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गौरतलब है कि 2008 में मोहम्मद असद हयात और परवेज ने दंगों में एक व्यक्ति की मौत के बाद सीबीआई (CBI) जांच को लेकर याचिका दाखिल की थी.
अभियोजन पक्ष की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता यशपाल सिंह का कहना था कि पीड़िता ने थाना राजघाट में इस आशय की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. उसने तहरीर में लिखा था कि ‘वह अपने पति से अलग रहती है. वह झाड़-फूंक के लिए मगहर मजार जाती थी जहां उसे महमूद उर्फ जुम्मन बाबा मिले. उन्होंने कई दरगाहों पर झाड़ फूंक की जिससे मुझे राहत मिली. तीन जून 2018 को उन्होंने रात 10.30 बजे पांडेयहाता के पास दुआ करने के बहाने बुलाया और एक सुनसान स्थान पर ले गए. वहां उन्होंने और उनके साथ मौजूद एक शख्स ने रेप किया.
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उस शख्स को जुम्मन, परवेज भाई बोल रहे थे। घटना के बाद हमने मोबाइल से 100 नंबर पर फोन किया, तब पुलिस आई और हमें साथ ले गई.’ गौरतलब है कि परवेज परवाज और असद हयात ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (घटना के समय गोरखपुर के सांसद) पर 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर रेलवे स्टेशन गेट के सामने हेट स्पीच देने और उसके कारण गोरखपुर व आस-पास के जिलों में बड़े पैमाने पर हिंसा होने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.सीएम योगी को मिली इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत
याचिका में अदालत से हेट स्पीच और उसके कारण हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया था. बाद में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रमुख सचिव (गृह) ने मई, 2017 में योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुकदमे से इनकार के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी.
गौरतलब है कि 2008 में मोहम्मद असद हयात और परवेज़ ने दंगों में एक व्यक्ति की मौत के बाद सीबीआई जांच को लेकर याचिका दाखिल की थी. याचिका में योगी द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण को दंगे की वजह बताया गया था. याचिका में योगी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 307, 153A, 395 और 295 के तहत जांच की मांग की गई. जिसके बाद केस की जांच सीबी-सीआईडी ने की और 2013 में भड़काऊ भाषण की रिकॉर्डिंग में योगी की आवाज सही पाई गई. हालांकि सीबीसीआईडी ने तत्कालीन सांसद के खिलाफ कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की क्योंकि अखिलेश सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी.
सीबीसीआईडी जांच पर उठे सवाल
फ़रवरी 2017 में सीबीसीआईडी द्वारा दाखिल आखिरी हलफनामे में कहा कि उसे अभी तक यूपी सरकार की तरफ से कोई लिखित आदेश नहीं मिला है. सीबीसीआईडी ने हलफनामे में कहा कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अगर धारा 153A और 295 के तहत मुकदमा दर्ज होता है तो उसके खिलाफ आरोप तय करने के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक होती है. जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने आशंका जाहिर की कि सीबीसीआईडी इस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती, लिहाजा मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए.
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