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Vikas Dubey Encounter: सवाल उठता है क्या सच में पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई. पुलिस को अब कोर्ट में ये साबित करना होगा कि अगर वो फायरिंग नहीं करते तो फिर उनकी भी जान जा सकती थी. आईए पूरे घटनाक्रम को कानून की नजरों से समझने की कोशिश करते हैं.
कैसे हुआ एनकाउंटर? क्या कहती है पुलिस
पुलिस के मुताबिक आरोपी विकास दुबे को एसटीएफ उत्तर प्रदेश लखनऊ टीम द्वारा पुलिस उपाधीक्षक तेजबहादुर सिंह के नेतृत्व में सरकारी गाड़ी से लाया जा रहा था. यात्रा के दौरान कानपुर नगर के सचेण्डी थाना क्षेत्र के कन्हैया लाल अस्पताल के सामने पहुंचे थे कि अचानक गाय-भैंसों का झुंड भागता हुआ रास्ते पर आ गया. लंबी यात्रा से थके ड्राइवर ने इन जानवरों से दुर्घटना को बचाने के लिए अपनी गाड़ी को अचानक मोड़ने की कोशिश की. जिसके बाद ये गाड़ी अनियंत्रित होकर पलट गई. इस गाड़ी में बैठे पुलिस अधिकारियों को गंभीर चोटें आईं. इसी बीच विकास दुबे अचानक हालात का फायदा उठाकर घायल निरीक्षक रमाकांत पचौरी की सरकारी पिस्टल को झटके से खींच लिया और दुर्घटना ग्रस्त सरकारी वाहन से निकलकर कच्चे रास्ते पर भागने लगा. जिसके बाद पुलिस को गोली चलानी पड़ी
अब आगे क्या होगा?अब इस मामले में केस दर्ज होगा और मामले की जांच होगी. ये पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि ये एनकाउंटर सही है या फिर फेक. पुलिसवालों को राइट फॉर प्राइवेट डिफेंस यानी आत्मरक्षा के अधिकार के तहत उन्हें अपनी कार्रवाई को जायज ठहराना होगा. अब देखना होगा कि विकास दुबे का रिश्तेदार किसी थाने में हत्या की एफआईआर कब दर्ज करवाता है. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट करते हुए कहा है कि दुबे एक गैंगस्टर आतंकी था, जिसे शायद मरना ही चाहिए था। लेकिन यूपी पुलिस ने स्पष्ट तौर पर उसकी हत्या की है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस घचना पर खुद संज्ञान नहीं लेता है, तो इसका मतलब होगा कि भारत में कानून का शासन बचा ही नहीं है.
क्या पुलिस को आत्मरक्षा के आधार पर क्लीन चीट मिल जाएगा?
अगर देश में पुराने एनकाउंटर पर नजर डालें तो पुलिस वालों के लिए यहां बचना इतना आसान भी नहीं होगा. दो ऐसे मामले हैं जहां 25 से 30 साल बाद पुलिसवालों को सजा सुनाई गई है.
>> साल 1992 में पंजाब के अमृतसर में दो पुलिसकर्मियों ने एक 15 साल के एक नाबालिग का एनकाउंटर कर दिया था. मामले की जांच हुई और दो साल पहले यानी 26 साल बाद दोनों पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.
>>साल 1999 में देहरादुन में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था. रणवीर नाम के एक शख्स की एनकाउंटर में हत्या कर दी गई. इस केस में जांच के बाद 18 पुलिसकर्मियों को जून 2014 में उम्रकैद की सजा दी गई. बाद में 11 को रिहा कर दिया गया.
>>जुलाई 1991 में पीलीभीत में 47 पुलिसकर्मियों ने 11 सिखों को आतंकी बताकर एनकाउंटर में मार गिराया था. साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
एनकाउंटर के दौरान हत्या पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर के तहत होने वाली हत्याओं पर कहा था कि सरकार किसी भी एनकाउंटर हत्या के मामले में व्यक्ति को संविधान के तहत मिले जीने के अधिकार से दूर नहीं कर सकती. इसके बाद कोर्ट ने 16-सूत्री गाइडलाइन भी जारी की थी. ऐसे में अब देखना होगा कि क्या क्या दुबे के एनकाउंटर की जांच कब और कैसे होती है. लेकिन याद रहे ये कोई साधरण केस नहीं है.
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