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क्या हैं तकनीकी व कानूनी पहलू?
जाहिर है इस मामले में अब राजनीतिक बयाबाजी शुरू हो गई है. बिहार में शेखर सुमन, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, पप्पू यादव समेत कई राजनेता इसकी जांच सीबीआई से करवाने की मांग लगातार कर रहे हैं. इसी क्रम में अब उतर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) का भी नाम जुड़ गया है. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि ये मामला लगातार गहराता जा रहा है, अब इस मामले की जांच सीबीआई से करवाना ही बेहतर होगा. अब सवाल उठता है कि महाराष्ट्र सरकार के इनकार के बाद क्या बिहार सरकार के पास यह अधिकार है कि वह इस मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा करे? कानून के जानकारों की मानें तो ये हो सकता है, लेकिन इसके कुछ तकनीकी पहलू हैं.
सीबीआई कर सकती है निष्पक्ष जांच
पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील और अधिवक्ता संघों के समन्वय समिति के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा (Yogesh Chandra Verma) कहते हैं कि इसके कानूनी व तकनीकी, दोनों ही पहलू हैं. पहली बात तो ये है कि चूंकि पटना के राजीव नगर थाना में यह मामला दर्ज है और इसकी जांच फिलहाल पटना पुलिस कर रही है तो बिहार सरकार के पास इसकी सीबीआई जांच की अनुशंसा करने का अधिकार है. दिल्ली इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत प्रदेश सरकार के पास शक्ति है. दूसरा यह कि लार्जर इंट्रेस्ट ऑफ जस्टिस के तहत भी प्रॉपर इन्वेस्टिगेशन के लिए इसकी जांच सीबीआई से ही करवानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिकी निगाहें
योगेश चंद्र वर्मा कहते हैं कि चूंकि यह मामला गंभीर है और घटना भी महाराष्ट्र में घटित हुई है तो इसके मेजर इन्वेस्टिगेशन महाराष्ट्र में ही होंगे, लेकिन जब इसके तकनीकी पहलुओं को समझेंगे तो अब बिहार पुलिस भी इसमें साझाीदार है. ऐसे में बिहार पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस के बीच समन्वय स्थापित करना भी एक बड़ा टास्क है. हालांकि, आरोपी रिया चक्रवर्ती ने केस को बिहार से महाराष्ट्र ट्रांसफर करने के लिए आवेदन सुप्रीम कोर्ट में दिया है, ऐसे में देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय सुनाता है.
मुंबई पुलिस की अब तक की जांच पर सवाल
पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिकवक्ता वाईवी गिरि कहते हैं कि पहला तो प्रश्न ये है कि महाराष्ट्र पुलिस इसे सीआरपीसी 174 के तहत (यूडीआर के आधार पर) जांच कर रही है. यही सवालों के घेरे में है, क्योंकि अगर अप्राकृतिक मौत भी होती तो भी पुलिस को इसकी जांच करनी है और इसकी बजाप्ता एक रिपोर्ट बननी है. इसमें यह देखा जाना है कि इसमें किसी का कोई हाथ तो नहीं है. इसे कानूनी भाषा में Abetment of suicide कहते हैं. ये IPC 306 के अंतर्गत दंडनीय है. इसके तहत 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है.
सुप्रीम कोर्ट में परिजन करें सीबीआई जांच की मांग
वाईवी गिरि कहते हैं कि ऐसे में बिहार सरकार अपने यहां दर्ज मामले को फिलहाल सीबीआई को ट्रांसफर करना चाहेगी तो यह संभव है और इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है. बकौल वाईवी गिरि, सबसे अच्छा तो यह हो कि सुशांत सिंह के परिजन सुप्रीम कोर्ट जाएं और खुद से सीबीआई जांच की मांग करें. सभी कोर्ट का यह पहला उद्देश्य है कि वांछित को न्याय मिले, ऐसे में अगर परिजन सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपनी बात रखते हैं तो कोर्ट जरूर सहानुभूतिपूर्व विचार करेगा और सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को जांच सौंप देगा.
मुंबई हाईकोर्ट में भी दायर है एक याचिका
बता दें कि मुबंई स्थित उच्च न्यायलय में 29 जुलाई को दिल्ली के वकील सार्थक नायक द्वारा एक याचिका दायर की गई है, जिसमें यह अपील की गई है कि इस मामले की जांच किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी या कोर्ट की निगरानी में गठित एसआईटी से कराई जाए. वकील सार्थक नायक ने बिहार पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर के आधार बनाते हुए इस मामले में मुबंई उच्च न्यायालय मे याचिका दायर किया है.
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