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राम मंदिर आंदोलन और योगी आदित्यनाथ: योगी के गुरु महंत अवैद्यनाथ श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्यक्ष रहे.
दिग्विजय नाथ के निधन के बाद उनके शिष्य ने आंदोलन को आगे बढ़ाया. वे श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्यक्ष रहे. जब तक यह आंदोलन चला आदित्यनाथ भी उसे धार देते रहे. वो कहते रहे हैं कि ‘राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं…मेरे लिए जीवन का मिशन है’.
लंबे समय से गोरखनाथ मंदिर की गतिविधियों पर रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार टीपी शाही कहते हैं, ‘योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षनाथ पीठ के महंत रहे अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे. वो ‘श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ के अध्यक्ष थे. महंत अवैद्यनाथ के दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस के साथ बेहद अच्छे संबंध थे. रामचंद्र परमहंस राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष भी थे, जिसे मंदिर निर्माण के लिए गठित किया गया था.’
इसे भी पढ़ें: कौन हैं गोपाल सिंह विशारद, जिन्होंने राम मंदिर को लेकर किया था पहला मुकदमा“माना जाता है कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने का प्लान उनकी देखरेख में तैयार किया गया था. मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने इलाहाबाद में जिस धर्म संसद (साल 1989 में) का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया. धर्मसंसद के तीन साल बाद दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया.”
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ
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शाही के मुताबिक, ‘अवैद्यनाथ से पहले गोरक्षनाथ मठ के महंत दिग्विजय नाथ उन चंद शख्सियतों में थे जिन्होंने शुरुआती तौर पर बाबरी मस्जिद को मंदिर में बदलने करने की कल्पना की थी. उन्हीं की अगुवाई में 22 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे के भीतर चोरी-छिपे भगवान राम की प्रतिमा रखवाई गई थी. उस समय हिंदू महासभा के विनायक दामोदर सावरकर के साथ दिग्विजय नाथ ही थे, जिनके हाथ में इस आंदोलन की कमान थी. हिंदू महासभा के सदस्यों ने तब अयोध्या में इस काम को अंजाम दिया था. ये दोनों लोग अखिल भारतीय रामायण महासभा के सदस्य थे.’
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