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सुरेश बघेल ने न्यूज 18 हिन्दी को दिए इंटरव्यू में आंदोलन में हीरो बनने से लेकर हिन्दू आतंकी कहलाने और फिर एक पछतावे के साथ जीवन जीने पर खुलकर बात की है,
आप खुश होंगे कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा ?
हां खुशी की बात तो है. राम सभी के आराध्य हैं सभी खुश हैं. हालांकि राम मंदिर का मेरा सपना तो 1992 में ही पूरा हो गया था और भरोसा हो गया था कि मंदिर जरूर बनेगा.आप एक आम आदमी, आंदोलन और फिर बाबरी ढांचे को गिराने कैसे में कैसे पहुंच गए.
हां 1985 तक मैं सिर्फ एक बढ़ई था. आश्रमों में लकड़ी का काम करता था. पहली बार 19886 में दिल्ली में बीजपी के एक प्रदर्शन में शामिल हुआ, उसमें बड़े-बड़े नेता शामिल थे. हमारी पहली बार गिरफ्तारी हुई. बड़ा अच्छा लगा. नया-नया जोश था तो वृंदावन वापस लौटकर एक समिति बनाई. सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे. तभी 1990 में अयोध्या राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू हुआ. हर तरफ नारे और शोर था. मैंने भी महंतों और संतों के साथ कार सेवा में शामिल होने का फैसला कर लिया और 30 अक्तूबर 1990 को अयोध्या के लिए रवाना हो गए.
राम मंदिर आंदोलन का हीरो, रासुका, टाडा, हिन्दु आतंकवादी और फिर पांच साल की सजा तक के अपने सफर के बारे में बताइए.
हम अयोध्या पहुंचे.सैकड़ों मौतों से सन्नाटा और दुख पसरा था. राम मंदिर आंदोलन, भाषण, नारे, गहमागहमी चल रही थी. नेता बोले गिरफ्तारी देंगे बस और फिर घर लौट चलेंगे. लेकिन हम ठहरे सीधे सच्चे आदमी. हमें राजनीति तो करनी नहीं थी. मैंने कहा ढांचे पर मैं हमला करूंगा और इसे गिराकर रहूंगा. यहां तक कि बाबरी ढांचे के पास तीन बार पहुंच गया था. तीसरी बार हम दो लोग शिवसैनिकों की मदद से लंगोट में डायनामाइट बांधकर बाबरी ढांचे के परिसर में घुस गये लेकिन उसे उड़ाने से पहले ही गिरफ्तारी हो गई और सिर्फ मैं पकड़ा गया. आंदोलनकारियों में भी हड़कंप मच गया.
समाजवादी पार्टी की सरकार थी, मुझपर सेक्शन-5 विस्फोटक पदार्थ एक्ट (explosive act part 5) और धारा 153 ए में मुकदमा दर्ज हुआ. 10 दिन पुलिस रिमांड पर रहा. जमानत हुई तो मुझे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका )के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. वहां से भी जब मैं बरी होने वाला था तो मुझ पर टाडा (Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) act) लगा दी. मुलायम सरकार ने मुझे पहला हिन्दु आतंकवादी घोषित कर दिया. हालांकि 1997 में मेरे जेल में अनशन करने के बाद टाडा (TADA) हट गई लेकिन बाकी मुकदमे चलते रहे. आखिरकार 2008 में मुझे पांच साल जेल और चार हजार रुपये जुर्माने की सजा हुई. अभी मैं जमानत पर हूं.
-अब तक कितने बार गिरफ्तार हुए और कितने दिन जेल में बिता चुके हैं ?
मेरे जीवन में एक ही मामला हुआ अयोध्या आंदोलन का. उसी में अभी तक पांच से छह बार गिरफ्तार किया गया. एक बार सरेंडर हुआ. बार बार गिरफ्तारी में करीब साढ़े तीन साल जेल में बिता चुका हूं. मुझे इतना उत्पीडित भी किया गया कि टाडा में गिरफ्तारी के दौरान 114 दिन तक कोर्ट में ही पेश नहीं किया.
उत्पीडन के तो और भी किस्से होंगे ?
मैं मानता हूं अब मारपीट और टॉर्चर की बात करना तो अब गैरजरूरी सा है. गिरफ्तारी के दौरान पुलिस के बूट, डंडे और पिटाई बेहद आम बात थी. जेल के अंदर से लेकर बाहर तक जान से मार डालने की धमकियां रोजाना मिलती थीं. यहां तक कि मेरा एनकाउंटर करने की भी कोशिश हुई पर भगवान राम की कृपा से बच गया. कई पुलिसकर्मी मेरा हाल देखकर रोते थे.
किसी पुलिसकर्मी ने आपकी कभी मदद नहीं की ?
(भावुक होकर) हां की. जब मैं 1990 में जेल में बंद था और मुझे मारने की योजना चल रही थी. एक पुलिसवाला मेरे पास आया और रोने लगा. मैंने पूछा रोते क्यों हो तो उसने कहा कि तुम्हें मार दिया जाएगा. मुझे गोली चलाने का आदेश दिया जाएगा लेकिन सौगंध राम की खाता हूं मैं गोली नहीं चलाउंगा. उसके अलावा भी कई पुलिसकर्मियों ने मदद की.
इन मुसीबतों का परिवार पर क्या असर हुआ, शादी-बच्चे?
1988 में मेरी शादी हो गई थी लेकिन 1990 से ही गिरफ्तारी, जेल और मुकदमे शुरू हो गए. घर पर मां-पिताजी, पत्नी और तीन भाई थे. मैं बुरी तरह फंसा हुआ था. घर पर महीनों नहीं आता था. आखिरकार पत्नी मायके जाकर रहने लगी. परिवार बिखर गया. जेल-मुकदमों से कुछ राहत मिली तो 2002 में मेरे बेटी हुई. बेटी के सामने ही दो बार जेल जाना पड़ा और सजा हुई. उसे पढ़ा भी नहीं पाया. दो बार एनीमिया हुआ, जैसे-तैसे बची. फिर शादी के 23 साल बाद बड़ा बेटा और फिर शादी के 30 साल बाद छोटा बेटा हुआ. पत्नी अभी भी मायके में हैं और मैं वृंदावन में रहता हूं.
6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस कांड ने पूरे देश को हिला दिया था. विध्वंस से पहले ढांचे की फोटो.
पत्नी, बच्चों का पालन पोषण कैसे हुआ?
मेरी पत्नी ने बहुत मेहनत की. उसने मजदूरी की, खेतों में काम किया. तब जाकर बच्चों को पाला है. अब 50-55 साल की उम्र में शरीर तो ज्यादा चलता नहीं पर एक प्राइवेट ठेकेदार के नीचे काम करता हूं. उसमें से कुछ पैसा बच्चों के लिए भेज देता हूं. जीवन चल रहा है.
आपके माता-पिता या पत्नी ने कभी रोका नहीं आपको
पिता ने कुछ नहीं बोला और 2000 में गुजर गए. मां जरूर कहती थी कि तू झोपड़ी को भी बिगवाएगा. लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे कभी नहीं रोका. ये जरूर बोलती थी अब बहुत हो गई सेवा, अब तो घर-परिवार देख लो. अब कभी कभी मेरी बेटी साथ रहने आ जाती है तो खुशी मिलती है.
जिन राजनीतिक पार्टियों या लोगों के कहने पर आपने ये कदम उठाया, उन्होंने कितना साथ दिया.
साथ तो किसी ने क्या दिया. सब अपने आप ही झेलना पड़ता है. एक दो बार शिवसैनिकों ने जमानत जरूर ली थी लेकिन 1992 के बाद से सब मुसीबतें खुद ही झेलीं. यहां तक कि बाबरी ढांचे तक पहुंचने की पूरी तरकीब मैं मुंबई जाकर बाला साहेब ठाकरे जी को बताकर आया था. एक बात तो है भाषण देने वालों को पद मिले, सुरक्षा मिली. हमारे विषय में किसी का ख्याल नहीं आया लेकिन मुझे कोई मलाल भी नहीं है.
आपको अपने किए पर पछतावा है ?
अयोध्या आंदोलन, बाबरी ढांचा गिराने की कोशिश, जेल, मुकदमे, तारीखें किसी का भी मुझे कोई पछतावा नहीं है. न ही मैं खुद को अपराधी मानता हूं. उल्टा खुशी है कि मेरी कोशिश के दो साल बाद ही ढांचा गिर गया और लोगों की भावनाओं पर हो रही राजनीति, लोगों की मौत,झगड़े खत्म होने लगे.
हां अगर मैं अपराधी हूं तो अपने मां-बाप और अपनी पत्नी का हूं. मैं अपने कर्तव्य नहीं निभा पाया. मेरे ही कारण मेरी पत्नी का जीवन संघर्ष से भरा रहा. वह मेरे कर्मों में मेरे साथ रही लेकिन मैं उसका साथ नहीं दे पाया.
अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए मिट्टी, जल और अन्य सामान लाया जा रहा है. प्रसाद के लिए लड्डुओं को बनाने का काम जारी है. भूमि पूजन के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम को लेकर अयोध्या की सुरक्षा चाक चौबंद कर दी है. सज धज कर तैयार अयोध्या का प्रवेश द्वार, प्रस्तावित प्रवेश द्वार इससे भी ज्यादा भव्य होगा.
आपने चुनाव भी लड़ा लेकिन आप हार गए ?
हां दो बार लड़ा था. एक बार नई दिल्ली लोकसभा सीट से शिवसैना के मूक समर्थन के साथ लेकिन हार गया. दूसरी बार मथुरा-वृंदावन विधानसभा के लिए लड़ा यहां भी पांचवे नंबर पर आया. फिर लगा कि यह क्षेत्र मेरे लिए नहीं है.
जीवन राम के नाम हुआ या जेल और मुकदमों के नाम, खुद को कहां पाते हैं आज?
(हंसते हैं) संघर्षों भरा जीवन है लेकिन ये तो सबके ही साथ है. जीवन तो राम के नाम ही है. मुकदमे जुड़ते चले गए. कई साल गायों की सेवा की. बाबा का जीवन जीया. कितनी ही मुसीबतों के बाद भी खुश हूं और अपने किए पर अच्छा महसूस करता हूं. अपनी धुन में लगा हुआ हूं. मां-बाप के दिए 50 वर्ग गज के मकान में रहता हूं और कोई संपत्ति नहीं है. आज भी जरूरत पड़ेगी तो हिन्दुत्व के लिए जान लगा दूंगा.
आखिर में वो नारा सुना दीजिए, जो आपको अयोध्या तक खींचकर ले गया.
हां. इस नारे ने जोश भरा था.
जिस हिन्दू का खून न खौले, खून नहीं वो पानी है,
राम मंदिर के काम न आए वो बेकार जवानी है.
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