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मेरठ में फलों का उत्पादन करने वाले किसान (Farmers) यूपी सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी मदद की जाए ताकि उनके घर का भी चूल्हा जल सके.
कांवड़ यात्रा रद्द होने से बड़ा नुकसान
बीते तीन-चार महीनों से कारोबारी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा नहीं सके. फल खरीद नहीं सके. लिहाज़ा फल पेड़ पर ही सड़ गए. नाशपाती की फसल का तो आलम ये है कि ये पेड़ पर टूटने से पहले ही सड़ गई क्योंकि खरीददार नहीं मिल पाए. किसानों का कहना है कि इस बार कांवड़ यात्रा रद्द होने से भी उन्हें ख़ासा नुकसान हुआ है क्योंकि लोगों ने नाशपाती न के बराबर ही खरीदी है.
30 से 40 रुपए प्रति कैरेट ही बिक रही नाशपातीनाशपाती भोले के दरबार में भी चढ़ती है इसलिए कांवड़ यात्रा के दौरान नाशपाती की अच्छी डिमांड रहती थी. लेकिन इस बार कोरोना की वजह से और कांवड़ यात्रा रद्द होने की वजह से नाशपाती के खरीददार न के बराबर रहे. यही नहीं दूसरे राज्यों से आऩे वाले कारोबारी भी इस बार नहीं आए. किसी तरह से किसान औने पौने दाम पर अपनी नाशपाती बेच रहे हैं. जो नाशपाती 200 रुपए प्रति कैरेट के हिसाब से बिका करती थी वो आज की तारीख में 30 से 40 रुपए प्रति कैरेट ही बिक रही है. ऐसे में किसान सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी मदद की जाए.
आम के कारोबार को भी भारी नुकसान
नाशपाती की फसल के साथ आम की फसल को भी ख़ासा नुकसान हुआ है. आम का कारोबार भी इस बार ठंडा ही रहा. जो आम अमूमन 800 रुपए प्रति कैरेट बिका करता था, आज की तारीख में उसकी कीमत 200 से 250 रुपये प्रति कैरेट रह गई है. यही नहीं पेड़ पर रहते रहते आम में भी कालापन आ गया है. आम में कालापन आने की वजह से भी इसके दाम गिर गए. आम के दीवानों को तो बगिया बहुत रास आती है. दूर-दूर से लोग आम के बाग आकर ख़ुश होते हैं लेकिन फलों से लदी हुई बगिया अगर किसी को रास नहीं आ रही है तो वो हैं किसान.
सरकार से मदद की गुहार लगा रहे किसान
फलों का उत्पादन करने वाले किसान सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी मदद की जाए ताकि उनके घर का भी चूल्हा जल सके. वो साल भर अपनी बगिया की ओर ही टकटकी लगाए बैठे रहते हैं कि कब फसल होगी और कब उनकी तंगहाली दूर होगी. वो अपने बच्चों की स्कूल की फीस दे पाएंगे या फिर बेटियों की शादी कर पाएंगे. लेकिन इस बार कोरोनाकाल ने सब कुछ तबाह करके रख दिया है. ऐसे में उन्हें बस ऊपरवाले पर भरोसा है या फिर सरकार पर.
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