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कानपुर. उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवानों की बर्बर हत्या का मुख्य आरोपी विकास दुबे (Vikas Dubey) का खेल खत्म हो चुका है. शुक्रवार सुबह वह पुलिस एनकाउंटर (Encounter) में मारा गया. पिछले 28 सालों में दर्जनों मर्डर करने वाला विकास उत्तर प्रदेश में आतंक का सबसे बड़ा नाम था. सत्ता किसी की हो विकास दुबे हमेशा राज करता था. वजह थी सत्ता चलाने वालों तक विकास की पहुंच. आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर कैसे उत्तर प्रदेश के इस बाहुबली ने 30 साल तक खूनी खेल खेला…
>> 1990 में मारपीट: 1980 और 90 के शुरुआती दशक में उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति हावी थी. ऐसे में अपर कास्ट और लोअर कास्ट के बीच झड़प आम बात थी. 1990 में विकास 20 साल का था. इसी साल पहली बार विकास पर दूसरी जाति के लोगों को मारने का आरोप लगा था. विकास की दलील थी कि इन सबने उनके पिता का अपमान किया था. मामला पुलिस स्टेशन पहुंचा. लेकिन किसी स्थानीय नेता ने पुलिस पर दवाब बनाया और विकास दुबे छूट गया.
>>दलितों की हत्या: साल 1991 में विकास के खिलाफ पहली बार भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (जानबूझ कर किसी को चोट पहुंचाने का आरोप) के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ. एक साल बाद ही 1992 में विकास ने दो दलितों की हत्या कर दी. कानपुर के चौबेपुर थाने में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ. गिरफ्तारी के बाद उसे जेल भेज दिया गया. लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वो जमानत पर छूट गया. इसके बाद तो वो ऊंची जाति के कुछ लोगों के बीच हीरो बन गया.
>> डॉन बना नेता: साल 1992 के बाद अगले four साल सालों तक विकास अपने इलाके में नेता के तौर पर उभरने लगा. हर छोटे-बड़े चुनाव में राजनीतिक दल उसे याद करने लगे. बड़े नेताओं से लेकर सरकारी ऑफिसर और फिर बड़े पुलिस अधिकारी हर जगह विकास ने पैठ बना ली. साल 1996 में वो बीएसपी में शामिल हो गया. शिवली और उसके आप पास के इलाकों में वो उन दिनों हरिकिशन श्रीवास्तव का काफी करीबी माना जाता था.
>> कॉलेज के प्रिंसिपल की हत्या: साल 2000 में तो विकास दुबे डॉन बन गया. उसने शिवली कस्बे में तारा चंद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे को गोली मार दी. ये सनसनीखेज हत्या एक जमीन विवाद को लेकर हुई.
>> बीजेपी नेता की हत्या: साल 2001 में विकास दुबे ने बीजेपी के सीनियर नेता संतोष शुक्ला की शिवली पुलिस स्टेशन के अंदर हत्या कर दी. उन दिनों केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. कहा जाता है कि हरिकिशन श्रीवास्तव और संतोष शुक्ला के बीच राजनीतिक लड़ाई के चलते उसने ये मर्डर किया. पुलिस स्टेशन में हत्या को अंजाम देने के बाद भी पुलिस उसे वहां गिरफ्तार नहीं कर सकी. आखिरकार उसने कोर्ट में सरेंडर किया.
>> मर्डर के आरोपों से बरी: विकास दुबे इसके बाद कोर्ट कचहरी के चक्कर काटता रहा. इस दौरान उसके खिलाफ 60 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए गए. विकास ने राजनीति दलों की मदद से सारे सबूत मिटा दिए. केस के सारे गवाह मुकर गए. यहां तक कि पुलिस वालों ने कहा कि उसने विकास को पुलिस स्टेशन के अंदर गोली चलाते नहीं देखा. संतोष शुक्ला मर्डर केस से वो बरी हो गया.
>> सज़ा पर रोक: तारा चंद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडे को गोली मारने के केस में विकास को सजा मिली. लेकिन बाद में इलाहबाद हाईकोर्ट ने उसकी सजा पर रोक लगा दी.
>> एनकाउंटर का दौर: मार्च 2017 में, उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. उन्होंने जल्द ही संगठित अपराध और माफिया के खिलाफ कठोर नीति घोषित की. जल्द ही प्रदेश में एनकाउंटर एक आम बात हो गई. एसटीएफ ने विकास दुबे को गिरफ्तार भी किया. लेकिन एक बार फिर वो जमानत पर रिहा हो गया.
>> बीजेपी में शामिल होने की कोशिश: सूत्रों के मुताबिक विकास दुबे बीजेपी में शामिल होने की कोशिश कर रहा था. बीजेपी के कुछ नेता उनका समर्थन कर रहे थे. लेकिन दिल्ली में बैठे कुछ सीनियर नेताओं ने उसके खिलाफ आवाज़ उठा दी. कहा जा रहा है कि संतोष शुक्ला से बीजेपी के एक नेता का परिवारिक रिश्ता है और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया.
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