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तेजस्वी यादव (Tejaswi Prasad Yadav) अपने पिता लालू की तरह रघुवंश प्रसाद को तवज्जो देने के मूड में नहीं है, तो कुछ इसी तरह से बाबा यानी शिवानन्द तिवारी भी पार्टी में अलग-थलग पड़े हुए हैं.
तवज्जो देने के मूड में नहीं तेजस्वी !
रघुवंश प्रसाद सिंह का मामला जो भी हो लेकिन इतना तय है कि तेजस्वी (Tejaswi Prasad Yadav) अपने पिता लालू की तरह रघुवंश प्रसाद को उतना तवज्जो देने के मूड में नहीं है कुछ इसी तरह से बाबा यानि शिवानन्द तिवारी भी पार्टी में अलग-थलग पड़े हुए हैं जब से शिवानन्द तिवारी ने तेजस्वी के दिल्ली भ्रमण पर बयान दिया है उसके बाद से ही बाबा पार्टी के कई बड़े कार्यक्रमों से दूर होते चले गए हैं. खबर ये है कि तेजस्वी कई मौकों पर बाबा को फोन तक नहीं करते और पार्टी के कार्यक्रमों की इन्हें कोई जानकारी तक भी नहीं होती. हालांकि लंबे समय के बाद इस बार पार्टी के 24 वें स्थापना दिवस के मौके पर तेजस्वी यादव ने खुद बाबा शिवानन्द तिवारी और रघुवंश प्रसाद सिंह को फोन किया था. रघुवंश बाबू तो कोरोना संक्रमण की वजह से अभी होम क्वारन्टीन हैं लेकिन शिवानन्द तिवारी ने भी अपनी लंबी उम्र और कोरोना का हवाला देकर पार्टी के स्थापना दिवस से दूरी बना ली. लेकिन इसके पीछे असली वजह ये है कि शिवानन्द तिवारी और रघुवंश प्रसाद सिंह की पार्टी जिस तरह से अनदेखी कर रही है ये पुराने नेता काफी नाराज हैं और यही कारण है कि रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से पहले इस्तीफा दे दिया तो शिवानन्द तिवारी पार्टी के बड़े कार्यक्रमों से लगातार दूरी बना रहे हैं.
दर्द में हैं लालू के संकटमोचक तो बाबा का भी छलका दर्दखुलकर तो नहीं लेकिन दबे जुबानों में बाबा कहते हैं कि जमाना बदल गया है और तेजस्वी युवाओं को लेकर मिशन 2020 के लिए निकल पड़े हैं हमारे जैसे पुराने नेताओं और पुराने सोच से भला अब तेजस्वी को क्या हासिल होनेवाला है. जगदानन्द सिंह जैसे नेता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और तेजस्वी को सही तरह से गाइड भी कर रहे हैं. शिवानन्द तिवारी का दर्द तो जरूर छलकता है बावजूद इसके बाबा खुलकर तेजस्वी के खिलाफ या फिर खुद की अनदेखी पर कुछ भी बोलने से बचना चाहते हैं. उधर रघुवंश प्रसाद सिंह भी इस इंतजार में हैं कि पार्टी रामा सिंह को कब शामिल कराती है और अगर ऐसा हुआ तो फिर रघुवंश बाबू कोई भी बड़ा फैसला ले सकते हैं.
विपक्ष को मिला मौका
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान रघुवंश बाबू ने इसके साफ संकेत भी दे दिए हैं ऐसे में आरजेडी भले ही अपने पुराने नेताओं को कोई खास तवज्जो ना दे लेकिन विरोधी पार्टियां इसके जरिये तेजस्वी पर जरूर हमलावर हो गई हैं. एनडीए के नेताओं का कहना है कि ये सब तेजस्वी के अहंकार का ही नतीजा है कि लालू के रत्नों की ना तो उन्हें कोई कद्र है और ना ही उनकी कोई चिंता ही है. शिवानंद तिवारी और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं की अपनी मजबूरी भी है कि वो खुलकर अपना दर्द या फिर अपना गुस्सा जाहिर भी नहीं कर सकते क्योंकि ये नेता कहीं ना कही लालू से बहुत पुराने दिनों से और बहुत मजबूती से जुड़े रहे हैं खासकर रघुवंश प्रसाद सिंह और लालू की दोस्ती की तो राजनीति में एक मिशाल भी दी जाती है. लेकिन आज जब आरजेडी की कमान युवा तेजस्वी यादव के हाथों में है तो पार्टी इन रणबांकुरों को अपने स्पेशल टीम से कही बाहर रखे हुए हैं वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि बदले हुए परिदृश्य में आरजेडी ज्यादा से ज्यादा युवाओं पर फोकस कर रही है लेकिन जगदानन्द सिंह जैसे पुराने नेताओं को साथ लेकर तेजस्वी बड़ी समझदारी से ये भी सन्देश देना चाहते हैं कि उन्हें बुजुर्गों के अनुभव की भी जरूरत है लेकिन जानकारों के मुताबिक तेजस्वी की यह स्ट्रेटजी कहीं चुनाव में उन्हें नुकसान ना पहुंचा दे इसकी भी संभावना दिखती है क्योंकि रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं का तजुर्बा बिहार की राजनीति में बहुत बड़ा है.
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लालू जुटे हैं डैमेज कंट्रोल में
तेजस्वी अपने स्पेशल टीम से लालू के पुराने साथियों को भले ही अलग कर दें लेकिन लालू बखूबी जानते हैं कि उनके रणबांकुरों की ताकत क्या है शायद यही कारण है कि लालू खुद रघुवंश प्रसाद सिंह को मनाने में लगे हैं और यही कारण भी है कि रामा सिंह की अब तक आरजेडी में इंट्री नहीं हो पाई है जबकि तेजस्वी किसी भी कीमत पर रामा सिंह को आरजेडी में शामिल कराना चाहते हैं. कहा जा रहा है कि लालू यादव अपनी पुरानी दोस्ती का हवाला देकर रघुवंश बाबू को मनाने में भी लगे हुए हैं.
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