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लालू यादव और नीतीश कुमार के 15-15 वर्षों के शासनकाल की तुलना करें तो एक बात समान नजर आती है कि पहले 5 साल में दोनों नेताओं ने ही समाज और राज्य के विकास की योजनाओं पर फोकस किया, लेकिन बाद के वर्षों में ‘विकास’ पर राजनीति हावी होती चली गई. लालू यादव ने जहां शुरुआती वर्षों में सामाजिक चेतना, गरीब कल्याण जैसे मुद्दों पर फोकस किया, वहीं नीतीश कुमार ने भी राजद के शासनकाल की कड़वी-याद बताते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे बुनियादी कामों से अपनी छवि बनाई. कभी राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के साथ रहे दोनों नेता आज धुर-विरोधी हैं. बिहार चुनाव के मद्देनजर इन दोनों नेताओं के कार्यकाल पर एक नजर.
लालू राज- गरीबों की स्थिति में सुधार
1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव ने कई योजनाएं लागू की, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर और समाज के पीड़ित वर्गों को लाभ हुआ. उदाहरण के लिए अविभाजित बिहार के 600 ब्लॉक में 2 साल के भीतर इंदिरा आवास योजना के तहत 60 हजार पक्का मकान बनवाए गए. ग्रामीण विकास विभाग के आंकड़ों की मानें तो साल 1996 तक बिहार के गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए लालू यादव की सरकार ने Three लाख से ज्यादा मकान बनवाए.लालू यादव ने न सिर्फ गांवों, बल्कि शहरों में रहने वाले गृहविहीन लोगों के लिए भी आवास योजनाओं को अंजाम तक पहुंचाने का काम किया. राजधानी पटना के विभिन्न इलाकों- राजा बाजार, शेखपुरा, लोहानीपुर, राजेंद्रनगर और कंकड़बाग में भी बहुमंजिला इमारतें तत्कालीन सरकार ने बनवाई, जिनसे गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को छत मिलने का सपना साकार हुआ. इन भवनों के निर्माण में अड़ंगा डालने वाले ‘प्रभुवर्ग’ की आपत्तियों से लालू तनिक भी नहीं डिगे, बल्कि आगे बढ़कर गरीबों को उनका हक दिलाया.
इसके अलावा, लालू-राज में शिक्षा व्यवस्था के धराशायी हो जाने की बात अक्सर की जाती है. लेकिन यह लालू ही थे जिन्होंने समस्तीपुर के पूसा से अपने तरह की अनोखी चरवाहा विद्यालय के शुरुआत की योजना लागू की थी. दूरदराज के गांवों में पढ़ने वाले बच्चों को उनके घर के पास स्कूल मुहैया कराने की इस योजना के तहत पूरे राज्य में 150 चरवाहा विद्यालय खोले गए. हालांकि बाद के दिनों में इस योजना की मिट्टी पलीद हो गई. इसके अलावा लालू यादव के हिस्से में न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाने का श्रेय भी जाता है. 90 के दशक में न्यूनतम मजदूरी को 16 रुपए 50 पैसे से बढ़ाकर लालू यादव ने एकबारगी 21 रुपए 50 पैसे तक कर दिया था. पूरे देश में बंगाल के बाद इस व्यवस्था को लागू करने वाला राज्य बिहार ही था.
जेडीयू ने कहा- बिहार के इतिहास पर धब्बा
लालू और राबड़ी देवी के शासनकाल में हुए काम भले सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हों, लेकिन जेडीयू 15 साल के राजद-काल को बिहार के इतिहास पर धब्बा बताती है. जेडीयू नेता आरसीपी सिंह ने इन तथ्यों को दरकिनार करते हुए बीते दिनों कहा कि नीतीश कुमार ने पिछले 15 साल में हर क्षेत्र में विकास का रिकॉर्ड बनाया है. 1990 से 2005 तक शिक्षा क्षेत्र में बिहार के बजट पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के सुशासन में बिहार को दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी, 20 मेडिकल कॉलेज, तीन विश्वविद्यालय, पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज, आईआईटी, एनआईएफटी जैसे संस्थान मिले हैं. यह शिक्षा के प्रति नीतीश कुमार की सोच को दर्शाता है.
उन्होंने नीतीश के 3 कार्यकाल के दौरान बिहार में सड़क निर्माण, बिजली सप्लाई, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार, प्राथमिक शिक्षा आदि काम भी गिनाए. इसके अलावा प्रदेश की eight हजार पंचायतों में प्राथमिक स्कूलों का भवन निर्माण जैसे काम की भी याद दिलाई. यह गौरतलब है कि नीतीश के प्रारंभिक शासनकाल में बिहार में अच्छी सड़कों का जाल बिछाने और प्राथमिक शिक्षा में सुधार की दिशा में सरकार ने कई कदम उठाए.
घोटाले और गड़बड़ियां
लालू और नीतीश, दोनों के कार्यकाल में बिहार ने बड़े घोटाले देखे. लालू राज में जहां लोगों ने चारा घोटाला देखा, वहीं नीतीश के शासनकाल में सृजन घोटाला भी चर्चा में रहा. 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले में जहां जिलों में स्थित राजकीय कोषागार से फर्जी बिलों के आधार पर बड़ी धनराशि की हेराफेरी की गई. वहीं सृजन घोटाले में आम लोगों के हक का पैसा निजी बैंक खातों में भेजा गया. सृजन घोटाले में दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक एक एनजीओ के जरिए 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि की गड़बड़ी की गई. दोनों ही मामलों की जांच सीबीआई कर रही है.
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