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इन सवालों के जवाब दिए उत्तराखंड होम्योपैथिक मेडिसिन बोर्ड रजिस्ट्रार डॉक्टर शैलेंद्र पांडेय ने. आप भी पढ़िए उनकी बात उन्हीं के शब्दों में…
मजबूत विकल्प है होम्योपैथी
होम्योपैथी उत्तराखंड के दूर दराज के इलाकों में एलोपैथी सिस्टम का विकल्प पूरी तरह से हो सकती है. चूंकि यह बहुत साफ़ है कि एलोपैथिक डॉक्टरों की यहां बहुत कमी है. अगर कोई डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में तैनात होता भी है तो वह एक-2 महीने में वहां से भारकर शहर की तरफ चला जाता है या परास्नातक की तैयारी या पढ़ाई करने चला जाता है. यह उत्तराखंड राज्य का इतिहास रहा है, जिससे अभी तक दूर-दराज के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है.इस कमी को होम्योपैथी की मदद से दूर किया जा सकता है. उत्तराखंड में होम्योपैथी के लगभग 1000 रजिस्टर्ड डॉक्टर हैं जो दूर-दराज और पर्वतीय क्षेत्रों में सेवा देने को तत्पर हैं. कई दूर दराज के क्षेत्रों में निवास और प्रैक्टिस भी कर रहे है. इन्हें स्थानीय भाषा का भी उन्हें ज्ञान होता है, जिससे इनके लिए काम करना सहज हो जाता है.
उत्तराखंड होम्योपैथिक मेडिसिन बोर्ड रजिस्ट्रार डॉक्टर शैलेंद्र पांडेय कहते हैं कि होम्योपैथी उत्तराखंड के दूर दराज के इलाकों में एलोपैथी सिस्टम का विकल्प पूरी तरह से हो सकती है.
इसलिए होगी कारगर साबित
पढ़ाई के समय एलोपैथी तथा होम्योपैथी के एलाइड विषय एनाटोमी, फ़िज़ियोलॉजी, पैथोलॉजी, एफ़एमटी, सर्जरी, प्रैक्टिस ऑफ मेडिसिन, पीएसएम, गायनी एंड ऑब्स, ईइनटी, ऑप्थलमोलॉजी, पेडियाट्रिक्स आदि एक ही होते हैं. केवल फार्मेसी ही अलग होती है.
इंटर्नशिप में होम्योपैथी के छात्र भी सभी तरह के प्रशिक्षण तथा मैनेजमेन्ट, फर्स्ट एड, इमरजेंसी आदि में प्रशिक्षित हो जाते हैं. इस संबंध में 6 माह का ब्रिज कोर्स करके इन्हें और भी निपुण बनाया जा सकता है.
आज उत्तराखंड एवं अन्य राज्यों में COVID-19 के क्वारंटाइन सेंटरों, स्क्रीनिंग, सर्विलांस, टेस्टिंग आदि में 99 प्रतिशत होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टर और सहायक काम कर रहे हैं. एक वर्ष पहले उत्तराखंड में डेंगू महामारी के रूप में फैला था तब भी होम्योपैथिक विभाग ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था और प्रिवेंटिव होम्योपैथिक दवा और होम्योपैथिक इलाज के माध्यम से काफी नियंत्रित किया था.
पहाड़ों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद
चूंकि पर्वतीय क्षेत्रों में लैब टेस्ट और डायग्नोस्टिक सेंटरों की भारी कमी है, इसलिए होम्योपैथी काफ़ी कारगर साबित हो सकती है. होम्योपैथी का इलाज प्रायः लक्षणों के आधार पर किया जाता है और यह एलोपैथी की तुलना में सस्ती एवं सुलभ है. इसलिए यह दूर दराज़ के क्षेत्रों में और ज्यादा लाभकारी होगी.
यदि होम्योपैथिक चिकित्सकों की तैनाती दूर दराज़ क्षेत्रों में की जाती है तो वे लंबे समय तथा हमेशा के लिए उपलब्ध रहेंगे. कई ऐसे सर्जिकल, एक्यूट तथा इमरजेंसी केस हैं जहां होम्योपैथिक दवाइयां काफी असरकारक हैं जैसे-एक्यूट केस, इन्जरी, हेड इंजरी, फ़ीवर, पथरी, कॉलिक, मातृ एवं शिशु रोग, पेट का दर्द आदि. असाध्य रोगों में तो यह काम करती ही है.
पुणे में तो 100 बेड का एक होम्योपैथिक हॉस्पिटल 2018 से ही चल रहा है. डॉक्टर अमरसिन्हा डी निकम के आदित्य होम्योपैथिक अस्पताल में सभी बीमारियों और एमरजेंसी मामलों का इलाज सिर्फ़ होम्योपैथी से ही किया जाता है.
एमरजेंसी केस सिर्फ़ 10%
दूर-दराज के एलोपैथी चिकित्सालयों में भी एक्सीडेंटल केस में प्राथमिक उपचार देकर उच्च सुविधा वाले चिकित्सालयों में रेफ़र किया जाता है. यह काम होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा भी किया जा सकता है.
इसके अलावा सभी राज्यों में एमरजेंसी केस केवल 5-10% ही होते हैं, बाकी के 90-95% सामान्य तथा असाध्य बीमारियों के होते हैं, इसमें होम्योपैथिक औषधियों द्वारा सफलतापूर्वक इलाज किया जाता है.
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