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बिहारी प्राइड के प्रतीक बन चुके सुशांत सिंह राजपूत
हाल-हाल तक सोशल मीडिया पर कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़े और अस्पतालों की बदहाली के वीडियोज वायरल हो रहे थे. टूट रहे तटबंधों और डूब रहे गांवों की तस्वीरें और बेघर हो रहे लोगों की व्यथाएं हमें संवेदनशील बना रही थीं. आज वहां इस बात के पल-पल के अपडेट्स हैं कि बिहार पुलिस किस तरह महाराष्ट्र में जाकर वहां की सरकार और वहां की व्यवस्था के विरुद्ध एक बिहारी युवा दिवंगत अभिनेता और अपनी मौत के बाद बिहारी प्राइड के प्रतीक बन चुके सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रही है.
इस न्याय की लड़ाई को लड़ने में हमारा युवा वर्ग, हमारा मध्यम वर्ग खूब उत्साहित है. वह तरह-तरह की जानकारियां जुटा रहा है, चाहे वह फेक ही क्यों न हों. वह दिशा पाटनी को रिया चक्रवर्ती मानने से भी गुरेज नहीं कर रहा. उसके पास पुख्ता किस्से हैं कि आदित्य ठाकरे, सूरज पंचोली और उसके साथियों ने सुशांत की पूर्व सेक्रेटरी का रेप करके खून किया था और यह राज सुशांत को मालूम हो गया था. इसी वजह से उसकी हत्या हो गयी. उसे यह भी मालूम है कि रिया चक्रवर्ती सुशांत को लूट रही थी. भले पुलिस ने इन किस्सों के बारे में विचार करना भी शुरू नहीं किया हो,लेकिन हम लोग अपना फैसला सुना चुके हैं.
बिहार डीजीपी ने कही ये बात
बिहार के डीजीपी बयान दे रहे हैं कि जिस रोज हम सुबूत जुटा लेंगे, रिया चक्रवर्ती को जमीन खोद कर निकाल लेंगे. कल तक इन्हीं डीजीपी को नाकारा और मीडिया में बने रहने के लिए हथकंडे अपनाने वाला बताने वाले लोग आज उनके इस बयान पर लहालोट हो रहे हैं. कोई उनसे यह नहीं पूछ रहा कि आठ साल बाद भी मुजफ्फरपुर की नवारुणा का केस क्यों सॉल्व नहीं हो पाया, उसके कातिलों को क्यों जमीन खोद कर नहीं निकाला गया. उस केस की इन्क्वायरी में तो डीजीपी खुद शामिल थे. जब सीबीआई के हाथ में मामला गया तो उसने वर्तमान डीजीपी से भी पूछताछ का समय मांगा है, ऐसा क्यों?
यह मान लें कि नवारुणा का केस एक जटिल मामला है, मगर जो बिहार पुलिस इस कोरोना काल में भी बढ़ते लूट, रेप और दूसरे अपराध पर काबू नहीं पा रही, वह मुम्बई में बिहारी प्राइड की रक्षा करने पहुंच गयी है. वह हमें नायक सरीखी लगने लगी है. खुद हमारे मुख्यमंत्री जो अब तक रोज कोरोना और बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए निर्देश जारी कर रहे थे, वे अब बयान दे रहे हैं कि अगर सुशांत के पिता ने कहा तो वे सीबीआई जांच की सिफारिश करेंगे. बहुत मुमकिन है कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ जाये और कामकाज में असफल साबित हो चुके सत्ताधारी दल इस मसले पर चुनावी बेड़ा पार कर जायें.मुख्यमंत्री बिहारी प्राइड के जाने-माने खिलाड़ी हैं…
दरअसल हमारे मुख्यमंत्री बिहारी प्राइड के जाने-माने खिलाड़ी हैं. ऐन 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने इसी तरह बिहारी डीएनए का सवाल उठाया था. उनका आरोप था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लोगों के डीएनए को खराब कहा है. वे इस बात को बिहारी प्राइड का सवाल बनाना चाह रहे थे, उन्होंने इसके लिए पूरे बिहार के लोगों के डीएनए सैंपल कलेक्ट करवाये थे और पीएम को भेजा था. उन्हें इस अभियान में सफलता भी मिली. उनका गठबंधन चुनाव जीत भी गया. मगर हम सब जानते हैं कि नीतीश कुमार महज दो साल बाद फिर से उसी व्यक्ति के साथ खड़े हुए, जिन्होंने कथित रूप से उनके और बिहार के डीएनए को खराब बनाया था. यह उनका फेवरेट गेम है और इस चुनाव में वे संभवतः इसे फिर से खेल डालेंगे.
इस बात के संकेत इस तरह मिलते हैं कि डिजिटल रैलियां कर रहे राजनेता अब लालू वर्सेज नीतीश काल का राग छोड़ कर सुशांत के मसले पर जनता को संबोधित करने लगे हैं. भागलपुर के सुल्तानगंज में एक स्थानीय नेता ने तो उनके नाम पर एक फिल्म सिटी बनाने की घोषणा तक कर डाली है.
हर किसी के लिए बिहारी प्राइड क्यों नहीं?
हालांकि बिहारी प्राइड के सवाल से मेरी कोई असहमति नहीं है. मगर इस बात से मेरी असहमतियां जरूर हैं कि बिहारी प्राइड का सवाल हर बात एक सफल और बड़े व्यक्ति के साथ ही क्यों जुड़ता है. 12 साल पहले इसी महाराष्ट्र में चलती बस पर राहुल राज नामक बिहारी युवक का एनकाउंटर कर दिया गया था. हमने उसे न्याय दिलाने की कितनी कोशिशें कीं? उसी महाराष्ट्र और महाराष्ट्र ही नहीं असम में और दूसरे कई राज्यों में जब बिहार के लोगों के साथ बदतमीजी होती थी, तो वह बिहारी प्राइड का सवाल क्यों नहीं बनता था?
सवाल यह भी है कि बिहारियों के साथ बाहर हुए अन्याय, अपमान और दुर्व्यवहार ही क्यों हममें बिहारी प्राइड की भावना जगाते हैं. जब एक बिहारी अफसर एम्स की सीढ़ियों पर रात भर पड़ा रहता है, तो हमारा बिहारी प्राइड क्यों नहीं जागता? हमारा बिहारी प्राइड तब क्यों नहीं जागता, जब बशिष्ठ नारायण सिंह जैसे गणितज्ञ की लाश एंबुलेंस के इंतजार में पीएमसीएच के बाहर पड़ी रहती है? हर साल बाढ़ में डूबते और बेघर होते लोगों की बदहाली देखकर, चमकी बुखार से मरते बच्चों को देखकर, जल निकासी की व्यवस्था फेल होने की वजह से डूब जाती राजधानी की बदहाली को देखकर हमारा बिहारी प्राइड क्यों नहीं जागता? अपने ही राज्य के मजदूरों को पैदल हजारों किमी का रास्ता नापते देख, ट्रेनों में मरते देख हमारा प्राइड क्यों नहीं जागता?
हम हमेशा चाहते हैं कि दूसरे राज्य वाले हमारे साथ अच्छा व्यवहार करें और यह बहुत वाजिब सवाल है. मगर हम ऐसा क्यों नहीं चाहते कि हमारी खुद की राज्य सरकार हमारे लोगों के साथ मानवतापूर्ण व्यवहार करें. हमारे बच्चों को कुपोषण से और चमकी बुखार से मरने नहीं दे. हमारे अस्पतालों में लाशों का सम्मान हो और गर्भवती महिलाओं के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था कराये.
थोड़ी तो कोशिश करे कि मानव विकास सूचकांक में हम आखिरी स्थान पर न रहें. हर सूचकांक में, हर टैली में बिहार के नाम को आखिर में देखने पर हमारा बिहारी प्राइड क्यों नहीं जागता?
मगर बिहार के सत्ताधारी दल को मालूम है कि लोग इन सवालों को लेकर बहुत गंभीर नहीं होते. उसे पता है कि बिहारी प्राइड के सवाल को कैसे अपनी नाकामियों का पर्दा बनाया जा सकता है. हम भी हर बार सत्ता के इस खेल में फंसने के अभ्यस्त हो चुके हैं.
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