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1942 की अगस्त क्रांति की चिंगारी से समस्तीपुर (Samastipur) भी दहक उठा था. हर तरफ अंग्रेजों भारत छोड़ो (Quit India Moment) के नारे लग रहे थे.
सभी अंग्रेजों को खदेड़ने में लगे हुए थे और रेल लाइन, टेलीफोन खंभा उखाड़े तोड़े जा रहे थे. रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस और थाने पर भी हमला शुरू हो गया था. आंदोलन के प्रति लोगों के जज्बे और उत्साह को देखकर अंग्रेजी हुकूमत घबरा उठी थी. अंतिम रूप से आजादी की चिंगारी अपने हृदय में जलाकर आंदोलन पर उतरे मतवाले क्रांति हीरो पर दमनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी थी. अंग्रेजों द्वारा आंदोलन कर रहे जनता पर क्रूरता का पहाड़ टूट पड़ा था. आंदोलन के संदर्भ में लोग बताते हैं कि अंग्रेजों के सिपाही उस वक्त टॉमी गनों से लैस थे और उसके द्वारा सभी आंदोलनकारियों पर दमनात्मक कार्रवाई की जा रही थी.
जब अंग्रेज बरसाने लगे गोली……
बावजूद इसके समस्तीपुर के लोगों ने उस क्रांति के दौरान हिंसा का रास्ता अख्तियार नहीं किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक तरीके को अपनाते हुए आंदोलनकारियों ने थाना डाकघर, रेलवे स्टेशन पर कब्जा जमाते रहे सीने पर गोलियां खाते रहे. उसी दौरान समस्तीपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 500 मीटर से भी कम दूरी पर स्थित थानेश्वर मंदिर के निकट टुनटुनीयां गुमटी पर एक घटना घटी. भारत माता की स्वतंत्रता के लिए सिंह नाद कर रही जुलूस पर ट्रेन के डिब्बे से दनादन गोलियां दागे जाने लगी. थानेश्वर मंदिर टुनटुनीयां गुमटी से लेकर भोला टॉकीज चौराहे तक एक इंजन और एक डिब्बे में टॉमी गनधारी सिपाही हुए लगातार गोलियां बरसाते रहे. अंग्रेजो द्वारा किए गए इस नरसंहार में 21 क्रांतिकारी शहिद हुए. इस दमनात्मक कार्रवाई में सैकड़ो लोग गोलियों से घायल हुए.इस हृदय विदारक घटना से समस्तीपुर में छोभ और क्रोध की ज्वाला धधक उठी. शहीदों के शव के साथ जुलूस निकाला गया और शोक सभा आयोजित हुई. उस वक्त पटना से अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाली अखबार “सर्च लाईट ” के संपादक मुरली मनोहर प्रसाद की ओजस्वी भाषण ने आग में घी का काम किया. इसके बाद एक बार फिर आंदोलन भड़क उठा. इसके बाद आंदोलन का नेतृत्व जननायक करपुरी ठाकुर बीडी शर्मा, जगदीश पोदार राजेन्द्र, नारायण शर्मा, शारदानंद झा जैसे लोगों ने किया. उस वक्त समस्तीपुर दरभंगा जिला का एक अनुमंडल हुआ करता था और समस्तीपुर अनुमंडल के अंतर्गत आठ थाना हुआ करते थे. सभी थाना इलाके में आंदोलन आग की तरह फैल चुकी थी. इस दौरान आंदोलनकारियों द्वारा ताजपुर थाना पर तिरंगा फहराया गया.
दिया मुंहतोड़ जवाब
कई जगहों पर क्रांतिकारियों ने जमकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चाबंदी कर आंदोलन को और तेज कर दिया गया. इसी क्रम में पूसा कृषि फार्म के फ्लेक्स गोदाम टेक्निकल हाई स्कूल में आग लगा दी गई और सारे अभिलेख जला दिए गए. 12 अगस्त 1942 को लाल ऑफिस पर क्रांतिकारियों द्वारा तिरंगा फहराया गया. क्रांतिकारी युवक एवं छात्र राम नरेश त्रिवेदी शिवसागर मिश्र, राम आनंद राय सहित सैकड़ों लोग इसमें शामिल हुए. अंग्रेजो के तरफ से चली गोलियां से दुर्लभ पोदार शहीद हो गए. आंदोलन इतना पर ही नहीं थमा. क्रांतिकारियों ने सिंघिया थाना के कलुआ घाट पर सिपाहियों से बंदूक की गोलियों का बक्सा छीन लिया और सिंघिया घाट थाना पर तिरंगा फहराते हुए कुलदीप नारायण सिंह शहीद हो गए. इस दौरान सिंघिया थाना के मुंशी की हत्या कर दी गई और सभी कर्मी वहां से भाग खड़े हुए. समस्तीपुर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से जुड़े कहानी की फेहरिस्त काफी लंबी है, लेकिन यह वाक्य निश्चित तौर पर युवाओं में एक ऊर्जा का संचार करने वाली कहानी है.
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