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1972 में अलग विश्वविद्यालय के आंदोलन में पिथौरागढ़ के दो लोगों की गोली लगने से जान तक चली गई थी.
अल्मोड़ा यूनिवर्सिटी से कोई फ़ायदा नहीं
1972 में अलग विश्वविद्यालय के आंदोलन में पिथौरागढ़ के योगदान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आंदोलन में दो लोगों की गोली लगने से जान तक चली गई थी. छात्रों के उग्र आंदोलन से डरी तत्कालीन सरकार ने कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी तो खोल दी लेकिन पिथौरागढ़ में सीमांत विश्वविद्यालय की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
अब एक बार फिर यूनवर्सिटी के बजाय पिथौरागढ़ में यूनवर्सिटी कैंपस से छात्र छला हुआ महसूस कर रहे हैं. छात्रों का तर्क है कि अल्मोड़ा से कुमाऊं यूनिवर्सिटी नैनीताल की दूरी मात्र 65 किलोमीटर है जबकि पिथौरागढ़ से अल्मोड़ा पहुँचने के लिए 120 किलोमीटर का सफर तय करना होता है. इसकी वजह से अल्मोड़ा यूनिवर्सिटी का फायदा बॉर्डर के लोगों को नही के बराबर होगा.विवि बनाएं वरना ऐसे ही रहने दे
आंदोलनकारी इस बात से भी हैरान हैं कि जब मांग अलग यूनिवर्सिटी की उठती रही है तो आखिर सरकार ने कैम्पस कॉलेज क्यूं दिया? कांग्रेस से जुड़े पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष मुकेश पंत इसे धोखा मानते हुए कहते हैं कि महाविद्यालय को कैम्पस बनाने से कोई फायदा नहीं होगा, उल्टा छात्र संख्या जरूर कम हो जाएगी.
फ़िलहाल पिथौरागढ़ महाविद्यालय में 8,000 के करीब छात्र हैं लेकिन कैम्पस बनने के बाद यहां अधिकतम three हज़ार छात्रों को ही प्रवेश मिलेगा. भाजपा से जुड़े छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र रावत मानते हैं कि यूनिवर्सिटी की मांग में एक कदम सरकार आगे बढ़ी है. साथ ही एक नया महाविद्यालय जरूर खोला जाना चाहिए, ताकि जिन छात्रों को कैम्पस में प्रवेश न मिल पाए उनके पास महाविद्यालय का विकल्प हो.
रावत कहते हैं कि उनकी कोशिश केंद्रीय विश्वविद्यालय खुलवाने की भी है. बहरहाल सरकार के ताजा फैसले का कई संगठन विरोध जता रहे हैं. आंदोलनकारी संगठनों का साफ कहना है कि अगर सरकार बॉर्डर यूनिवर्सिटी बना सकती है तो ठीक है. नहीं तो बेहतर होगा कि महाविद्यालय की वर्तमान स्थिति को बरकरार रखा जाए.
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