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शुक्रवार सुबह एसटीएफ ने कानपुर में गैंगस्टर विकास दुबे को एक एनकाउंटर में मार गिराया. एसटीएफ का कहना है कि वाहन पलटने के बाद विकास ने ए पुलिसकर्मी के हथियार छीनकर भागने की कोशिश की, जिसमें उसे घेरकर मार गिराया गया. इस एनकाउंटर के बाद गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई है. कुछ लोग इसे सही बता रहे हैं तो कुछ एनकाउंटर की वैधता पर सवाल उठा रहे हैं.
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस एनकाउंटर पर 16 पॉइंट की गाइडलाइन जारी की थी. किसी भी पुलिस एनकाउंटर में सुप्रीम कोर्ट के इन गाइडलाइन को फॉलो किया जाना जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर एनकाउंटर में किसी की मौत होती है तो एनकाउंटर की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये 16 गाइडलाइन दिए थे-1. अगर पुलिस को किसी आपराधिक गतिविधि या गंभीर अपराध किए जाने की जानकारी मिलती है तो पुलिस को पहले इसकी जानकारी लिखित में रखनी होगी. पुलिस केस डायरी में इसकी जानकारी लिखे या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में जानकारी को सुरक्षित रखे. इस तरह की खुफिया जानकारी में संदिग्धों के नाम या फिर उनका लोकेशन लिखना जरूरी नहीं है.
2. अगर एनकाउंटर में किसी की जान जाती है तो पुलिस सबसे पहले मामले की एफआईआर दर्ज करेगी. इसके बाद सेक्शन 157 के तहत एफआईआर की कॉपी बिना देरी किए कोर्ट को सौंपी जाएगी.
3. पुलिस एनकाउंटर की सीआईडी या किसी दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम स्वतंत्र जांच करेगी. टीम का नेतृत्व सीनियर अधिकारी करेंगे. टीम का नेतृत्व करने वाले अधिकारी का पुलिस एनकाउंटर का नेतृत्व करने वाले अधिकारी से कम से कम एक पोस्ट सीनियर होना जरूरी है.
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4. अगर पुलिस फायरिंग में किसी की मौत होती है तो सेक्शन 176 के तहत किसी मजिस्ट्रेट से जांच जरूरी है. सेक्शन 190 के तहत जांच रिपोर्ट ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को सौंपी जाएगी.
एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस यूपी पुलिस को माननी होंगी.
5. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का जांच में शामिल होना जरूरी नहीं है, जब तक कि स्वतंत्र जांच में किसी तरह का संदेह न हो. हालांकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या फिर राज्य के मानवाधिकार आयोग को इसकी जानकारी देना जरूरी है.
6. अगर मुठभेड़ में कोई आरोपी या संदिग्ध जख्मी होता है तो उसे मेडिकल सुविधा उपलब्ध करवानी चाहिए. उसका स्टेटमेंट किसी मजिस्ट्रेट या फिर मेडिकल ऑफिसर के सामने रिकॉर्ड किया जाना जरूरी है.
7. ये जरूरी है कि पुलिस एफआईआर की कॉपी, केस डायरी, पंचनामा, स्केच जैसी चीजें संबंधित कोर्ट को भेजे.
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8. जांच पूरी हो जाने के बाद सेक्शन 173 के तहत रिपोर्ट संबंधित कोर्ट को सौंपी जाए. जांच अधिकारी के चार्जशीट दाखिल करने के बाद तेजी से मामले का निपटारा होना चाहिए.
9. एनकाउंटर में मौत की स्थिति में मृतक के नजदीकी परिजन को जल्द से जल्द जानकारी दी जाए.
10. पुलिस फायरिंग में मौत के हर मामले की जानकारी छह महीने में राज्य के डीजीपी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपे. ये रिपोर्ट जनवरी और जुलाई महीने की 15 तारीख तक मानवाधिकार आयोग को मिल जानी चाहिए.
11. अगर जांच रिपोर्ट में किसी पुलिसकर्मी की गलती निकलती है तो सबसे पहले उसे सस्पेंड कर, उसके खिलाफ जांच शुरू होनी चाहिए. उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू हो.
12. सेक्शन 357-ए के तहत एनकाउंटर में मारे गए शख्स के आश्रित को मुआवजा दिया जाना चाहिए.
13. पुलिस एनकाउंटर के बाद एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मी को अपने फायरआर्म्स फॉरेंसिक या बैलिस्टिक एनालिसिस के लिए जमा करवाना जरूरी है. जांच टीम को लगता है कि किसी और चीज को भी जमा करवाना जरूरी है तो वो करवा सकती है.
14. संबंधित पुलिस अधिकारी के परिजन को भी मामले की जानकारी दिया जाना जरूरी है. अगर लगता है कि पुलिसकर्मी को कानूनी सहायता की जरूरत है तो उसे उपलब्ध करवाना चाहिए.
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15. एनकाउंटर की किसी घटना के तुरंत बाद संबंधित पुलिस अधिकारी को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन या किसी तरह का अवॉर्ड नहीं दिया जाना चाहिए. अगर जांच में संबंधित पुलिस अधिकारी निर्दोष साबित होता है तभी प्रमोशन या अवॉर्ड मिल सकता है.
16. अगर एनकाउंटर के पीड़ित पक्ष को लगता है कि पुलिस सुप्रीम कोर्ट के इन गाइडलाइन को फॉलो नहीं कर रही है, या उन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पर किसी तरह का संदेह उत्पन्न होता है तो वो सेशन जज से इसकी शिकायत कर सकते हैं. सेशन जज शिकायत की गंभीरता देखते हुए कार्रवाई कर सकते हैं.
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