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सामना ने लिखा है- विकास दुबे (Vikas Dubey) कोई संत-महात्मा या समाजसेवक नहीं था. वह किसी की सुपारी लेकर उनकी कीड़े-मकोड़ों की तरह निर्ममता से हत्या कर देनेवाला अपराधी था.
एनकाउंटर पर सवाल क्यों?
शिवसेना के मुताबिक मानवतावादी और लोकतंत्र के संरक्षक चाहे जो कहें, लेकिन जनता ने इस एनकाउंटर का स्वागत किया है. सामना में लिखा है, ‘ विकास दुबे कोई साधारण पॉकेटमार नहीं था, बल्कि वह एक गैंगस्टर और आतंकवादी था. वह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. इस एनकाउंटर पर सवाल क्यों? इस पर सवाल करना मतलब दुबे द्वारा किए गए हत्याकांड में 8 पुलिसकर्मियों की शहादत का अपमान है.’
विकास दुबे कोई संत-महात्मा या समाजसेवक नहीं थाशिवसेना के मुताबिक लोग इस एनकाउंटर को लेकर जबरदस्ती शोर मचा रहे हैं. सामना में आगे लिखा है, ‘इस पर इतना शोक क्यों? विकास दुबे के एनकाउंटर के बारे में कुछ सवाल उठाए जा रहे हैं. उसमें सच्चाई होगी भी. लेकिन उसकी मौत के बाद मानवाधिकारवादी जिस प्रकार से गला फाड़ कर आक्रोश कर रहे हैं, वह समझ से बाहर है. विकास दुबे कोई संत-महात्मा या समाजसेवक नहीं था. वह किसी की सुपारी लेकर उनकी कीड़े-मकोड़ों की तरह निर्ममता से हत्या कर देनेवाला अपराधी था. इसलिए मुठभेड़ में मारे गए दुबे की मौत पर इतने कोलाहल की आवश्यकता नहीं है.’
विकास दुबे के प्रति पुलिसवाले भी दया क्यों दिखाएं
सामना ने संपादकीय में कहा है की आठ पुलिसकर्मियों के हत्याकांड के बाद उन पर डीजल डालकर उन्हें जला डालने का क्रूर प्रयास भी दुबे ने किया. पुलिसकर्मियों की जान लेते समय जरा भी दया न दिखानेवाले विकास दुबे के प्रति पुलिसवाले भी दया दिखाएं, ऐसी अपेक्षा करना ही नादानी है.
पुलिस का मनोबल कमजोर न करें
सामना में आगे लिखा है, ‘मानवतावादी और लोकतंत्र के संरक्षक चाहे जो कहें, लेकिन जनता ने इस एनकाउंटर का स्वागत किया है. कुछ तर्कवादियों का कहना है कि अगर विकास दुबे को भाग ही जाना था तो वह आत्मसमर्पण क्यों करता? लोकतंत्र में इस प्रकार के सवाल उठाने की छूट भले ही हो लेकिन ऐसी भी बात नहीं करनी चाहिए, जिससे पुलिस बल का मनोबल कमजोर हो.’
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