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शिवप्रताप शुक्ल (Shiv Pratap Shukla) के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1970 में हुई थी. वह सबसे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे.
भाजपा नेतृत्वका शिव प्रताप शुक्ला को आगे करने का मकसद सिर्फ ब्राह्मणों को साधना ही नहीं बल्कि ये भी संदेश देने की कोशिश है कि कभी सीएम योगी आदित्यनाथ के विरोधी रहे शिवप्रताप शुक्ला पर पार्टी पूरा भरोसा करती है. 2002 के विधानसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर सदर सीट से शिवप्रताप शुक्ला का विरोध करते हुए इनके खिलाफ राधा मोहनदास अग्रवाल को हिन्दु महासभा के टिकट पर जितवा दिया था.
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जिसके बाद शिव प्रताप शुक्ला चुनावी राजनीति से दूर संगठन के काम में जुटे रहे. समय के साथ, मृदुभाषी और मिलनसार शिवप्रताप शुक्ला के रिश्ते धीरे- धीरे योगी आदित्यनाथ से भी, पहले जैसे प्रगाढ़ हो गये और यही नहीं जब राज्यसभा सदस्य के रूप में उनके नामांकन की बारी आयी तो राधा मोहन दास अग्रवाल ही उनके प्रस्तावक बने थे.1970 में शुरू किया राजनीतिक सफर
शिवप्रताप शुक्ल के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1970 में हुई थी. वह सबसे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे. 1981 में पहली बार भाजयुमो के क्षेत्रीय मंत्री बने. इमरजेंसी में मीसा के तहत गिरफ्तार हुये. करीब 19 महीने जेल में रहना पड़ा. 2012 में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बने. गोरखपुर से 1989 में कांग्रेस के सुनील शास्त्री को हराकर पहली बार विधानसभा में पहुंचे. 1989, 1991, 1993 और 1996 में लगातार गोरखपुर से विधायक चुने गये. यूपी सरकार में तीन बार कैबिनेट मंत्री बने. आरएसएस के स्वंयसेवक और उसकी विचारधारा के पोषक होने के नाते संगठन में उनकी गहरी पकड़ है. पार्टी में नई जिम्मेदारी मिलने पर उनके समर्थकों में उत्साह है.
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