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दोगुने हुए टेस्ट!
दुनिया भर के विशेषज्ञ बता चुके हैं और बार-बार कह रहे हैं कि किसी भी संक्रामक रोग में ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट किया जाना बेहद ज़रूरी होता है ताकि संक्रमण की वास्तविक स्थिति पता चल सके और उसे फैलने से रोका जा सके. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कई बार टेस्टिंग बढ़ाने की सलाह दे चुका है लेकिन शायद यह बातें उत्तराखंड तक नहीं पहुंच पा रहीं.
उत्तराखंड में अब तक करीब सवा तीन लाख प्रवासी वापस आ चुके हैं लेकिन कुल मिलाकर टेस्ट हुए हैं 86,458. टेस्टिंग की स्थिति ऐसी है कि गुरुवार को 2097 सैंपल टेस्ट के लिए भेजे गए और तब पेंडिंग केस निकले 5574. इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि टेस्टिंग कैपेसिटी बढ़ी है. उत्तराखंड की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉक्टर अमिता उप्रेती कहती हैं कि उत्तराखंड में टेस्टिंग लगभग दोगुनी हो गई है!हालांकि वह यह नहीं बतातीं कि ऐसा कब हुआ? यह भी उल्लेखनीय है कि टेस्टिंग कैपेसिटी दोगुनी होने के बाद भी पेंडिंग केस टेस्ट के लिए भेजे गए सैंपल्स के ढाई गुना से ज़्यादा हैं.
स्वास्थ्य महानिदेशक यह भी कहती हैं कि अगले दो हफ़्ते में जितने भी पेंडिंग केस हैं, वह सब क्लियर हो जाएंगे. वह यह भी कहती हैं कि धीरे-धीरे टेस्टिंग कैपेसिटी बढ़ा रहे हैं और जल्द ही आईसीएमआर की गाइडलाइन्स के हिसाब से जितने लोगों के टेस्ट किए जाने चाहिएं उन सबके टेस्ट किए जाने लगेंगे.
अभी ज़रूरत नहीं?
आईसीएमआर की वेबसाइट के अनुसार उत्तराखंड में आज 16 सरकारी और 2 प्राइवेट लैब्स कोविड-19 की टेस्टिंग कर रही हैं. स्वास्थ्य विभाग ने प्राइवेट लैब्स (आईसीएमआर से अप्रूव्ड) को टेस्टिंग के लिए आमंत्रण दिया था. स्वास्थ्य महानिदेशक के अनुसार four लैब हैं जिन्होंने टेस्ट करने के लिए सहमति दी है. वह यह भी कहती हैं कि ज़रूरत पड़ने पर सैंपल्स इन लैब्स में टेस्टिंग के लिए भेजे जाएंगे.
लेकिन ज़रूरत आज ही है.
कोरोना वायरस को लेकर आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे गैर सरकारी संगठन एसडीसी के अनुसार 11 हिमालयी राज्यों में से उत्तराखंड टेस्टिंग के मामले में 10वें स्थान पर है. इस लिस्ट में सबसे ऊपर लद्दाख (UT) है जो हमसे 7 गुना ज़्यादा टेस्ट कर चुका है. पड़ोसी राज्य हिमाचल उत्तराखंड से 80% ज़्यादा टेस्ट कर चुका है. स्वास्थ्य विभाग को न जाने कैसी ज़रूरत का इंतज़ार है?
उत्तराखंड में आज 16 सरकारी और 2 प्राइवेट लैब्स कोविड-19 की टेस्टिंग कर रही हैं.
एसिम्प्टमैटिक कितने?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि कोरोना वायरस के 75 फ़ीसदी मरीज़ एसिम्प्टमैटिक (ऐसे कोविड-19 पॉज़िटिव लोग जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे) या बहुत कम लक्षण वाले हैं. दिल्ली में कोविड-19 के एसिम्प्टमैटिक मरीज़ों का 5 दिन के लिए इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन जून में ही अनिवार्य कर दिया गया था.
उत्तराखंड में कितने लोग एसिम्प्टमैटिक हैं इसके बारे में स्वास्थ्य विभाग को कोई जानकारी नहीं है. दरअसल जो राज्य टेस्टिंग के लिहाज से इतना पिछड़ा हुआ हो कि न्यूनतम टेस्ट तक नहीं करवा पा रहा उसे एसिम्प्टमैटिक मरीज़ों का पता कैसे लगेगा?
यह भी ज़िक्र ज़रूरी है कि प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की पत्नी को कोविड-19 संक्रमण का पता एक निजी लैब में हुए टेस्ट से चला था. मंत्री जी के कैबिनेट बैठकों में शामिल होने की वजह से मुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट के संक्रमित होने का खतरा पैदा हो गया था. सतपाल महाराज समेत उनके परिवार और स्टाफ़ के ज़्यादातर सदस्य एसिम्प्टमैटिक थे यानी उनमें कोरोना के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे.
कोरोना की वैक्सीन आ जाएगी पहले!
दुनिया भर में कोरोना वायरस, कोविड-19 की वैक्सीन विकसित करने पर तेज़ी से काम चल रहा है. भारत में आईसीएमआर 15 अगस्त तक कोविड-19 की वैक्सीन लांच करने की बात कह चुका है और इसके ह्यूमन ट्रायल दो-एक दिन में ही शुरु हो सकते हैं.
चीन की एक फ़ार्मा कंपनी की वैक्सीन का दूसरे दौर का ट्रायल शुरु हो रहा है और रूस के रक्षा मंत्रालय की वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल अंतिम दौर में है. एक अमेरिकन फ़ार्मा कंपनी ने एक यूरोपीय कंपनी से प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए करार कर लिया है.
इस सबके विपरीत उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग को टेस्टिंग को तेज़ करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं हो रही. विभाग के काम करने की रफ़्तार और बर्ताव को देखते हुए यह तय है कि जब तक उत्तराखंड में पर्याप्त (लद्दाख नहीं तो हिमाचल के बराबर) टेस्टिंग की जाएगी, उससे पहले कोविड-19 की वैक्सीन आ जाएगी.
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