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नई दिल्ली. बिहार में मानसून और आपदा ने एक साथ दस्तक दी है. नेपाल के तराई क्षेत्र और बिहार (Bihar) में भारी बारिश हो रही है, जिसके कारण प्रदेश के 15 जिले प्रभावित हैं और इससे जान माल की भारी क्षति हो रही है. कोसी बांध के सभी गेट खोल दिए गए हैं. लगभग 5 लाख क्यूसेक (पानी के बहाव की इकाई) पानी छोड़ा गया है, जिसके कारण कोसी, कमला, बागमती, बालान, गण्डक, महानंदा, गंगा आदि नदियां भारी उफान पर हैं. इससे हजारों गांव, खेतिहर जमीन व आय के अन्य साधन खत्म हो गए हैं. लोगों को खाने-पीने के साथ-साथ चिकित्सा का भी भारी आभाव झेलना पड़ रहा है.
बिहार का शोक कही जाने वाले कोसी नदी (Koshi River) पिछले छह दशकों से अभी भी अपना स्थायी रास्ता नहीं बना पाई है. जबकि 20 बार अपना रास्ता बदल चुकी है. मिथलांचल में शायद ही कोई ऐसा गांव है जहां यंग कोसी का कहर न देखने को मिला हो. इस वर्ष भी बाढ़ (Flood) से हजारों परिवार बेघर हो गए हैं. उन्होंने स्कूलों में शरण ले रखी है.
इस विपदा में किसानों (Farmers) की फसल तहस-नहस हो गई है इसके बावजूद सरकार ने अभी तक कोई सहायता नहीं दी है. कोविड-19 के कारण बिहार में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर (Migrant labour) कोसी क्षेत्र में ही लौटकर आए थे. उन्हें अब कोरोना महामारी के साथ साथ मानव निर्मित बाढ़ का त्रासदी का सामना करना पड़ रहा है. हर साल बिहार के लोगों को इस त्रासदी का सामना करना पड़ रहा है पर भ्रष्टाचारियों के लिए यह अवसर हो गया है. इससे जुड़ी अनियमिता और लूट-खसोट की कई घटनाएं अभी लोगों को देखने को मिलेंगी. सरकार कहीं-न-कही इस विपदा से निपटने में असमर्थ दिख रही है.
बाढ़ आयोग रिपोर्ट में क्या था?
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग रिपोर्ट (National Commission on Flood Report) के अनुसार, आजादी के बाद 25 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ प्रभावित थी जो अब बढ़कर 50 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है. जिससे बिहार के लगभग 2/three जिले बाढ़ के चपेट में आ गए हैं. यह धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है, इसलिए बिहार भारत में सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित राज्य है.
-बिहार भारत में अकेला बाढ़ प्रभावित छतिग्रस्त क्षेत्र का 22.eight प्रतिशत का हिस्सेदार है, जबकि यहां का 16.5 प्रतिशत क्षेत्र ही बाढ़ प्रभावित है.
-उत्तर प्रदेश में 25.1 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है पर छतिग्रस्त क्षेत्र सिर्फ 14.7 प्रतिशत है.
-पश्चिम बंगाल में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 11.5 प्रतिशत है, पर छतिग्रस्त क्षेत्र मात्र 9.7 प्रतिशत है.
-उड़ीसा में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 6.eight प्रतिशत है पर छतिग्रस्त क्षेत्र मात्र 4.eight प्रतिशत है.
इसका मतलब यह है कि बिहार में कम बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होने के वावजूद भारी तबाही होती है. सरकार चाहे तो इस आपदा को कम कर सकती है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल की आवश्यकता है. ताकि अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय तकनीकी दक्षता एवं प्रशासनिक अनुभव की मदद से इस भीषण आपदा को रोका जा सके.
रोकी जा सकती है त्रासदी
बाढ़ नियंत्रण रिपोर्ट एवं अनुभवों को अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि इस त्रासदी को रोका जा सके. 1928 में बाढ़ कमेटी के अध्यक्ष एडम विलियम्स ने लिखा है कि बिहार में बाढ़ की छति को रोका जा सकता है, अगर पानी को जल्द समुद्र में ले जाया जा सके.
यह तभी संभव है, जब पानी के रास्ते में रुकावट बनने वाली सभी चीजों को पानी के रास्ते से हटा दिया जाए. आज़ादी के बाद बांध बाढ़ को रोकने का महत्वपूर्ण साधन बन गया है, पर यह मौलिक तौर पर पानी के प्राकृतिक बहाव को रोकता है. पानी को वापस नदी में जाने से भी रोकता है. इसका नतीजा यह होता है कि बांध ज्यादा खतरनाक हो जाता है.
1942 में घोष कमेटी ने भी लिखा था की बाढ़ को रोका तभी जा सकता है जब बांध बनाने से रोका जाए और नदी को गहरा बनाया जाए ताकि लाखों क्युसेक पानी इकठ्ठा किया जा सके.
कहां से आता है बिहार में पानी?
बिहार में पानी नेपाल (Nepal) के सप्त कोसी से आता है, जिसके पानी की मात्रा और बहाव नापकर बांध बनाना आसान नहीं है. क्योंकि जितने क्युसेक पानी का बांध आप बनाना चाहते हैं उससे कहीं ज्यादा मात्रा और बहाव सप्तकोसी से आ सकता है. 2007 में आई भीषण बाढ़ इसका उदहारण है, जहां लगभग 13 सौ जाने गईं और जान-माल की भारी छति हुई थी.
कोसी बैराज से उफनता पानी
इन तरीकों से कम की जा सकती है क्षति
जब बांग्लादेश में भीषण बाढ़ आई तब अमेरिकी एक्सपर्ट कमेटी के मुखिया हर्वर्ड्स रोजर रेवली ने मापा की करोड़ों क्युसेक पानी को जमीन के अंदर संरक्षित किया जा सकता है. जब हम कंबोडिया में मिकांग नदी को देखने हैं तो पाते हैं कि पानी का विपरीत बहाव टोनले सेप झील में वर्षा के दिनों में होता है. इससे भी बिहार में मानव निर्मित आपदा से निजात पाया जा सकता है.
इसी तरह चीन ने हुबई प्रोविंस में 1998 में तीन जोरजे पानी संरक्षण परियोजना बनाई. यह परियोजना पानी संरक्षण के साथ-साथ बिजली उत्पादन और पर्यटन के लिए बनाई गई. इस परियोजना से जहां एक ओर बाढ़ को नियंत्रित करने में सफलता मिली वहीं दूसरी तरफ अन्य व्यवसायिक योजनाओं को लाभान्वित किया.
इन अनुभवों को अगर बिहार अमल करे तो इस त्रासदी से निजात मिल सकती है. इसके साथ-साथ पानी का भी व्यवसायिक तौर पर सदुपयोग किया जा सकता है.
2007 की भीषण बाढ़ के बाद बिहार सरकार ने नीलेंदु सान्याल के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया, ताकि बाढ़ को रोका जा सके. लेकिन इस रिपोर्ट पर बिहार सरकार ने अभी तक कोई अमल नहीं किया. सान्याल समिति ने अनुशंसा की थी कि हंगरी में जो यंत्र दानुबी नदी (Danube River) के किनारे लगाए गए हैं उसे देखने की आवश्यकता है, ताकि बाढ़ की इस त्रासदी को रोका जा सके.
अब समय आ गया है कि इन रिपोर्टों और अनुभवों को अध्ययन कर केंद्र और राज्य सरकार एक समुचित नीति पर काम करे. ताकि बाढ़ से होने वाली भारी त्रासदी से निजात के साथ-साथ इसके नाम पर हजारों करोड़ की वित्तीय अनियमिताओं को रोका जा सके.
(लेखक, दिल्ली यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफेसर हैं)
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