[ad_1]
लालू नाम के आसरे चुनावी नैया पार करने की रणनीति
दरअसल लालू आज भले ही जेल में हों पर पार्टी को लगता है कि लालू ही एकमात्र नाम है जो चुनाव में नैया पार लगा सकता है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी कार्यकर्ताओं और अपने समर्थकों को विश्वास दिलाने में लगे हैं कि लालू यादव चुनाव से पहले अक्टूबर तक बाहर आ जाएंगे. जाहिर है अब बिहार की सियासत में सवाल उठने लगा है कि आखिर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अचनाक ही आरजेडी ने लालू के बाहर आने की बात क्यों हवा में उछाली? लालू के बाहर आने की बात करने के बाद यह भी पूछा जाने लगा है कि क्या तेजस्वी यादव को खुद के चेहरे पर भरोसा नहीं है?
हो चुकी है 15 साल बनाम 15 साल वाली जंग की शुरुआतराजनीतिक जानकारों की मानें तो लालू न सिर्फ आरजेडी की मजबूरी हैं, बल्कि वही राजद की राजनीति का आधार हैं और मजबूती भी हैं. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि आरजेडी का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी को भी लगता है कि खुद के नाम पर नीतीश से सीधा मुकाबला नुकसानदायक हो सकता है. ऐसे में लालू यादव का नाम आगे करना ही नीतीश से मुकाबले के लिए वाजिब रहेगा. यही वजह है कि आरजेडी और जेडीयू दोनों ही ओर से 15 साल बनाम 15 साल, जंग की शुरुआत हो चुकी है.
लालू यादव की मौजूदगी भर से विरोधियों के छूट जाते हैं पसीने
बकौल रवि उपाध्याय बीते तीन दशक में बिहार ही नहीं, देश की राजनीति में लालू यादव ने अपनी अलग पहचान बनाई और हर लड़ाई में फ्रंट फुट पर खड़े रहे. उनके नेतृत्व में 1997 में राष्ट्रीय जनता दल बना और पार्टी वोट बैंक का ऐसा आधार तैयार किया जिससे डेढ़ दशक तक उनका राज बिहार में कायम रहा. आज भी लालू की मौजूदगी का नाम सुन ही विरोधियों के परीसने छूट जाते हैं. ऐसे भी बिहार की सियासत में माइनस लालू तो जमीन पर कुछ दिखता भी नहीं है.
लालू प्रसाद यादव के बिना अनसेफ राष्ट्रीय जनता दल
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि लालू की गैरमौजूदगी में आरजेडी भी कहीं न कहीं अनसेफ फील कर रही है. यही वजह है कि ये बात कही जा रही है कि लालू यादव कानूनी प्रक्रिया के तहत ही बाहर आ सकते हैं. दरअसल गरीब गुरबा से उनका आज भी संवाद का जो कनेक्शन है वह किसी और के पास नहीं है. बीते चार दशक से प्रदेश से लेकर देश स्तर की राजनीति में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने जो छाप छोड़ी है वह शायद ही कोई कर पाया हो.
चित भी मेरी, पट भी मेरी- तेजस्वी यादव की यही है रणनीति
बकौल रवि उपाध्याय अगर कानूनी प्रक्रिया के तहत भी लालू जेल से बार नहीं आ पाए तो भी तेजस्वी इसे भुनाएंगे. वे यह बात बार-बार दोहराएंगे कि लालू यादव को कानूनी प्रक्रिया के तहत निकलना था, लेकिन नीतीश कुमार और बीजेपी की साजिश के कारण वे नहीं निकल पाए. जाहिर है आरजेडी दोनों ही स्थितियों में लालू के नाम का इस्तेमाल करेगी. यानी चित भी मेरी पट भी मेरी वाली रणनीति पर आरजेडी आगे बढ़ रही है.
‘लालू हेलिकॉप्टर’ के आगे नहीं टिकता कोई भी हेलिकॉप्टर
बकौल रवि उपाध्याय बिहार का चुनाव बीते कई दशकों से लालू बना ऑल के आधार पर ही लड़ी जाती रही है. बिहार में इस बात का अंदाजा इसी बात से लग जाता है जब पटना एयरपोर्ट चुनाव के दौरान एनडीए के हेलिकॉप्टरों से भरा रहता था, लेकिन वहीं अकेले लालू का एक ही हेलिकॉप्टर हुआ करता था और वे अकेले सब पर भारी पड़ेते थे. वे ऐसे हेलिकॉप्टर हैं कि पूरा एनडीए मिलकर भी बिहार की सियासत में भारी नहीं पड़ सकते. ऐसे भी विपक्ष में अकेला लालू ही तो है.
बिहार में जेडीयू और राजद के बीच राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. (फाइल फोटो)
बिना लालू नहीं चल सकती तेजस्वी या आरजेडी की राजनीति
वहीं, अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि लालू के उत्तराधिकारी के रूप में तेजस्वी ने भले ही कमान संभाली है पर लालू के नाम के बिना कोई गुजारा नहीं. तेजस्वी को पता है कि चाचा नीतीश से मुकाबले के लिए लालू का सामने रहना जरूरी है. सहयोगी कांग्रेस भी लालू कार्ड को फायदेमंद मानती है. महागठबंधन के भीतर भी तेजस्वी के नाम पर जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा सवाल खड़े करते रहे हैं, लेकिन लालू के नाम पर सभी की जुबान बंद हो जाती है.
देश-राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखते हैं लालू यादव
अशोक शर्मा कहते हैं, भारतीय राजनीति में लालू प्रसाद की छवि जमीन से जुड़े हुए नेता की रही है. वे एक प्रखर और भारतीय राजनीति की गहरी समझ रखने रखने वाले राजनेता रहे हैं. उनके बिना बिहार की राजनीति की तो फिलहाल कल्पना करना भी मुश्किल है. लालू फिलहाल भले जेल में बंद हों और चुनावी राजनीति से भी बाहर हों, बावजूद इसके लालू की ताकत को कम आंकना किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेवकूफी ही कही जाएगी.
‘लालू नाम केवलम’ का मंत्र ही आरजेडी के लिए मुनासिब
बहराहल एक तरफ एनडीए लालू के 15 साल के शासन को याद कराकर जनता के बीच जाने की तैयारी कर रही है तो आरजेडी लालू को ही सामने लाकर चुनावी मैदान में जाने की रणनीति तैयार कर रही है.अब लालू प्रसाद अक्टूबर में बाहर आते हैं या नहीं यह तो कोर्ट तय करेगा, पर इतना साफ है कि तेजस्वी को अपनी राजनीति के लिए आज भी लालू नाम ही एकमात्र सहारा है. यानी आरजेडी के लिए ‘लालू नाम केवलम’ का ही मंत्र जपना मुनासिब है.
[ad_2]
Source