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वाराणसी के चौखम्भा इलाके में स्थित ‘श्री राम भंडार’ ने इस बर्फी की शुरुआत 1947 में की थी. आज भी लोग 15 अगस्त (Independence Day) के दिन इसको खरीदारी करते हैं.
वाराणसी के चौखम्भा इलाके में रहने वाले अशोक बताते हैं कि इस बर्फी की कहानी 1947 से भी पुरानी है .इस बर्फी को स्वतंत्रा के लड़ाई में संदेश पहुचाने के लिए बनाया गया था. तब से इसका नाम तिरंगा बर्फी पड़ा. यही कारण है कि आज भी लोग 15 अगस्त के दिन इसको खरीदारी करते हैं. वाराणसी के चौखम्भा इलाके में स्थित ‘श्री राम भंडार’ ने इस बर्फी की शुरुआत 1947 में की थी. इस बर्फी की शुरआत आज़ादी के लड़ाई में लड़ने वाले लोगों के लिए संदेश के लिए किया गया था.
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दुकान के मालिक बताते हैं कि इनकी मिठाई की दुकान 150 वर्ष पुरानी है और आज भी ये उसी तरह चल रही है. जब देश आजाद हुआ तब आम जनमानस तक इस तिरंगे बर्फी का स्वाद पहुंचां, चूंकि देश के आज़ादी का जश्न था, तो इसका रंग भी तिरंगे के रंग में दिया गया. इस तिरंगे बर्फी के साथ ही आज़ादी के वक्त के कई नाम दिए गए थे. उस दौर में पहली बार बनारस में ही तिरंगा बर्फी बनी जो राष्ट्रीय ध्वज के रंग की थी.
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