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88% पर भी निराशा
यहां हम यह बात इसलिए कर रहे हैं कि सीबीएसई के दसवीं-बारहवीं के रिज़ल्ट आए हैं और एक बार फिर सोशल मीडिया पर लोग गर्व के साथ अपने 90%, 92%, 96% अंक लाने वाले अपने बच्चों की तस्वीरें डाल रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि जिस बच्चे के 90% नंबर नहीं आए, वह फ़ेल हो गया है. आप देखिए किसी ने फ़ेसबुक पर डाला है कि मेरे बेटे या बेटी के 80% नंबर आए हैं और हमें उस पर गर्व है? कम से कम मुझे तो नहीं दिखा.
देहरादून में काम करने वाले एक पत्रकार की बेटी ने इस साल 10वीं पास की. उन्होंने उसे बधाई देते हुए फ़ेसबुक पर पोस्ट लिखी लेकिन उसमें नंबरों का ज़िक्र नहीं था. बातचीत में उन्होंने बताया कि बिटिया रो रही थी कि उसके सिर्फ़ 88% नंबर आए हैं… सिर्फ़ 88%!!!इससे पता चल रहा है कि 100% की रेस बच्चों के साथ क्या कर रही है. यह उदाहरण शायद आपको वैलोरी कैंडोस फ़ील्ड की बात समझने में मदद करे जिन्होंने बतौर कोच अपनी UCLA टीम को 7 बार नेशनल चैंपियन बनाया था.
साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर शोभित गर्ग कहते हैं कि जिन बच्चों के 99-100% नंबर आ रहे हैं उन पर परफॉर्म करने का प्रेशर बढ़ जाता है. जैसे-जैसे आप पढ़ाई के ऊंचे दर्जों में बढ़ते हो तो बड़ी उपलब्धियां, अच्छा प्रदर्शन करना मुश्किल होता जाता है. इससे बच्चे में असफलता का डर बढ़ता जाता है. कहते हैं कि अति हर चीज़ की ख़राब होती है तो हमेशा 100% लाने का दबाव रहेगा तो उस पर आंतरिक दबाव बहुत बढ़ जाएगा.
शादाब हसन खान की फ़ेसबुक पोस्ट
सुधार की गुंजाइश नहीं?
हिंदुस्तान अख़बार में काम करने वाले पत्रकार शादाब हसन खान ने अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में मूल्यांकन की इस प्रक्रिया पर बहुत मज़ेदार और शानदार टिप्पणी की है. वह कहते हैं, ‘जिस बोर्ड के अंतर्गत पढ़ रहे बच्चे 500 में से 499 अंक ले आएं उस बोर्ड के मेम्बरान को साइकिल के नीचे कूद कर जान दे देनी चाहिए. जिस पेपर में बच्चों के 100 में से 100 अंक आएँ, उसकी पेपर सेटर समिति के हर सदस्य को मुंह खोलकर अंदर थोड़ा थोड़ा काला हिट स्प्रे करना चाहिए. चुल्लू भर पानी भी इनके लिए ज्यादा होगा. ये अंक बच्चों की प्रतिभा की निशानी कत्तई नहीं हैं, ये एक पूरी शिक्षा व्यवस्था की दिमागी रूप से दिवालिया हो जाने की निशानी है.’
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन से उत्तराखंड प्रदेश प्रमुख कैलाश कांडपाल शादाब की बात से सहमत नज़र आते हैं. वह कहते हैं कि अगर किसी बच्चे को 100% नंबर मिल गए हैं तो इसका मतलब यह है कि वह सब जान चुका है और अब उसमें सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं है. पहले 60% नंबर पाने वाले बच्चे अलग दिखते भी थे कि ये लोग फ़र्स्ट डिवीजनर हैं हालांकि उनमें भी अभी 40% बेहतर करने की गुंजाइश है.
एंटीसोशल न बन पाने का दुख
कैलाश कांडपाल कहते हैं कि दरअसल यह सिस्टम की समस्या है. अगर आपका असेसमेंट सिस्टम किसी को 100% असेस कर रहा है तो क्या वाकई वह 100% है या यह गफ़लत पैदा कर रहा है.
शाबाद अपनी फ़ेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, ‘सुना है 499 वाली एक बिटिया परेशान है कि उसका 1 नंबर इसलिए कम रह गया क्यूँकी वो सोशल मीडिया पर अपना समय देती थी. उसे पूरी तरह से एंटीसोशल ना बन पाने का दुःख है. मुझे उससे सहानुभूति है.’
कांडपाल कहते हैं कि नंबर गेम को लेकर कंपीटीशन घातक है. सोशल मीडिया पर मेरे बच्चे के नंबर तेरे बच्चे से ज़्यादा हैं या फिर तेरे इतने कम नंबर क्यों आए बेटा, उसके तो इतने ज़्यादा हैं. आप देखें बच्चे बहुत तनाव में दिखते हैं.
डॉक्टर शोभित गर्ग करते हैं कि दिमाग को ताज़ा करने के लिए जो रिसाइकलिंग होती है उसमें दो चीज़ें बहुत ज़रूरी होती हैं- पर्याप्त नींद और खेलना. अगर हम बच्चे को लगातार पढ़ाई की प्रक्रिया में डाल रहे हैं तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा एक से दो घंटे ज़रूर खेले. इससे वह अपने दिमाग की प्रोसेसिंग को फ्रेश रख पाएगा. वरना जब बच्चा हायर लेवल पर पहुंचेगा तो उसे परेशानी हो सकती है.
कितने रोल मॉडल्स हैं 100% वाले
कैलाश कांडपाल कहते हैं कि इस असेसमेंट को लेकर सिस्टम में आमूलचूल परिवर्तन करने की ज़रूरत है. वह कहते हैं आज देश को लीड करने वाले किसी की भी व्यक्ति की मार्कशीट उठाकर देख लीजिए आप. जो बच्चों के रोल मॉडल हैं, उनकी लिस्ट दे लीजिए, कितने 100% मार्क्स वाले मिलते हैं? जिन्हें आप बेक बैंचर कहते हैं वह जीवन में काफ़ी आगे निकल जाते हैं.
वैलोरी कैंडोस फ़ील्ड कहती हैं कि उन्होंने अपनी कोचिंग की फ़िलॉसफ़ी इस बात को बनाया कि सिर्फ़ जीत पर फ़ोकस नहीं करना है, खेल के माध्यम से ज़िंदगी के चैंपियन तैयार करने हैं. और अगर यह अच्छे से कर पाए तो वह चैंपियन मानसिक रूप से इसे प्रतियोगिता के मैदान में भी बदल देगा.
जो खेल के लिए सच है, वही पढ़ाई के लिए भी सही है.
और अंत में फिर से शादाब हसन खान की बात, ‘अंततः एक बार फिर से 12th के परिणामों की बहुत बहुत बधाई. मैं इन शतकवीरों पर गुलाब की पंखुड़ियां और सीबीएसई पर बाकी का गमला फेंकना चाहता हूं.’
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