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सरकार प्रवासियों को रोज़गार देने की बात कर रही है मगर जो पहले से ही यहां रजिस्ट्रेशन कराकर बैठे हैं उनको कब रोज़गार मिलेगा, यह पता नहीं है.
रजिस्ट्रेशन में कमी
दरअसल महानगरों से कोरोना के चलते प्रवासी पहाड़ चढ़े ज़रूर हैं मगर रोज़गार कार्यालय अब भी इनसे दूर ही है. लाखों प्रवासियों के लौटने के बाद भी नैनीताल के रोज़गार कार्यालय में रोज़गार के लिए पंजीकरण में कमी आई है.
एक नज़र पिछले eight साल के आंकड़ों पर
साल |
पंजीकरण करने वाले बेरोज़गार |
2012 | 7369 |
2013 | 7106 |
2014 | 10510 |
2015 | 8913 |
2016 | 7377 |
2017 | 6997 |
2018 | 7120 |
2019 | 5463 |
लॉकडाउन लगने के बाद मार्च 22 के बाद अप्रैल महीने में 129 लोगों ने ही रोज़गार के लिए आवेदन किया तो मई में 137 और जून में 100 लोग ही रोज़गार मांगने यहां पहुंचे.
हर प्रवासी को रोज़गार का दावा
कोरोना के संक्रमण के बेरोज़गार हुए लोग लौटे तो सरकार भी केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं के साथ मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजनाओं का लाभ देने का प्लान तैयार किया है. कुमाऊं मण्डल में ही लाखों लौटे बेरोज़गारों को उनकी योग्यता के अनुसार काम देने के प्रयास किए जा रहे हैं.
कुमाऊं कमिश्नर और मुख्यमंत्री के सचिव अरविंद सिंह ह्यांकी कहते हैं कि सभी डीएम को निर्देश दिए हैं कि प्रवासियों की क्षमता के अनुसार उनको केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी दें और ज़िलों में भी एक ऐसा कंट्रोल रूम ऐसा तैयार करें जो लोगों को रोज़गार के लिए जानकारी दे सके. उन्होंने कहा कि हर प्रवासी को रोज़गार यहीं दिया जाएगा ताकि पहाड़ से पलायन को कम किया जा सके.
कोई फ़ायदा भी नहीं
वैसे रोज़गार कार्यालय में जो लोग आ भी रहे हैं, वह वही हैं जो सालों से इस सेंटर से उम्मीद लगाए हैं. रोज़गार कार्यालय में नौकरी के लिए पंजीकरण करने पहुंची रंजना कहती हैं कि 2016 में उन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया था मगर आज तक कोई नौकरी यहां से नहीं मिली है.
हांलाकि सरकार प्रवासियों को रोज़गार देने की बात कर रही है मगर जो पहले से ही यहां रजिस्ट्रेशन कराकर बैठे हैं उनको कब रोज़गार मिलेगा, यह पता नहीं है. रंजना कहती हैं कि अगर सरकार सरकारी नौकरी नहीं दे सकती तो कम से कम प्राइवेट सेक्टर में नौकरी की योजना तैयार करे ताकि लोगों का घर चल सके.
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