[ad_1]
Bihar Assembly Election 2020: इस दफा का चुनाव जीत-हार के लिए नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) राजनीतिक अस्तित्व भी तय करेगा. उन्हें पता है कि जीत गए तो बिहार में वो एक विकल्प बन सकते हैं और उखड़ गए तो दोबारा पांव जमाना आसान नहीं होगा.
तेजस्वी यह सब कुछ चुनाव जीतने से ज्यादा अपने अस्तित्व बचाने के लिए कर रहे हैं. क्योंकि उनको यह पता है कि इस दफा का चुनाव जीत-हार के लिए नहीं, बल्कि उनका राजनीतिक अस्तित्व भी तय करेगा. जीत गए तो बिहार में वो एक विकल्प बन सकते हैं और उखड़ गए तो दोबारा पांव जमाना आसान नहीं होगा. यही कारण है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी की हर चाल में स्पष्टता दिख रही है. इसकी एक बानगी पार्टी की वर्चुअल बैठक में दिखी. उन्होंने इसमें साफ कहा कि चुनाव में समय कम है और काम ज्यादा है. ऐसे में हमें अपने को सप्ताह भर के अंदर ढीले पड़े कल-पुर्जे को दुरुस्त कर लेना होगा और चुनाव मैदान में उतर जाना होगा.
सोशल मीडिया के साथ जमीन मजबूत करने की कवायद
पार्टी को इस सच का पता है कि उसके पास भाजपा और जदयू के मुकाबले आईटी सेल कमजोर है. यही कारण है कि पार्टी प्रवक्ता भाई वीरेंद्र कहते हैं कि 8000 से ज्यादा पंचायतों में पार्टी का सांगठनिक ढांचा है. हम उसे सक्रिय करने में लगे हुए हैं. हम अपने इस नेटवर्क के माध्य से सरकार के 15 सालों की विफलताओं को लेकर जाएंगे और उनको बताएंगे कि कैसे 15 सालों में बिहार का बंटाधार हुआ है. पार्टी के रणनीतिकार इस प्रयास में लगे हुए हैं कि भ्रष्टाचार, अपराध के साथ-साथ कोरोना और बाढ़ को गांव-गांव में मुद्दा बनाया जाए. कोरोना काल में मजदूरों के पीड़ादायक वीडियो और कोरोना काल में संक्रमित मरीजों के इलाज का वीडियो लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा वायरल किया जाए, ताकि लड़ाई आसान हो जाए. इसके लिए पार्टी ने अपने जिला स्तरीय कमेटी को तकनीक से लैस कर लिया है.पार्टी के जिला से प्रखंड तक के सभी पदाधिकारी को सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने को कहा गया है. जिले से लेकर प्रखंड तक के कार्यकर्ताओं को वाट्सएप ग्रुप बनवाया गया है. ताकि राज्य स्तरीय प्रवक्ताओं द्वारा पार्टी अध्यक्ष व वरिष्ठ नेताओं द्वारा किसी मुद्दे पर रखने जाने वाले विचारों को तुरंत आगे फारवर्ड किया जा सके. इससे पार्टी प्रवक्ताओं के बीच विचारों को लेकर कोई भिन्नता नहीं रहेगी.
साथ लेकर चलने की चुनौती
पांच दलों के जंबो जेट टीम (महागठबंधन) के बाद भी राजद को यह पता है कि मैदान में हमें अकेले ही लड़ना है और टीम को साथ लेकर चलना भी है. टीम के साथ रहने से बहुत लाभ नहीं है, लेकिन टीम टूट गई तो एनडीए मजबूत जरूर हो जाएगा. यही कारण है कि तेजस्वी को इसके लिए दो मोर्चे पर लड़ना पड़ रहा है. पहला भाजपा-जदयू की संयुक्त ताकत और आम लोगों के बीच नीतीश कुमार का इमेज और दूसरा महागठबंधन में सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षा. तेजस्वी जानते हैं कि एनडीए के तकनीकी सेल के आगे टिकना कठिन है, इसलिए महागठबंधन में सीटों को लेकर उछल-कूद करने वाले साथियों को साफ कर दिया है कि बिहार में राजद लीड की भूमिका में रहेगा और सीटों का बंटवारा भी महागठबंधन में साथी दलों को उनकी हैसियत के अनुसार किया जाएगा. क्योंकि महागठबंधन में जो बड़ा वोट बैंक है वह राजद के पास है. इसका सहयोगी दलों को लाभ भी होता है. लेकिन, सहयोगी दल के पास जो वोट बैंक है उसका लाभ राजद को नहीं हो पाता है. ऐसे में जिसे यह शर्त पसंद नहीं है उनके सामने विकल्प खुले हैं. महागठबंधन में राजद लीड भूमिका में रहेगी. कांग्रेस दूसरे स्थान पर और अन्य दलों को उनकी हैसियत के अनुसार टिकट दिए जाएंगे. तेजस्वी के इस दो टूक पर पहले तो महागठबंधन में सहयोगी दलों ने आना-कानी की, लेकिन कांग्रेस का साथ नहीं मिलने पर वे अब तेजस्वी की बात मानने को तैयार हैं. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)
[ad_2]
Source