[ad_1]
वे सवाल रेप (Rape) से जुड़े हैं. बिहार में इन दिनों रेप के दो मामले सुर्खियों में हैं. पहला मामला अररिया जिले का है, जहां एक रेप पीड़िता को ही अदालत ने जेल भिजवा दिया. रेप पीड़िता ने अपनी परेशान मनोदशा में अदालत में कुछ कह दिया, जहां पीड़िता की टिप्पणियों को उसकी हताशा का लक्षण मानकर इग्नोर किया जाना चाहिए था. जज साहब ने उसे अदालत की अवमानना करार दिया. मामला जब राष्ट्रीय मीडिया में काफी हाईलाइट हुआ तो फिर उसे रिहा किया गया. मगर वे दो युवा जो उस पीड़िता की सहायता कर रहे थे अभी भी जेल में हैं, क्योंकि अदालत ने उन्हें भी अवमानना का आरोपी माना है. यह मामला तो न्याय व्यवस्था की विसंगतियों का है. दूसरा मामला कुछ अधिक संगीन है.
राजधानी पटना के पीएमसीएच से जुड़ा है
दूसरा मामला बिहार के सबसे बड़े अस्पताल राजधानी पटना के पीएमसीएच से जुड़ा है. उस अस्पताल में एक किशोरी कोरोना आइसोलेशन वार्ड में एडमिट थी. वहां अस्पताल के एक कर्मी ने उसके साथ रेप किया. पता चला कि जब उसके साथ वह कर्मी जबरन यौन संबंध बना रहा था, उस वक़्त वह ऋतुमति भी थी. कोरोना की संदिग्ध मरीज तो थी ही. वह किसी विवाद की वजह से अपना घर छोड़ आई थी और अकेली थी. इसलिये उसके साथ जोर जबरदस्ती की गई.
बिहार में अपराधिक घटनाओं का विवरण
इन दो मामलों के अपने अपने पहलू हैं, मगर जिस पहलू ने मुझे सबसे अधिक विचलित किया वह यह कि इस कोरोना काल में जब सामाजिक दूरी को ही बचाव का सबसे जरूरी उपाय माना जा रहा है. इन दोनों मामलों के आरोपियों ने खुद के लिये तो कोरोना के खतरे को इग्नोर किया ही, इन दोनों स्त्रियों के साथ भी उनकी मर्जी के बगैर न सिर्फ रेप किया बल्कि कोरोना के खतरे में झोंक दिया. अगर इस कोरोना काल में भी हमारी स्त्रियां पुरुषों के यौन हमलों से सुरक्षित नहीं. अगर कोरोना भी रेपिस्टों को भयभीत नहीं कर पा रहा तो आखिर ये लोग कब डरेंगे. कौन सी ऐसी परिस्थिति आयेगी, जब ये रेप करना बन्द कर देंगे.
प्रेम जहां सामने वाले की खुशी देखता हैइन मामलों के बारे में जानकर मुझे उस आलेख की याद आ गयी जिसका जिक्र इस आलेख की शुरुआत में किया गया है. कितना अजीब है कि इस दौर में लोग प्रेम करने से परहेज कर रहे हैं, मगर रेप करने से नहीं. सम्भवतः यही फर्क है प्रेम का और रेप का. प्रेम जहां सामने वाले की खुशी देखता है, उसकी भावनाओं की, उसके हित की परवाह करता है. रेप करने वाले सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं. अपनी संतुष्टि, और इस ख्वाहिश में वे इतने अंधे हो जाते हैं कि वे अपने जीवन को और दूसरों के जीवन को भी दांव पर लगाने में नहीं हिचकते.
इन विचारों से गुजरते हुए मैंने सोचा कि जरा इस कोरोना काल में बिहार में हुए अपराध से संबंधित आंकड़ों को देख लूं. बिहार पुलिस के पोर्टल पर अभी जून के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. मगर अप्रैल और मई के आंकड़ों को देख कर जरा भी एहसास नहीं होता कि कोरोना की वह से अपराध में कोई कमी आयी हो. संज्ञेय अपराध की संख्या में अप्रैल में थोड़ी गिरावट जरूर दर्ज की गई, मगर मई आते आते सब पूर्ववत हो गया. उतनी ही चोरी, उतनी ही डकैती, इस दौरान लोग अगवा भी किये गए. दंगों की संख्या में तो बढ़ोतरी हो गयी.
रेप के 202 मामले दर्ज किए गए
सबसे अजीब लगा रेप के आंकड़ों को देख कर. अप्रैल और मई इन दो महीनों में बिहार राज्य में रेप के 202 मामले दर्ज किए गए. अगर आप पिछले आंकड़ों को देखेंगे तो समझ आएगा कि इन आंकड़ों में कोई बदलाव नहीं आया है. जनवरी में रेप के जितने मामले दर्ज हुए थे अप्रैल में भी तकरीबन उतने ही मामले दर्ज हुए. मई में तो इन मामलों में बढ़ोतरी हो गयी. मतलब साफ है कि जो लोग महिलाओं के साथ जबरन यौन संबंध बनाने का अपराध करते रहे हैं, उन्हें कोरोना ने जरा भी भयभीत नहीं किया.
यहां रेपिस्टों ने कोरोना आइसोलेशन वार्ड में भर्ती मरीज को भी नहीं बख्शा. यह सिर्फ हाल का मामला नहीं है, इससे पहले भी शुरुआती दिनों में गया के एक अस्पताल में एक हॉस्पिटल स्टाफ द्वारा एक ऐसी ही महिला के साथ रेप का मामला सामने आया था. इस शुक्रवार को मुम्बई के एक अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीज के साथ रेप की वारदात भी सामने आई.
स्त्रियां कभी भी सुरक्षित नहीं हैं
मतलब साफ है, स्त्रियां कभी भी सुरक्षित नहीं हैं. भीषण आपदाओं की स्थिति में भी नहीं. बाढ़ और अकाल के दौर में तो ऐसे मामले बढ़ ही जाते हैं. मगर संक्रामक रोग के इस वैश्विक आपातकाल में भी जब रेप के मामले घट नहीं रहे तो सरकार के साथ- साथ समाज को भी इस मसले पर गंभीरता से सोचना चाहिये. उन मनोरोगियों के इलाज की बात गंभीरता से करनी चाहिये, जो खुद के साथ- साथ स्त्रियों और इस पूरे समाज के लिये खतरा बने हुए हैं.
[ad_2]
Source