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गौशाला में गोमूत्र से अर्क बनाया जाता है. वर्मी कंपोस्ट (Compost) बड़े पैमाने पर बनाई जाती है. यही नहीं दो महीने पहले गौशाला में एक मशीन लगाई गई जिसके जरिए गोबर से कंडे, पतली लकड़ी और लट्ठे बनाने का कार्य भी शुरू किया गया.

मेरठ. क्या कोई गाय के गोबर (Cow Sung) से भी कोई करोड़पति बन सकता है. अगर आपको जानना है तो ये स्टोरी आपको जरूर पढ़नी चाहिए. कहानी है मेरठ (Meerut) में संचालित हो रही एक गौशाला की. दिल्ली रोड (Delhi Road) पर गोपाल गौशाला ने कामयाबी की जो इबारत लिखी है वो प्रेरणादायी है. इस गौशाला में गली और सड़कों पर घूमने वाली गायों को संरक्षण दिया जाता है. वैसे तो इस संस्था के 111 वर्ष पूरे हो गए हैं और अब तक न जाने कितनी गायों की सेवा करने का रिकॉर्ड ये संस्था बना चुकी है. लेकिन वर्तमान में यहां तकरीबन साढ़े सात सौ गायों की देखभाल की जा रही है. इनकी न सिर्फ यहां देखभाल की जाती है बल्कि यहां इनके गोबर से भी काला सोना पैदा किया जा रहा है. आपको जानकर अच्छा लगेगा कि यहां कई गायों की तबियत जब ठीक हुई तो वो दूध तो देने ही लगीं उनका गोबर भी किसी काले सोने से कम नहीं. क्योंकि गाय के गोबर से यहां कंपोस्ट खाद बनाई जा रही है. गाय के गोबर से यहां धूपबत्ती, अगरबत्ती बनाई जा रही है. और तो और गाय के गोबर से ही यहां दवाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं.

वर्मी कंपोस्ट से खेती को फायदा

इस गौशाला में गोमूत्र से अर्क बनाया जाता है. वर्मी कंपोस्ट बड़े पैमाने पर बनाई जाती है. यही नहीं दो महीने पहले गौशाला में एक मशीन लगाई गई जिसके जरिए गोबर से कंडे, पतली लकड़ी और लट्ठे बनाने का कार्य भी शुरू किया गया. पतली लकड़ी जहां हवन में काम आती है तो वहीं लट्ठे श्मशान में चिता की लकड़ी की तरह उपयोग में लाए जा सकेंगे. वहीं, गोमूत्र से बना अर्क गुर्दा रोग समेत अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीज ले जाते हैं. कंपोस्ट का उपयोग बागवानी और जैविक खेती करने वाले लोग कर रहे हैं. इससे गौशाला में मल मूत्र का निस्तारण पूरी तरह किया जा रहा है जिससे वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता. गौशाला के प्रबंधक का कहना है कि जो डेयरी संचालक पशुओं के गोबर को नाले में बहा रहे हैं वो समझिए गोबर नहीं अपनी कमाई नाले में डुबो रहे हैं.

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वाकई में एक तरफ जहां डेयरियां गोबर को नाले में बहाकर संकट पैदा कर रही हैं, वहीं ये गौशाला नया रास्ता दिखा रही हैं. अकेले मेरठ में डेढ़ हज़ार से अधिक डेयरियों से निकलने वाले गोबर के निस्तारण की समस्या जहां विकराल रूप ले रही है, वहीं गौशाला संचालकों ने गोवंश के मूत्र और गोबर के निस्तारण का वैज्ञानिक तरीका अपनाकर नई राह खोलने का अनुकरणीय प्रयास किया है. गौशाला संचालक न सिर्फ वैज्ञानिक तरीके से गोबर का निस्तारण कर रहे हैं बल्कि इसके आर्थिक लाभ भी ले रहे हैं. वाकई में अगर डेयरी संचालक गौशालाओं से रत्ती भर भी सबक ले लें तो न सिर्फ शहर में गंदगी के ये पहाड़ कम होंगे बल्कि डेयरी संचालकों की भी आर्थिक स्थिति और सुधरेगी.



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