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अक्टूबर-नवंबर में होना है चुनाव
बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होना है. हालांकि चुनाव आयोग की तरफ से न तो अभी चुनाव कराने की बात स्वीकारी गई है और ना ही तारीखों का ऐलान हुआ है. लेकिन नीतीश कुमार के पांच साल के कार्यकाल का अंतिम महीना अक्टूबर माना जाता है और इसी महीने में चुनाव होने होते है. इस बार का विधानसभा का चुनाव कई मायनों में अलग होने वाला है. वजह साफ है कोरोना महामारी का असर इस चुनाव पर साफ तौर पर देखा जाएगा. हालांकि कुछ राजनीतिक दलों ने इसकी तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी है. कुछ दलों ने टेक्नोलॉजी का सहारा लेते हुए वर्चुअल रैली तक आयोजित कर ली है तो कुछ दल लगातार अपने आप को टेक्नोफ्रेंडली बनाने में जुटी है. बिहार बीजेपी ने देश के गृह मंत्री अमित शाह की रैली वर्चुअल आयोजित की. वहीं बीजेपी लगातार अपनी मीटिंग और विधानसभा सम्मेलन वर्चुअल आयोजित कर रही है. जेडीयू भी अपने सोशल मीडिया की टीम को मजबूत करने में लगी है. हालांकि आरजेडी चुनाव का विरोध कर रही है फिर भी सोशल मीडिया के आंकड़ों के मुताबिक आरजेडी के सबसे ज्यादा फालोअर है. वहीं अंदरखाने सभी पार्टियां अपने आपको सोशल मीडिया पर मजबूत करने में लगी है.
चुनाव से पहले कैसे होगी तैयारीसवाल यह है कि आखिर यह चुनाव होगा कैसे? किस तरह से मतदानकर्मी वोट करवाएंगे? कैसे लोग कतार में खड़े होकर वोट करेंगे? कितने लोग मतदान के काम करेंगे और कितने लोग सुरक्षा में तैनात होंगे? चुनाव से पहले मतदानकर्मियों की ट्रेनिंग कैसे और कहां होगी? कई सवाल हैं जिनका उठना स्वाभाविक है.
मतदान कर्मियों की ट्रेनिंग कैसे होगी?
बिहार में 72, 723 मतदान केंद्र है. चुनाव आयोग के सूत्रों की बात मानें तो इन चुनावों में मतदान केंद्रों की संख्या को बढ़ाया जाएगा. बताया जा रहा है कि इसकी संख्या 1 लाख 6 हजार हो जाएगी. ऐसे में प्रत्येक बूथ पर यदि कम से कम 5 मतदान कर्मी होते हैं तो मतदानकर्मियों की संख्या 5 लाख 30 हजार हो जाएगी. इन 5 लाख 30 हजार मतदान कर्मियों को चुनाव से पहले ट्रेनिंग दी जाती है. मसलन की ईवीएम कैसे संचालित करना है? किस तरह से मतदाताओं के पहचान पत्र को देखना है? उन्हें कैसे एंट्री करनी है? इसके बाद ईवीएम में कैसे वोट कराना है? एक पूरी प्रक्रिया होती है. इन तमाम चीजों की ट्रेनिंग चुनाव से पहले दी जाती है. अब जब पूरे बिहार में कोरोना महामारी भयानक रूप ले चुकी है. ऐसे में इन मतदानकर्मियों का ट्रेनिंग सेंटर कहां होगा? कभी भी मतदानकर्मियों की ट्रेनिंग 50 – 50 की संख्या में नहीं हो सकती है.इसके लिए उन्हें एक बड़े हॉल में बैठाना होता है और वहां बड़े अधिकारी उनको ट्रेनिंग देते हैं, तो बिहार में यह संभव कैसे हो सकता है?
पुलिस के लिए भी बड़ा चैलेंज है ये चुनाव
बात सुरक्षा की करें तो हर बूथ पर लगभग 10 पुलिसकर्मी तैनात होते हैं. इन पुलिसकर्मियों की ड्यूटी यह होती है कि लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को काबू में रखें. मतदाताओं को कतार में रखें और शांतिपूर्ण मतदान कराने की जिम्मेदारी पुलिसकर्मियों पर होती है. यदि चुनाव एक चरण में होता है तो पूरे बिहार में 10 लाख 60 हजार पुलिसकर्मियों की जरूरत पड़ेगी. ऐसे हालात में इतने पुलिसकर्मी आएंगे कहां से? यदि कई चरणों में चुनाव होते हैं तो एक जगह से दूसरी जगह पर सुरक्षाकर्मी जाते हैं तो क्या संक्रमण फैलने का डर नहीं होगा? ये पुलिसकर्मियों के लिए भी चुनौती होगी.
कोरोना संकट को देखते हुए चुनाव आयोग ने बड़ा फैसला ले सकता है
हर उम्मीदवार के बूथ एजेंट होते हैं
मतदान केंद्रों पर मतदानकर्मियों और सुरक्षाकर्मियों के अलावा राजनैतिक दलों की बूथ एजेंट भी होते हैं. अलग-अलग दलों के या फिर अलग-अलग प्रत्याशियों के. यह बूथ एजेंट चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए पहचान पत्र के बाद बूथ पर तैनात होते हैं. यह मतदाताओं के पहचान पत्र को देखते हैं और उनकी एंट्री अपने पास करते हैं. अब एक बूथ पर इनकी संख्या 5 से लेकर 12 तक हो सकती है. क्योंकि अलग-अलग क्षेत्र में जितने उम्मीदवार होते हैं उतनी ही इनकी संख्या भी होती है. अब एक बूथ पर मतदानकर्मी, सुरक्षाकर्मी, बूथ एजेंट होंगे तो इनकी संख्या लगभग 25 की होती है. इन 25 लोगों के सोशल डिस्टेंसिंग को कैसे मेंटेन किया जाएगा? बूथ कितना बड़ा होगा कि 25 लोग वहां काम कर पाएंगे और लोगों से वोट करा पाएंगे .
वोट करने के लिए कैसे निकलेंगे बाहर?
अगर चुनाव आयोग ऐसे हालात में भी विधानसभा का चुनाव करावाता है तो इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता है कि लोग घर से बाहर निकल कर वोट करेंगे ही. दरअसल लोगों में कोरोनावायरस का भय व्याप्त है. हालांकि चुनाव आयोग ने 60 साल से अधिक उम्र वालों के लिए पोस्टल वोटिंग की व्यवस्था की बात कही है. इसके बावजूद भी लोगों के अंदर जो डर है उसको चुनाव आयोग या फिर सरकार कैसे निकाल पाएगा? जाहिर है कि ऐसे में लो वोटिंग परसेंटेज होने का खतरा है. बिहार जहां जन-जन में राजनीति रची बसी होती है. वैसे हालात में बिहार के लोकतंत्र में कम मतदान प्रतिशत एक बड़ा धब्बा साबित हो सकता है. हालांकि अभी चुनाव कराने और न कराने को लेकर कई फैसले होने बाकी हैं फिर भी यदि चुनाव होते हैं, कम मतदान होते हैं तो उसे भी बिहार की जनता स्वीकार करेगी क्योंकि कोरोनाकाल में लोकतंत्र का यही तकाजा है.
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