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हाईकोर्ट (High Court) ने केस की सुनवाई करते हुए सिर्फ तीन लोगों को डकैती (Dacoity) के जुर्म में हुई सजा को रद्द कर दिया और रिहाई के आदेश दिए. कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि तीन लोगों से डकैती नहीं होती. डकैती के लिए पांच या उससे अधिक लोगों का होना जरूरी है.
हाईकोर्ट स्पेशल कोर्ट (डकैती) कानपुर देहात ने तीन अभियुक्तों की डकैती की धाराओं में सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया. डकैती के आरोपी बलबीर और अन्य की आपराधिक अपील पर जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने यह दिया आदेश. हाईकोर्ट का कहना है कि इस मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि घटना में पांच या उससे अधिक लोग शामिल थे.
ये है मामला
दरअसल मामला 26-17 जून 1981 का है. कानपुर देहात के थाना ककवन के गांव बाजरा माजरा बैकुठिया में राजकुमार, ओछेलाल और गंगाराम के घरों में डकैती पड़ी. राजकुमार की तरफ से थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई कि उनके घर छह की संख्या में डकैतों ने लूटपाट की. इसके बाद पुलिस ने तीन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया. राजकुमार ने तीनों को पहचान भी लिया. जिसके बाद स्पेशल कोर्ट ने चश्मदीद के गवाह के आधार पर बलबीर और लालराम को पांच-पांच वर्ष और मोहलपाल उर्फ चकेरी ने चूंकि फायरिंग भी की थी इसलिए उसे सात वर्ष की सजा सुनाई.बचाव पक्ष की थी ये दलील
जिसके बाद तीनों ने हाईकोर्ट में अपील की. बचाव पक्ष का कहना था कि डकैती का अपराध साबित करने के लिए घटना में पांच या उससे अधिक लोगों की संललिप्तता साबित होना जरूरी है. बचाव पक्ष का कहना था कि अधीनस्थ अदालत ने यह साबित नहीं किया है कि तीन के अलावा अन्य लोग भी शामिल थे. ऐसे में डकैती के अपराध में सजा सुनाना गलत है. हाईकोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए तीन अभियुक्तों को सुनाई गई सजा रद्द कर दी और रिहाई के आदेश दिए.
(इनपुट: सर्वेश दुबे)
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