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पटना:
बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हमेशा दावा करते हैं कि वो ना किसी को फंसाते हैं और ना बचाते हैं. लेकिन जब से उन्होंने लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेनें के बाद मेवालाल चौधरी को सहयोगी भाजपा के दबाव के बाद इस्तीफ़ा लिया, उसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे सामान आरोप झेल रहे अशोक चौधरी के प्रति वो नरम क्यों हैं ? हालांकि उनकी पार्टी मेवालाल चौधरी के इस्तीफ़े के बाद ये दावा कर रही हैं कि उन्होंने सार्वजनिक जीवन में सुचरिता का एक और उदाहरण पेश किया है.
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लेकिन सवाल यह है कि अशोक चौधरी के ख़िलाफ़ क्या आरोप हैं ?
अशोक चौधरी जो वर्तमान में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में शिक्षा ,भवन निर्माण समेत पांच विभाग का प्रभार संभाल रहे हैं. उन पर किसी एजेन्सी की चार्जशीट तो नहीं हैं लेकिन बैंकिंग फ़्रॉड के एक मामले में उनकी पत्नी नीता केस्कर चौधरी पर 30 जून 2014 को सीबीआई ने आईपीसी की धारा 420, 409,467 , ,468और 120 B के तहत सजिश रचने के आरोप पर चार्ज शीट दायर की थी. ये तीन करोड़ का बैंक से क़र्ज़ लेकर एक फ़ैक्टरी लगाने के नाम पर बैंक से फ़्रॉड करने का मामला था.
इस आरोप पत्र में अशोक चौधरी का ज़िक्र दो बार है. जब बैंक का क़र्ज़ एनपीए हो गया तो अशोक चौधरी ने 19 सितम्बर 2009 को बैंक द्वारा बुलायी गयी बैठक में भाग लिया और ये आशवासन दिया कि पटना के ज़िला अधिकारी द्वारा अनुमति मिलने के बाद वो जल्द उत्पादन शुरू करेंगे. उनकी उपस्थिति इस चार्ज शीट के अनुसार बैंक के रिकॉर्ड में दर्ज है.
सीबीआई जांच अधिकारियों द्वारा एक और फ़्रॉड का ज़िक्र है. नीता की कम्पनी को क़रीब एक करोड़ साठ लाख वर्किंग कैपिटल के लिए बैंक से दिया गया लोन जो वैशाली पैंट लिमिटेड के खाते में गया जिसके निदेशक एक अरविंद चौधरी थे जिनके ज़मीन पर वर्तमान में मंत्री अशोक चौधरी का एक पेट्रोल पंप था. लेकिन जांच में ये भी सीबीआई ने पाया कि अरविंद चौधरी अपनी ज़मीन बेचते हैं और उसका पैसा सीधे अशोक चौधरी और उनकी पत्नी के एसबीआई के संयुक्त खाते में जाता है.
हालांकि इस मामले में जांच कर रही टीम ने अशोक चौधरी के ख़िलाफ़ भी आरोप पत्र दायर करने की अनुमति मांगी थी लेकिन उस समय इसकी मंज़ूरी नहीं मिली. लेकिन जब नीता केस्कर चौधरी इस आरोप पत्र के ख़िलाफ़ पटना हाई कोर्ट गयी तब एक सदस्य बेंच ने इस मामले पर 31 मई , 2016 को रोक लगा दी. लेकिन मंत्री अशोक चौधरी का कहना हैं कि सीबीआई ने उनके ख़िलाफ़ पहले कुछ नहीं कहा. दूसरा सर्वोच्च न्यायालय ने आज तक उनका पक्ष नहीं सुना. इसलिए फ़िलहाल उन्हें मामले में घसीटना विशुद्ध राजनीति के अलावा कुछ नहीं है. लेकिन इसके बाद सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया और वहां पटना हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी गयी. ये फ़ैसला भी क़रीब तीन वर्ष पूर्व आया.
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