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नवादा (Nawada) के अम्हड़ी गांव में एक अदद पुल (Bridge) के नहीं रहने से तकरीबन तीन हजार से बड़ी आबादी सीधे इससे प्रभावित हो रही थी.
वोट का बहिष्कार भी नहीं आया काम
ग्रामीणों ने कहा कितने सांसद, विधायक एवं जनप्रतिनिधि आए, लेकिन कोरा आश्वासन के सिवा आज तक कुछ नहीं दिया. चुनाव में ये नेता केवल वोट के लिए पुल बनाने की बात हर बार कहते मगर चुनाव जीतते ही कभी लौट कर गांव नहीं आते. नेताओं की इसी नाफरमानी से तंग आकर ग्रामीणों ने लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव में वोट बहिष्कार भी किया. जिला प्रशासन के अधिकारी भी उस वक्त आश्वासन देकर गए, मगर पुल नहीं बना. तब ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से पुल बनाने का निर्णय लिया और आज नतीजा सभी के सामने है.
मंदिर का जीर्णोद्धार छोड़ किया पुल का निर्माणएक पुल के नहीं रहने से तकरीबन तीन हजार से बड़ी आबादी सीधे इससे प्रभावित हो रही थी. गांव के छोटेलाल, बालेश्वर चौधरी, गरीबन चौधरी, राजेश्वर वर्मा आदि ने बताया कि पुल सबसे ज्यादा जरूरी था. इसलिए उन्होंने गांव के निर्माणाधीन मंदिर के कार्य को बीच में छोड़कर पहले पुल बनाने का बीड़ा उठाया. तकरीबन सभी ग्रामीणों ने तीन सालों तक लाखों रुपये इकट्ठा कर इस पुल को बनाया. गांव को जाने के लिए सबसे सहज रास्ता यही था मगर पgल के नहीं रहने से काफी परेशानी होती थी. खासकर बच्चों को स्कूल जाने में, इलाज कराने मरीजों को बाहर जाने में काफी मुश्किल थी. कोई अतिथि आ जाए तो सबसे अधिक शर्मिंदगी महसूस होती थी.
संपर्क पथ से जुड़ते ही शुरू होगा आवागमन
बहरहाल ग्रामीणों की जीवटता से पुल बन चुका है. अब केवल दोनों तरफ से संपर्क पथ को जोड़ा जाना बाकी है. पुल के दोनों तरफ पक्की सड़क है लिहाजा ग्रामीणों के पास उसे जोड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. हालांकि उनकी योजना है कि जल्दी ही फंड जुटाकर उसे भी जोड़ दिया जाएगा. फिलहाल यह मांग है कि प्रशासन कम से कम संपर्क पथ को जोड़ दे ताकि लोगों की समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाए. स्थानीय बीडीओ से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि कनीय अभियंता के माध्यम से वो उस पुल का निरीक्षण करवाएंगे और वरीय पदाधिकारी के समक्ष बचे हुए कार्य का संज्ञान उनके समक्ष रखेंगे. बहरहाल सरकारी आश्वासनों और प्रक्रियाओं को मुंह चिढ़ाता पुल बनकर तैयार है. अब इंतजार इसके चालू होने का है.
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