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इन माफियाओं में सबसे पहले नाम श्रीप्रकाश शुक्ला (Shree Prakash Shukla) का आता है. इसने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्यान सिंह को मारने के लिए सुपारी ले ली थी. हालांकि, पुलिस ने एनकाउंटर कर उसे मार दिया था. श्रीप्रकाश शुक्ला के इस एनकाउंटर में तीन चीजें पहली बार हुई थीं. पहला किसी बदमाश की तरफ से पहली बार एके-47 (AK-47) का इस्तेमाल किया गया था. दूसरा बदमाश को पकड़ने के लिए पुलिस ने पहली बार मोबाइल सर्विलांस (Mobile surveillance) का इस्तेमाल किया था. सबसे बड़ी बात यह है डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला (Shree Prakash Shukla) को पकड़ने के लिए ही स्पेशल टास्क फोर्स (STF) बनाई गई थी. बाद में इस एनकाउंटर को लेकर बॉलीवुड (Bollywood) में ‘शहर’ नाम से एक मूवी भी बनाई गई थी.
50 जवानों को छांट कर एसटीएफ बनाई
आईपीएस राजेश पाण्डेय का कहना है कि four मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर एसटीएफ बनाई. इस फोर्स का पहला टास्क था श्रीप्रकाश शुक्ला. उस वक्त श्रीप्रकाश के आतंक को खत्म करना एक बड़ा टास्क था. 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को श्रीप्रकाश की गर्लफ्रेंड के मोबाइल को ट्रेस करने के बाद यह खबर मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है.फायरिंग शुरू कर दी
श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उस वक्त श्रीप्रकाश को जरा भी शक नहीं हुआ था कि एसटीएफ उसका पीछा कर रही है.उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया. पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा, लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया.
साल 2018 में जेल के अंदर ही उसकी हत्या कर दी गई
इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के मोस्ट वॉन्टेड माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी का नाम है. वह भी एक समय पुलिस के लिए सिर दर्द बना हुआ था. लेकिन साल 2018 में जेल के अंदर ही उसकी हत्या कर दी गई. बागपत जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. ऐसे तो यूपी में कई बाहुबली निकले हैं, जिनके नाम का सिक्का कई राज्यों में चला है. इस बीच जुर्म की दुनिया में मुन्ना बजरंगी का नाम उभरा था.
40 हत्याओं, लूट, रंगदारी की घटनाओं में शामिल होने के केस दर्ज हैं
मुन्ना बजरंगी पर 40 हत्याओं, लूट, रंगदारी की घटनाओं में शामिल होने के केस दर्ज हैं. मुन्ना बजरंगी पूरे यूपी की पुलिस और एसटीएफ के लिए सिरदर्द बना हुआ था. पुलिस के मुताबिक, लखनऊ, कानपुर और मुंबई में उसके खिलाफ कई केस दर्ज हैं. बजरंगी पर सरकारी ठेकेदारों से रंगदारी और हफ्ता वसूलना का भी आरोप था. बरहाल डाॅन की हत्या का आरोप बागपत जेल में बंद माफिया सुनील राठी पर लगा था. बताया जा रहा था कि सुनील राठी के शूटर्स ने मुन्ना बरजरंगी को गोली मारी है.
17 साल की उम्र में पहला अपराध
मुन्ना बजरंगी ने केवल पांचवीं क्लास तक पढ़ाई की थी. उसके बाद वह दूसरे रास्ते पर आगे बढ़ता चला गया. 17 साल की उम्र में वह अपराध की दुनिया में छा गया. तब उसके खिलाफ पुलिस ने अवैध हथियार रखने का पहला मामला दर्ज किया था. मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह है. उसका जन्म 1967 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में हुआ था. उसके पिता पारसनाथ सिंह उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का सपना संजोए थे. मगर प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने उनके अरमानों को कुचल दिया. उसने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी. किशोर अवस्था तक आते-आते उसे कई ऐसे शौक लग गए जो उसे जुर्म की दुनिया में ले जाने के लिए काफी थे.
हथियार रखने का शौक
मुन्ना को हथियार रखने का बड़ा शौक था. वह फिल्मों की तरह एक बड़ा गैंगेस्टर बनना चाहता था. यही वजह थी कि 17 साल की नाबालिग उम्र में ही उसके खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया. जौनपुर के सुरेही थाना में उसके खिलाफ मारपीट और अवैध असलहा रखने का मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद मुन्ना ने कभी पलटकर नहीं देखा. वह जरायम के दलदल में धंसता चला गया. मुख्तार से फरमान मिल जाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को खत्म करने की साजिश रची. और उसी के चलते 29 नवंबर 2005 को माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के कहने पर मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय को दिन दहाड़े मौत की नींद सुला दिया. उसने अपने साथियों के साथ मिलकर लखनऊ हाइवे पर कृष्णानंद राय की दो गाड़ियों पर AK 47 से 400 गोलियां बरसाई थी. इस हमले में गाजीपुर से विधायक कृष्णानंद राय के अलावा उनके साथ चल रहे 6 अन्य लोग भी मारे गए थे.
राजनीति में आजमाई किस्मत
एक बार मुन्ना ने लोकसभा चुनाव में गाजीपुर लोकसभा सीट पर अपना एक डमी उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश की थी. मुन्ना बजरंगी एक महिला को गाजीपुर से भाजपा का टिकट दिलवाने की कोशिश कर रहा था. जिसके चलते उसके मुख्तार अंसारी के साथ संबंध भी खराब हो रहे थे. उत्तर प्रदेश समते कई राज्यों में मुन्ना बजरंगी के खिलाफ मुकदमे दर्ज थे. वह पुलिस के लिए परेशानी का सबब बन चुका था. उसके खिलाफ सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हैं. लेकिन 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना को मुंबई के मलाड इलाके में नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया था. माना जाता है कि मुन्ना को अपने एनकाउंटर का डर सता रहा था.
बृजेश सिंह और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी ठेकेदारी को लेकर आमने-सामने आ गए.
यदि उत्तर प्रदेश में जुर्म की दुनिया की बात करें और ब्रजेश सिंह की चर्चा नहीं की जाए तो यह बैईमानी होगी. ब्रजेश सिंह एक शख्स है जिसने जुर्म की दुनिया से सियासत तक का सफर तय किया है. बृजेश सिंह ने जरायम की दुनिया में कदम भले ही अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए रखा हो लेकिन ताकत का नशा उसके सिर चढ़ के बोलने लगा. बड़े ही कम समय में बृजेश ने रंगदारी के रास्ते कोयला, रेशम, रेलवे आदि के ठेकेदारी में हाथ डालना शुरू कर दिया.
27 अगस्त 1984 में पिता की हत्या के बाद बदला लिया
बृजेश सिंह ने 27 अगस्त 1984 में पिता की हत्या के बाद बदला लेने की नीयत से अपराध की दुनिया में कदम रखा और साल भर में ही 27 मई 1985 को दिनदहाड़े अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया. यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज हुआ. इस वारदात के बाद फरार रहते हुए बृजेश ने पिता के अन्य हत्यारोपियों की तलाश शुरू कर दी. इसी कड़ी में 9 अप्रैल 1986 को सिकरौरा गांव में पिता की हत्या में शामिल रहे रघुनाथ यादव, लुल्लुर सिंह, पांचू और राजेश आदि को एक साथ गोलियों से भून डाला. इस घटना को अंजाम देने के बाद बृजेश को पहली बार गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया. इसी दौरान उनकी मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव में त्रिभुवन सिंह से हुई. बृजेश और त्रिभुवन के बीच दोस्ती बढ़ी और दोनों मिलकर साथ काम करने लगे और धीरे-धीरे इनका गैंग पूर्वांचल समेत बिहार में सक्रिय होने लगा.
दोनों तरफ से जान-माल का नुकसान भी हुआ
तभी जब बृजेश सिंह और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी ठेकेदारी को लेकर आमने-सामने आ गए. पीडब्लूडी समेत अन्य सरकारी ठेकों और कोयले के कारोबार को लेकर दोनों गैंग के बीच कई बार गोलीबारी हुई. दोनों तरफ से जान-माल का नुकसान भी हुआ. नब्बे के दशक में बृजेश सिंह को पुलिस और मुख्तार के गैंग से बचने के लिए मुंबई जाना पड़ा, जहां पहुंचने के बाद दाउद के करीबी और पूर्वांचल के ही एक अन्य माफिया सुभाष ठाकुर से उनकी मुलाकात हुई और फिर सुभाष के माध्यम से दाउद से भी मुलाकात हुई. दाउद के बहनोई इब्राहिम कास्कर की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश ने डॉक्टर का भेष बदलकर जे जे अस्पताल में four लोगों को पुलिस के पहरे के बीच मार दिया था.
दाउद और बृजेश की नजदीकियां और बढ़ गईं
इस शातिराना अंदाज के बाद दाउद और बृजेश की नजदीकियां और बढ़ गईं हालांकि, 1993 में हुए मुंबई ब्लास्ट के बाद दोनों में मतभेद हो गया. बृजेश के खिलाफ वाराणसी के बलुआ समेत कैंट, धानापुर, सकलडीहा, चेतगंज में मामले दर्ज होते चले गए. इसके अलावा गाजीपुर के सैदपुर, भांवरकोल, अहमदाबाद, महाराष्ट्र के साथ पश्चिम बंगाल तक बृजेश के खिलाफ मुकदमे दर्ज होते गए. जुलाई 2001 में गाजीपुर के उसरीचट्टी में बृजेश की अपने चिर प्रतिद्वंदी मुख्तार अंसारी से सीधी मुठभेड़ हुई जिसमे मुख्तार घायल हुए.
सेंट्रल जेल में रखा गया
24 जनवरी 2008 को भुवनेश्वर से बृजेश सिंह को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया. गिरफ्तारी के बाद पुराने मामलों की बंद फाइलें खुलने लगीं और फरवरी 2008 में बृजेश को वाराणसी तलब कर सेंट्रल जेल में रखा गया. साल भर बाद मुंबई में जे जे शूटआउट की सुनवाई में बृजेश का तीन साल का समय महाराष्ट्र और गुजरात की जेलों में कटा. 2012 में वाराणसी सेंट्रल जेल लौट कर आने के बाद बृजेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने मकोका के तहत कार्रवाई की और उसे रिमांड पर तिहाड़ जेल ले गई.
बृजेश का राजनीति सफर शुरू हो गया
फिर बीजेपी के समर्थन से विधान परिषद चुनाव जीतने के बाद बृजेश का राजनीति सफर शुरू हो गया. ब्रजेश ने पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अपना परचम लहराया है. जुर्म की अंधेरी दुनिया में खौफ का कारोबार करने वाला बृजेश लाव लश्कर के साथ शपथ लेने पहुंचा वो भी सधे हुए नेता की तरह लग रहे थे. फिलहालल वे राजनीति में सक्रिए हैं.
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