[ad_1]
तो क्या कांग्रेस को लग रहा है कि कानपुर एनकाउंटर मामले के जरिए ब्राह्मण वोटबैंक (Brahmin Vote Bank) उसकी तरफ आ जाएगा और इस तरह उसका सियासी ‘विकास’ होने लगेगा. सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस यूपी में ब्राह्मण राजनीति को हवा क्यों दे रही है? इसके पीछे की असली वजह क्या है?
ये भी पढ़ें: राजनीति में अकेला अपराधी नहीं है विकास दुबे, भरे पड़े हैं ऐसे नेता
कांग्रेस की बेचैनी की ये है असली वजह सीएसडीएस (Centre for the Study of Developing Societies) के निदेशक संजय कुमार कहते हैं कि यूपी में ब्राह्मण eight से 10 फीसदी हैं और वे टेक्टिकल वोटिंग करते हैं. इसलिए विकास दुबे के एनकाउंटर को मुद्दा बनाने की एक वजह तो इस जाति की न्यूमेरिकल स्ट्रेंथ है. दूसरी वजह ये है कि इस जाति के लोग बीजेपी के उदय से पहले पारंपरिक तौर पर कांग्रेस को वोट किया करते थे.
विकास दुबे एनकाउंटर के बहाने योगी सरकार को खरीखोटी सुना रहे हैं कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम
कुमार के मुताबिक, जहां तक सवाल इस मुद्दे को वोट में बदल पाने का है तो मुझे ऐसी कोई बड़ी वजह नहीं दिखती कि ब्राह्मण बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शिफ्ट हो जाएं. चंद लोग सोशल मीडिया पर विकास दुबे को हीरो बताने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन आम ब्राह्मण नहीं. क्योंकि उसे अच्छी तरह से पता है कि विकास दुबे ने कई ब्राह्मणों की भी हत्या की है. जब उसने हत्या करते वक्त अपनी जाति के लोगों को नहीं छोड़ा तो फिर उसे लेकर आम लोग कांग्रेस को वोट क्यों करेंगे? इसलिए कांग्रेस का यह मिशन सफल होता नहीं दिखता.
ये भी पढ़ें: क्या यूपी में प्रियंका गांधी घेर रही हैं सपा-बसपा की सियासी जमीन?
ब्राह्मण वोटर और कांग्रेस
सीएसडीएस के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यूपी में सिर्फ 6 फीसदी ब्राह्मणों ने कांग्रेस को वोट दिया था. जबकि बीजेपी को 82 फीसदी का समर्थन हासिल हुआ था.
यूपी में लगभग 10 फीसदी आबादी वाले ब्राह्मण पूर्वांचल में ज्यादा प्रभावी हैं. करीब 30 जिलों में उनकी अहम भूमिका होती है. ये ‘डिसाइडिंग शिफ्टिंग’ वोट माना जाता है.
गैंगेस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर पर कांग्रेस, सपा और बसपा नेताओं ने उठाए सवाल
यूपी में ब्राह्मणों की टीस
कांग्रेस ने ब्राह्मणों को आठ बार यूपी का सीएम बनवाया. जिनमें से तीन बार नारायण दत्त तिवारी और पांच बार अन्य नेताओं को कुर्सी दी गई. यानी यूपी के 21 मुख्यमंत्रियों में से 6 ब्राह्मण रहे हैं. इस समाज ने 23 साल तक यूपी पर राज किया, जब सीएम नहीं भी रहे तो भी मंत्री पदों पर उनकी संख्या दूसरी जातियों की तुलना में सबसे अधिक रही.
1989 के बाद यूपी में कोई ब्राह्मण सीएम नहीं बना. साल 2017 में जब यहां बीजेपी का पूर्ण बहुमत आया तो उनमें सीएम बनने की उम्मीद थी. लेकिन हमेशा से सत्ता पर काबिज रहे इस समाज को डिप्टी सीएम पद दिया गया. वो भी प्रोटोकॉल में तीसरे नंबर पर. माना जाता है कि ऐसा सिर्फ जातीय संतुलन बैठाने के लिए किया गया. अब कुछ लोग गैंगेस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बहाने ही ब्राह्मणों के इस दबे हुए गुस्से को जगाने की कोशिश कर रहे हैं.
क्या यूपी में कांग्रेस विकास दुबे एनकाउंटर के बहाने ब्राह्मण वोटरों पर डोरे डाल रही है . (File)
[ad_2]
Source