हैं कि प्लाज्मा वही दे सकता है जिसके शरीर में पहले कोरोना वायरस का गंभीर संक्रमण हुआ है. और यह संक्रमण ठीक होकर उसके शरीर में एंटी बॉडी यानी कोरोना से लड़ने वाले सैनिक बनाते हैं. यह सैनिक उस व्यक्ति के खून में प्लाज्मा के रूप में घुले रहते हैं. इन सैनिकों को कुछ मात्रा में स्वस्थ हो चुके व्यक्ति के शरीर से निकाला जाता है और कोरोना मरीज के शरीर में डाला जाता है. इससे गंभीर रूप से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में भी एंटी बॉडी नाम के सैनिक पहुंच जाते हैं. और धीरे-धीरे यह एंटी बॉडी अपना असर दिखाने लगते हैं और मरीज ठीक होने लगता है.
जिन मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया प्लाज्मा चढ़ने के 15 दिन बाद ठीक हो गए. डॉ. भैसोड़ा कहते हैं कि दोनों मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी की सफलता से पूरा हॉस्पिटल स्टाफ उत्साहित है. क्योंकि उन्हें गंभीर मरीजों को बचाने का महत्वपूर्ण हथियार मिल चुका है.
एम्स ऋषिकेश में भी शुरु हो चुकी है प्लाज्मा थेरेपी
सुशीला तिवारी अस्पताल के बाद एम्स ऋषिकेष ने भी अपने यहां प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत की है. माना जा रहा है कि इससे उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के संक्रमित मरीजों को बड़ी राहल मिलेगी. (शैलेंद्र नेगी की रिपोर्ट)
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