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Harela Festival: 10 दिन की पूजा पाठ के बाद आज पूरे उत्तराखंड में हरेला त्योहार की धूम. ऋतु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े इस त्योहार को लेकर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में हैं अलग-अलग मान्यताएं.
सबसे पहले भगवान को चढ़ाने के साथ बड़े बुजुर्ग अपने बेटे नाती-पोतों को हरेला लगाया और लम्बी उर्म की कामना दी. पहाड़ में त्योहारों का आगाज करने वाले इस पर्व पर पकवान भी बनाए जाते हैं तो रिस्तेदार-नातेदारों को हरेला डाक से भेजने की भी परम्परा है. हरेला पर्व ऐसा पर्व है जो मेलों का आगाज भी करता है तो इसका इंतजार भी साल भर रहता है.
मायके आती है बेटियां
नैनीताल की पुष्पा बवाड़ी कहती है कि साल भर उनको इस पर्व का इंतजार रहता है. इस दिन बेटी अपने मायके आती है और उनको हरेला लगाने की परम्परा है. नैनीताल में हरेला मनाने वाली हेमा कहती हैं कि आज के बच्चे या तो पढ़ने में व्यस्त हैं या फिर मोबाइल पर लेकिन उनको अपनी परम्परा और पर्वों की जानकारी घरों से देनी होगी ताकि ये तीज त्योहार बचे रहें और लोग इनको उत्साह से मनाएं.ये भी पढ़ें: खेत में धान का रोपा लगाती दिखीं कांग्रेस सांसद फूलो देवी नेताम, कहा- अपने काम में शर्म कैसा?
क्या है हरेले का महत्व
हरेला उत्तरखण्ड में मनाये जाने वाला वो पर्व है जो पर्यावरण व कृषकों से जुड़ा है. इस पर्व के दौरान 10 दिन पहले घरों में पुड़ा बनाकर पांच या 7 प्रकार के अनाज गेहूं, जौ, मक्का, गहत, सरसों समेत अन्य को बोया जाता है, जिसमें जल चढ़ाकर घरों में रोजाना इसकी पूजा की जाती है. किसान भी इस दौरान अपनी खेती की फसल की पैदावार का भी अनुमान लगाते हैं.
लोक संस्कृति के जानकार बृजमोहन जोशी कहते हैं कि ये पर्व किसानों से सीधे जुड़ा है. किसान घरों में ही अनाजों को बोकर अपनी फसल का परीक्षण करता है कि इस बार उनकी खेती कैसी होगी और कितना फायदा होगा. बृजमोहन कहते हैं कि हरेला ऋतु परिवर्तन के साथ भगवान शिव के विवाह की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे हरकाली पूजन कहते हैं और आज के दिन से ही पहाड़ में मेले उत्सव की शुरुआत भी होती है. कोई भी व्यक्ति इस दौरान हरी टहनी भी रोप दे तो वह फलने लगती है.
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