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इतिहासकार योगेश प्रवीण (Yogesh Praveen) कहते हैं कि लालजी टंडन (Lalji Tandon) राजनेता के साथ-साथ अवधी संस्कृति के नायक भी थे. सबको साथ जोड़ने की उनकी कला ने ही लखनऊ में हमेशा हिंदू-मुस्लिम के बीच वैमनस्यता को दूर रखा.
योगेश प्रवीण इस जुलूस के गवाह रहे हैं
उनकी यादों में डूबे योगेश प्रवीण कहते हैं कि चौक की होली इसका अनुपम उदाहरण है. कोनेश्वर महादेव से जो रंगोत्सव जुलूस निकालने की टंडनजी ने अमृतलालनागर सहित प्रमुख लोगों के साथ मिलकर शुरुआत कराई वो परंपरा देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस तरह लखनऊ को जीते थे. योगेश प्रवीण खुद भी जुलूस में भाग लेते थे.
चौक की होली में मुस्लिम भाई हाथ में शरबत, गुलाल, मेवे लेकर खड़े रहते वे कहते हैं कि कोनेश्वर मंदिर से नक्खास होते हुए जब जुलूस अकबरी गेट पहुंचता था तो वहां लखनवी तहजीब स्वागत करने के लिए खड़ी रहती थी. मुस्लिम भाई हाथ में शरबत, गुलाल, मेवे लेकर खड़े रहते थे. रास्ते में मुस्लिम घरों से जुलूस पर फूल बरसाए जाते थे. वे कहते हैं कि टंडनजी लखनऊ की रवायत को जिंदा रखे हुए थे. रंगोत्सव और जुलूस की परंपरा ने लोगों में एकता और विश्वास का भाव भरा. वे लखनऊ के लिए जिए और लखनऊ ने उनको सर आंखों पर बैठाया.
टंडन की किताब सतह से शिखर तक की भूमिका लिखी
योगेश प्रवीण ने ही उऩकी किताब सतह से शिखर तक की भूमिका लिखी थी. पुराने दिनों में खोए इतिहासकार योगेश प्रवीण कहते हैं कि उन्होंने सबको जोड़ा. धर्म से धर्म को, जाति से जाति को, बड़ो से छोटे को. वे कहते हैं कि नौजवानों के लिए वे एक मिसाल थे. वे नेता तो थे, लेकिन उससे ज्यादा अवधी संस्कृति के नायक थे. लखनऊ ने अपना अधिनायक खो दिया.
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