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मथुरा में अनुज पोशाक वाला नाम से कारखाना चला रहे थोक विक्रेता अनुज शर्मा कहते हैं कि मथुरा-वृंदावन भगवान की पोशाक और श्रंगार का हब है. लड्डू गोपाल सहित अन्य भगवानों की पोशाक, मूर्तियां और श्रंगार के सामानों का कारोबार देखें तो 100 करोड़ रुपये सालाना से ज्यादा का है. लेकिन इस बार कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन और फिर अनलॉक के बावजूद यूपी में सप्ताहांत पर दो दिन के लॉकडाउन और मंदिरों के न खुलने के कारण कारोबार को 70 फीसदी तक घाटा हुआ है.
वे आगे बताते हैं कि उनके यहां से दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात सहित दर्जन भर राज्यों में माल जाता है लेकिन इस बार बाजार में ग्राहक ही नहीं है. लोगों में कोरोना का डर होने के साथ ही ट्रांस्पोर्ट की समस्याओं के कारण हालात और ज्यादा बिगड़ गए हैं.
विदेशों में जाती थीं पोशाकें, अब नहीं हो रही सप्लाई वृंदावन इस्कॉन मंदिर के सामने मस्तराम मुकुट वाले विमल गौतम ने बताया कि उनके यहां से विदेशों में भी पोशाकें और श्रंगार का सामान जाता है. इस्कॉन के मंदिर और भक्त परी दुनिया में हैं ऐसे में उनके यहां से रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, सिंगापुर और दुबई आदि कई देशों में लड्डू गोपाल, जगन्नाथ भगवान, गौर निताई, राधा-कृष्ण की पोशाकें जाती रही हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद से माल नहीं जा रहा है. यहां तक कि जन्माष्टमी पर भी कई विदेशी भक्तों ने निजी तौर पर मांग की थी लेकिन सप्लाई कर पाना संभव नहीं हुआ. अगर बात करें तो 70 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हुआ है.
ठाकुर जी को सर्दी में गर्म, गर्मी में सूती, बारिश में अन्य आरामदायक फैब्रिक की पोशाक और उत्सवों पर विशेष पोशाकें पहनाने का चलन है.
इस कारोबार से जुड़ हैं करीब 10-15 हजार लोग
बृजवासी पोशाक वाले दिलीप अग्रवाल बताते हैं कि मथुरा-वृंदावन और आसपास के गांवों में अधिकांश लोग पोशाक-मुकुट, मूर्तियां, लड्डू गोपाल के श्रंगार का सामान बनाने का काम करते हैं. इनकी रोजी रोटी का साधन होने के साथ ही इस काम में यहां के लोग सबसे कुशल हैं. ठाकुर जी को सर्दी में गर्म, गर्मी में सूती, बारिश में अन्य आरामदायक फैब्रिक की पोशाक और उत्सवों पर विशेष पोशाकें पहनाने का चलन है. ऐसे में यह 12 महीने चलने वाला काम है लेकिन गर्मी से लेकर सावन-भादों के महीने और जन्माष्टमी तक यह कारोबार सबसे ज्यादा कमाई देता है. इस बार यही पूरा सीजन बेरोजगारी में निकल गया.
एक महीने में ही मिल जाता था 11 महीने की मेहनत का फल
मुकुट बनाने का काम करने वाले कारीगर नसीर कहते हैं कि वे पिछले आठ सालों से मुकुट बनाने का काम कर रहे हैं. वे मुकुट की डिजाइन तैयार करके उस पर जरी की कढ़ाई, कुदंन और नग लगाने का काम करते हैं. वृंदावन के कई बड़े मंदिरों के लिए उन्होंने मुकुट बनाए हैं. यह काफी बारीक काम है. इसमें पैसा कारीगरों को बहुत ज्यादा नहीं मिलता, उनकी मेहनत ही निकल पाती है लेकिन बेचने वालों को जरूर फायदा होता है. एक साधारण आकार का मुकुट भी 10-15 हजार रुपये में बिक जाता है.
नसीर कहते हैं कि उन्हें मुकुट पर कढ़ाई करना बहुत पसंद है और अब हाथ भी बैठा हुआ है तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है. लेकिन कोरोना ने सब खत्म कर दिया. उनके 11 महीनों की मेहनत का फल जन्माष्टमी के दौरान के एक महीने में ही मिल जाता था लेकिन इस बार हालात बहुत खराब हैं.
इतने हैं लड्डू गोपाल के श्रंगार
लड्डू गोपाल कृष्ण का बालस्वरूप है. ऐसे में इनका श्रंगार बेहद लाड प्यार से एक बच्चे की तरह किया जाता है.
कारीगर और थोक विक्रेता अनुज शर्मा बताते हैं कि एक अकेले लड्डू गोपाल का श्रंगार ही सबसे ज्यादा बिकता है. उनके मुख्य-मुख्य 36 आयटम हैं, जो सबसे ज्यादा बिकते हैं. इन्हें गरीब से लेकर अमीर सभी लोग खरीदते ही हैं. इनमें लड्डू गोपाल की मूर्ति, उनके बाल, पगड़ी, मुकुट, हार, माला, बाजूबंद, बांसुरी, कंगन, पोशाक, कान के कुंडल, करधनी, तिलक, पालना, सिंहासन, झूला, आदि शामिल है. इनके अलावा सभी त्यौहारों पर भी इनके लिए विशेष रूप से पोशाकें और उत्सवों के सामान भी बिकते हैं.
इस बार बदल गया है जन्मोत्सव, भक्तों को ऐसे मिलेंगे दर्शन
हर साल की तरह इस बार पूरे बृज क्षेत्र में कान्हा जन्म की बधाई, उमंग, मंदिरों में बरसने वाला आनंद और लोगों के उत्साह की झलकियां नहीं दिखेंगी. इस बार मथुरा वृंदावन के सभी मंदिर आम जनमानस के लिए बंद रहेंगे जिसके कारण हर साल यहां आने वाले लोग इस बार अपने घरों में रहकर ही पर्व मनाएंगे.
हालांकि कोरोना के कारण आई परेशानियों के बावजूद कान्हा के भक्त निराश नहीं होंगे क्योंकि मथुरा-वृंदावन के सभी मंदिरों में जन्मोत्सव की तैयारियां की जा रही हैं. खास बात है कि मंदिरों में प्रवेश न मिलने के बावजूद भक्त अपने अपने प्रिय कान्हा के दर्शन कर पाएंगे और मंदिरों में होने वाली जन्मोत्सव संबंधी हर एक गतिविधि को देख पाएंगे.
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