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दुकानदारों को बाल मिठाई, सिंगौड़ी, चॉकलेट के स्थान पर आलू, लौकी, खीरा और शिमला मिर्च बेचनी पड़ रही है.
तीन महीने किया इंतज़ार
मिठाई बिक्रेता बृजेश कहते हैं कि उन्होंने तीन महीने तक इंतजार किया कि उनका काम शुरु होगा लेकिन कोई भी ग्राहक बाजार में न होने से बनी हुई मिठाई बर्बाद ही हो रही थी. उन्हें दुकान का किराया भी देना था और घर का खर्चा भी चलाना था. फिर सोचा कि सब्ज़ी ही बेची जाए जिससे दुकान का किराया तो निकलेगा. फिर सब्ज़ी बच गई तो घर में भी इस्तेमाल हो जाएगी.
नरेन्द्र चौहान अल्मोड़ा की मॉल रोड़ पर साड़ियां बेचते थे. वह देश के अलग-अलग राज्यों की साड़ी बेचते थे. शादी विवाह के समय तो दुकान में काफी भीड़ लगी रहती थी. पिछले four महीनो से पर्यटकों की आवाजाही शून्य है और शादी विवाह भी नहीं हो रहे. घर चलाने के लिए चौहान को भी नया काम शुरु करना पड़ा.
कोरोना काल में मिठाई बेचने वालों को सब्ज़ियां और फल बेचकर काम चलाना पड़ा.
साड़ी की जगह मंडुवा
प्रसिद्ध साड़ी विक्रेता की दुकान में कश्मीरी साड़ी की जगह पहाड़ी मंडुवा, बनारसी साड़ी की जगह पहाड़ी कद्दू और जयपुरी साड़ी की जगह पहाड़ी केलों ने ले ली. तीन महीने तक इंतज़ार के बाद व्यापारियों ने अपने पारम्परिक व्यापार को बदलना ही उचित समझा.
बाल मिठाई भल ही अब प्रदेश भर में और दिल्ली जैसे महानगरों में भी मिलने लगी है लेकिन इसकी पहचान अल्मोड़ा से ही है. अल्मोड़ा गए और बाल मिठाई नहीं लाए तो आपके दोस्त आपसे बात नहीं करते थे.
लेकिन कोरोना काल में बहुत सारी चीज़ें बदल गई हैं. जब लोग ही नहीं आ-जा रहे हैं तो मिठाई बनाकर दुकानदार क्या करेंगे. अच्छी बात यह है कि बाज़ार में सिर्फ सब्ज़ी और राशन की मांग बनी हुई है और यही बेचकर लोग अपने लिए भी सब्ज़ी-राशन का इंतज़ाम कर पा रहे हैं.
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