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महिला एक निजी स्कूल में शिक्षिका (Teacher) थी. उसे भी कोरोनाकाल में सैलरी नहीं मिल रही थी. लिहाज़ा उसने संस्था के पदाधिकारियों से ही सहयोग करने की अपील कर डाली.
कम से कम बेटियों की फीस माफ की जाए
इससे पहले फीस के लिए भीख मांग रहे लोगों का कहना था कि कोरोनाकाल में अभिभावकों पर फीस का अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ना चाहिए. वो सरकार से मांग कर रहे हैं कि कम से कम बेटियों की फीस तो ज़रुर माफ की जाए. मेरठ की इस संस्था के लोगों का कहना है कि अभिभावक आजकल परेशान हैं. कहीं-कहीं तो तीन महीने की फीस जमा न करने पर बच्चों का नाम तक काटा जा रहा है. ऐसे में उन्हें जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो वो चौराहे पर भीख मांगकर अपनी आवाज़ बुलंद करने लगे.
प्राइवेट स्कूल ने दर्जनों बच्चों का काटा नामबीते दिनों मेरठ के एक प्राइवेट स्कूल पर आरोप लगे कि उसने दर्जनों बच्चों को स्कूल से इसलिए निकाल दिया क्योंकि उनके अभिभावकों ने फीस नहीं जमा की थी. इन अभिभावकों को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो वो शासन के निर्देशों की कॉपी लेकर ज़िलाधिकारी कार्यालय पहुंचे, डीआईओएस ने इन अभिभावकों को आश्वासन दिया कि उनके बच्चों का नाम कोई स्कूल नहीं काट सकता.
ऑनलाइन क्लासेज के ग्रुप से निकाल दिया जा रहा
अभिभावकों का कहना है कि स्कूल की तरफ से ऑनलाइन क्लासेज के लिए सोशल मीडिया पर ग्रुप बना हुआ है. एकाएक इस ग्रुप से दर्जनों बच्चों को इसी ग्रुप से रिमूव कर दिया गया. परेशान अभिभावक स्कूल के प्रिंसिपल से मिलने पहुंचे लेकिन वो टस से मस नहीं हुईं. प्रिंसिपल का कहना है कि जब तक फीस जमा नहीं की जाती वो बच्चों को एडमिशन नहीं दे सकतीं. पैरेन्टस का कहना है कि कोरोनाकाल में कोई कमाई नहीं है. ऐसे में वो एक महीने की फीस तो किसी तरह इंतजाम करके दे सकते हैं लेकिन एनुअल चार्जेज़ के नाम पर वो हज़ारों रुपए कहां से लाएं. वो स्कूल की इस तानाशाही से बेहद परेशान हैं.
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