[ad_1]
वोटरों से नहीं हो पा रहा है सीधा संपर्क
दरअसल आमतौर पर चुनाव में नेता प्रचार के दौरान जनता से सीधा-सीधा संपर्क करते हैं लेकिन कोरोना के कारण फिलहाल बिहार में ऐसा होना संभव नहीं दिख रहा है, तो फिर सवाल उठता है कि जनता के बीच नेता अपनी बात रखेंगे कैसे. चुनाव लड़ने को इच्छुक नेताओं को इस बार एक नई तकनीक जिसे डिजिटल चुनाव भी कहा जा रहा है, इसी के सहारे चुनाव लड़ना है और इसी के माध्यम से जनता से वोट की अपील भी करना है लेकिन इसी बात ने नेताओं को परेशान कर रखा है. चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष
अशोक राम, विधायक कांग्रेस कहते हैं कि पहली बार हमें इस तरह के चुनाव का सामना करना पड़ रहा है. डिजिटल मोड में चुनाव प्रचार करना आसान नहीं है. कई वर्चुल रैली करनी होगी जिसमें ख़ासी रक़म खर्च करनी होगी इसलिए खर्च बढ़ाना चाहिए.महेश्वर हजारी, मंत्री और जेडीयू के नेता कहते हैं कि डिजिटल मोड में चुनाव होने और प्रचार करने के लिए सूचना तकनीक का प्रयोग करना होगा, ऐसे में जनता के बीच पहुंचने के लिए कार्यकर्ताओं को सूचना तकनीक से लैस करना होगा साथ ही इसी तकनीक से जनता के बीच पहुंचना होगा तो राशि तो खर्च होगी ही लेकिन कितनी राशि खर्च होगी इस बारे में फ़िलहाल हम भी नहीं जानते हैं.
ये तो हुई नेताओं की बात लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि इस प्रचार में नेताओं के समक्ष क्या-क्या समस्या आ सकती है
परेशानी नम्बर 1. डिजिटल माध्यम से जनता से सीधा संवाद करने के लिए डिजिटल माध्यम पर ज़्यादा ध्यान देना होगा जिसका खर्च बढ़ सकता है चाहे सोशल मीडिया हो या कोई और माध्यम
परेशानी नम्बर 2. जनता से और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित करने के लिए वर्चुअल रैली करना होगा वो भी कम से कम दस. एक रैली में खर्च लगभग ढाई से तीन लाख तक आ सकता है
परेशानी नम्बर 3. एक विधानसभा क्षेत्र में नेताओ को कई कार्यकर्ता रखने होते हैं जिनको सोशल मिडिया पर एक्टिव रखने के लिए स्मार्टफ़ोन देना होगा जिससे वो सोशल मीडिया के माध्यम से जनता से कनेक्ट कर सकें, इसमें भी अच्छी खासी राशि खर्च होगी
परेशानी नम्बर 4. इस वक़्त चुनाव आयोग विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए प्रति उम्मीदवार 28 लाख की राशि खर्च करने की इजाजत देता है, जो नेताओं को डिजिटल चुनाव के दौर में प्रचार के लिए कम राशि लग रही है.
एक हुए सत्ता और विपक्ष के सुर
सता पक्ष हो या विपक्ष हर किसी के लिए ये समस्या खड़ी हो सकती है लेकिन इसके साथ ही डिजिटल चुनाव को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. विरोधी दल के नेताओं को लगता है कि डिजिटल चुनाव में जो ज़्यादा पैसे वाले नेता हैं वो खर्च कर चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं. इस पर भी चुनाव आयोग को ध्यान देना होगा. भाजपा विधायक संजीव चौरसिया कहते हैं कि डिजिटल तकनीक से जनता के बीच पहुंचना आसान होगा लेकिन इसके लिए सूचना तकनीक पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर रहना होगा और ऐसे में खर्च तो बढ़ेगा ही लेकिन एक बात तय है की इसमें पारदर्शिता भी आएगी. शक्ति सिंह यादव जो कि राजद विधायक हैं कहते हैं कि डिजिटल तकनीक से प्रचार करने से कोरोना के दौर में आसान तो होगा लेकिन जिनके पास पैसे ज़्यादा है उनके लिए राह आसान हो जाएगा लेकिन जिनके पास पैसे नहीं है उनके लिए मुश्किल बढ़ जाएगी.
चुनाव आयोग बोला
चुनाव आयोग भी पहली बार डिजिटल मोड के चुनाव प्रचार के हालात में चुनाव करवाने की तैयारी कर रहा है. नेताओं की तरफ से चुनावी खर्च की राशि बढ़ाने के सवाल पर बैजू नाथ जो कि बिहार निर्वाचन आयोग के उप निर्वाचन पदाधिकारी हैं कहते हैं कि 1961 के नियम 90 के तहत खर्चो की अधिकतम सीमा निर्धारित की जाती है. बिहार में अभी तक यह राशि 28 लाख है. यदि आने वाले दिनों में नियम में संशोधन होता है तो खर्च की सीमा बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए कमीशन के संज्ञान में लाया जाएगा और उसके प्रस्ताव पर केंद्र सरकार को फैसला करना है.
[ad_2]
Source