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हरियाली तीज का मुहूर्त
(बुधवार) जुलाई 22, 2020 को 19:23:49 से तृतीया आरम्भ
(गुरुवार) जुलाई 23, 2020 को 17:04:45 पर तृतीया समाप्तहरियाली तीज के विभिन्न नाम
इस दौरान पृथ्वी पर चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है और यही कारण है कि इसे हरियाली तीज कहा जाता है. ये पर्व उत्तर भारत के राज्यों का मुख्य त्यौहार है, जिसके चलते इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड में हर साल हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. ये पर्व विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा भी मनाया जाता है. वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के नाम से जाना जाता है.
सालभर सावन और भाद्रपद के महीने में, कुल three तीज आती हैं, जिनमें पहली हरियाली तीज व छोटी तीज, दूसरी कजरी तीज और फिर अंत में हरतालिका तीज मनाई जाती है. हरियाली तीज हर वर्ष नागपंचमी पर्व से, ठीक 2 दिन पूर्व मनाई जाती है. हरियाली तीज से लगभग 15 दिन बाद कजली तीज आती है. तीज का त्यौहार मुख्य रूप से महिलाओं में बेहद प्रसिद्ध होता है. इस दौरान महिलाओं द्वारा व्रत कर और सुंदर-सुंदर वस्त्र पहनकर, तीज के गीत गाए जाने की परंपरा है जिसे सालों से निभाया जा रहा है.
हरियाली तीज का महत्व
हरियाली तीज का पर्व विशेष रूप से, भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित होता है. माना जाता है कि इस दिन ही, भगवान शिव पृथ्वी पर अपने ससुराल आते है, जहां उनका और मां पार्वती का सुंदर मिलन होता है. इसलिए इस तीज के दिन, महिलाएं सच्चे मन से मां पार्वती की पूजा-आराधना करते हुए, उनसे आशीर्वाद के रूप में अपने खुशहाल और समृद्ध दांपत्य जीवन की कामना करती हैं. इस पर्व में हरे रंग का भी अपना एक अलग महत्व होता है. विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पीहर जाती हैं, जहां वो हरे रंग के ही वस्त्र जैसे साड़ी या सूट पहनती हैं.
सुहाग की सामग्री के रूप में इस दिन हरी चूड़ियां ही पहने जाने का विधान है. साथ ही महिलाएं इस पर्व पर खास झूला डालने की परंपरा भी निभाती हैं. यही कारण है कि इस दिन विवाहित और कुंवारी महिलाओं को भी पूर्ण श्रृंगार करके झूला झूलते देखा जाता है. विवाहित महिलाओं के ससुराल पक्ष द्वारा इस दौरान सिंधारा देने की परंपरा है जो एक सास अपनी बहू को उसके मायके जाकर देती हैं. सिंधारे के रूप में महिला को मेहंदी, हरी चूड़ियां, हरी साड़ी, घर के बने स्वादिष्ट पकवान और मिठाइयां जैसे गुजिया, मठरी, घेवर, फैनी दी जाती हैं. सिंधारा देने के कारण ही, इस तीज को सिंधारा तीज भी कहा जाता है. सिंधारा सास और बहु के आपसी प्रेम और स्नेह का प्रतिनिधित्व करता है. (साभार- Astrosage.com)
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